हिंदी को राजभाषा, राष्ट्र भाषा के बहस से निकल कर जनभाषा का रूप लेना होगा : प्रो गोविन्द जी पांडेय

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हिंदी को राजभाषा, राष्ट्र भाषा के बहस से निकल कर जनभाषा का रूप लेना होगा : प्रो गोविन्द जी पांडेय

हिंदी दिवस के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में बोलते हुए मीडिया और जनसंचार विद्यापीठ के डीन प्रो गोविन्द जी पांडेय ने वहा उपस्थित शिक्षकों और छात्र - छात्राओं जी संबोधित करते हुए कहा की हिंदी को अब राजभाषा , राष्ट्रभाषा के बहस से निकल कर जनभाषा के रूप में स्थापित करना होगा | इस अवसर पर प्रो पांडेय ने बताया की किस तरह १९४९ में संबिधान सभा में राजभाषा का दर्जा मिलने के बाद १४ सितंबर १९५३ से इसके प्रचार - प्रसार के लिए हिंदी दिवस का आयोजन किया जाने लगा | उन्होंने कहा की हिंदी को एक वर्ग ने दबा कर रखा और उसे वंचित ,दलित और कमजोरो की भाषा और विचार से जोड़ दिया |

प्रो पांडेय ने बताया कि इस अभिजात्य वर्ग ने जानबूझ कर हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओँ में भेद पैदा किया और अंग्रेजी को लिंक भाषा और कामकाज की भाषा में स्थापित कर दिया | इस निर्णय से जहाँ एक तरफ हिंदी के विकास की गति को रोक दिया वही भारतीय भाषाओ के बीच आपस में दुरी पैदा कर दी |

विभागाध्यक्ष प्रो गोपाल सिंह ने बताया की किस तरह देश के अन्य भागों में जानबूझ कर हिंदी की उपेक्षा की जाती है | उन्होंने कहा कि हिंदी में इतना सामर्थ्य है कि वो अंग्रेजी की जगह ले सके | डॉ. महेंद्र पाढ़ी ने अपने अनुभव साझा करते हुए बताया कि उनकी हिंदी यहां आकर अच्छी हो गयी है और वो भोजपुरी भाषा भी सीखना चाहते है | डॉ. कुंवर सुरेंद्र बहादुर ने हिंदी फ़िल्मी गाने को गाकर हिंदी के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को दोहराया है | कार्यक्रम के संयोजक डॉ. लोकनाथ ने बताया कि किस तरह भारत पर आक्रमण करने वालों ने नालंदा और तक्षशिला के विश्वविद्यालयों में रखे किताबों को जला डाला और भारतीय ज्ञान परम्परा को तहस -नहस करने की कोशिश की |

इस कार्यक्रम का संचालन डॉ. अरविन्द सिंह ने किया और अपने विचार व्यक्त करते हुए उन्होंने छात्रों से आगे बढ़कर प्रतिभाग करने के लिए प्रेरित किया | इस अवसर पर बोलते हुए विभाग के छात्रों ने हिंदी भाषा के प्रयोग में आ रही समस्याओं से शिक्षकों को अवगत कराया | कई विद्यार्थी ने कहाँ की हमे इसे उत्स्व की तरह एक दिन नहीं मानना चाहिए | ये हमारी मातृभाषा है और इसके बारे में रोज चिंतन होना चाहिए |

कुछ छात्रों ने जहा स्वरचित कविता तो कही कुमार विश्वास की कविता से हिंदी की वर्तमान दशा पर प्रकाश डाला |

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