नवगीत' भारतीयता की अभिव्यक्ति है : ह्रदयनारायण दीक्षित

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नवगीत भारतीयता की अभिव्यक्ति है : ह्रदयनारायण दीक्षित


वाराणसी, 17 जून 2021 | स्वाधीनता के बाद नगरीय सभ्यता के भीतर जो आदिम स्वर विस्थापित हो रहे थे और उसकी चकाचौध में जो हमारी निजता भंग हो रही थी, उसी का वैज्ञानिक पुनर्स्थापन नवगीत के प्रवर्तन के माध्यम से डॉ.शम्भुनाथ सिंह ने की | उनकी सामाजिक एवं दार्शनिक चिंतन धारा का स्वर आज भी नवगीतों के रूप में प्रवाहित हो रहा है |

उक्त विचार उत्तर प्रदेश विधान सभा अध्यक्ष पं.ह्रदयनारायण दीक्षित ने व्यक्त किये | वे विख्यात साहित्यकार एवं नवगीत के उन्नायक डॉ.शम्भुनाथ सिंह की 105वीं जयन्ती पर आयोजित "समकालीन कविता और शम्भुनाथ सिंह" विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी एवं डॉ.शम्भुनाथ सिंह नवगीत पुरस्कार अर्पण के आभासी समारोह में मुख्य अतिथि पद से अपने विचार व्यक्त कर रहे थे |

इस अवसर पर रायबरेली के वरिष्ट नवगीतकार डॉ.ओमप्रकाश सिंह को वर्ष 2020-21 का डॉ.शम्भुनाथ सिंह नवगीत पुरस्कार से सम्मानित करते हुए उन्होंने कहा कि "नवगीत भारतीयता की अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम है | शम्भुनाथ जी ने 20वीं सदी के छठे दशक में नवगीत का जो बीजा रोपण किया वह आज के नवगीतकारों द्वारा पुष्पित, पल्वित की जा रही है और डॉ.ओमप्रकाश सिंह उनमे से एक वरेण्य कवि है जो अपनी रचनाधर्मिता के माध्यम से समाज को निरंतर एक नयी दिशा प्रदान कर रहे है |

उन्होंने काशी के नवोदित रचनाकार एवं सामाजिक कार्यकर्ता व अधिवक्ता डॉ.व्योमेश चित्रवंश की लॉकडाउन अवधि में लिखित पुस्तक "यह सड़क मेरे गाँव को नहीं जाती" का विमोचन करते हुए कहा कि "वर्तमान दौर बीसवीं सदी के अंतिम तीन दशकों में ग्रामीण परिवेश में आये बदलाओं एवं परिवर्तन की कहानियां जिस बेबाकी से वर्णन लेखक ने किया है उसमे हर व्यक्ति स्वयं को एक पात्र के रूप में महसूस करता है |

कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के रूप में जुड़े हिन्दुस्तानी एकादमी प्रयागराज के अध्यक्ष डॉ.उदय प्रताप सिंह ने कहा कि "डॉ.शम्भुनाथ सिंह की कविताओं में भारतीयता और राष्ट्रीयता की पूर्ण अभिव्यक्ति दिखाई पड़ती है | 5 दशकों में फैले अपने रचनाकाल में उन्होंने साहित्य की सभी विधाओं में बखूबी कलम चलायी किन्तु असली ख्याति उन्हें नवगीत के प्रवर्तक के रूप में मिली |"




विशिष्ट अतिथि के रूप में देहरादून से जुड़े देश के ख्यातिलब्ध नवगीतकार डॉ.बुद्धिनाथ मिश्र ने कहा कि "शम्भुनाथ सिंह नवगीत के भीष्म पितामह है | उन्होंने समय की शिला पर गेरू की लिपिओं से जो अमिट गीत लिखे वो आज भी जन-जन की जुबां पर मौजूद है |"


गोष्ठी का विषय प्रवर्तन करते हुए साहित्य भूषण से सम्मानित वरिष्ठ समीक्षक डॉ.इन्दीवर ने कहा कि "शम्भुनाथ सिंह को याद करना भारतीय मनीषा को याद करना है |

वे समकालीन हिंदी कविता के एक सशक्त हस्ताक्षर के रूप में प्रतिष्ठित हैं और नवगीत को गद्य कविता के मकड़ जाल से बाहर निकालने के लिए नवगीत की जो अविरल धारा बहाई वह आज हिंदी काव्य की एक प्रमुख प्रवृत्तियों में स्थापित है |

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ट नवगीतकार डॉ.माहेश्वर तिवारी ने कहा कि भारत की आत्मा ग्रामीण संस्कृति से गहराई से जुड़ी हुई है |

शम्भुनाथ जी ने गीतों की उसी लय को भारतीयता बोध के साथ समावेशित किया | जिसके लिए भारतीय कविता उनकी चिर ऋणी रहेगी |

गोष्ठी के उपरान्त माहेश्वर तिवारी की अध्यक्षता में आयोजित काव्य संध्या में देहरादून से बुद्धिनाथ मिश्र, वाराणसी से डॉ.इन्दीवर, ओम धीरज, हिमांश उपाध्याय, सुरेन्द्र बाजपेयी, डॉ.अशोक सिंह, शिव कुमार गुप्त पराग, चेन्नई से ईश्वर करुण, भोपाल से डॉ.मधु शुक्ल, कीर्ति काले, नोएडा से डॉ.सुरेश आदि कवियों ने काव्यपाठ किया |

कार्यक्रम का संचालन वरिष्ट साहित्यकार डॉ.राम सुधार सिंह, स्वागत फ़ौदतिओन के महासचिव राजीव कुमार सिंह व निदेशक डॉ.रोली सिंह तथा धन्यवाद ज्ञापन अध्यक्ष एड.विजयश्री सिंह ने किया |

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