त्रिपुरा में कांग्रेस-वामदल गठबंधन का बड़ा दांव,मुख्यमंत्री पद के दावेदार का फैसला चुनाव के बाद विधायक करेंगे।

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त्रिपुरा में कांग्रेस-वामदल गठबंधन का बड़ा दांव,मुख्यमंत्री पद के दावेदार का फैसला चुनाव के बाद विधायक करेंगे।
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त्रिपुरा विधानसभा चुनाव को अब पांच दिन ही बचे हैं। 16 फरवरी को यहां वोटिंग है। इसके ठीक पहले कांग्रेस और वामदल गठबंधन ने बड़ा दांव चल दिया है। कांग्रेस ने एलान किया है कि राज्य में अगर गठबंधन की सरकार बनती है तो आदिवासी चेहरे को ही सूबे की कमान सौंपी जाएगी। कांग्रेस के महासचिव अगर वाम-कांग्रेस गठबंधन चुनाव जीतती है तो माकपा के एक वरिष्ठ आदिवासी नेता त्रिपुरा के मुख्यमंत्री बनेंगे। बता दें कि त्रिपुरा में जितेंद्र चौधरी आदिवासी समुदाय से आने वाले सीपीआई (एम) के बड़े नेताओं में से एक हैं। चौधरी के नाम पर ही सबसे ज्यादा चर्चा चल रही है।

बीते कुछ महीनों से राज्य में सियासी उथलपुथल जारी है। एक तरफ भाजपा ने 2018 में जीत दिलाने वाले बिप्लब कुमार देब को हटाकर मानिक साहा को मुख्यमंत्री बना दिया तो कई नेता पार्टी से अलग भी हो गए। भाजपा नेता हंगशा कुमार त्रिपुरा इस साल अगस्त में अपने 6,000 आदिवासी समर्थकों के साथ टिपरा मोथा में शामिल हो गए। वहीं, आदिवासी अधिकार पार्टी भाजपा विरोधी राजनीतिक मोर्चा बनाने की कोशिश कर रही है। इसके साथ ही कई नेता पार्टियां बदल रहे हैं। हमेशा एक-दूसरे की धुर विरोधी रही कांग्रेस और सीपीएम ने इस बार हाथ मिला लिया है। दोनों ही पार्टियों ने साथ मिलकर चुनाव लड़ने का एलान किया है।

साल 2019 में कांग्रेस का हाथ छोड़ने के बाद उन्होंने सक्रिय राजनीति से ब्रेक लिया था। बाद में उन्होंने तिपरा मोचा पार्टी (टीएमपी) की स्थापना की और साल 2021 में उन्होंने त्रिपुरा आदिवासी काउंसिल चुनाव में जीत हासिल की। इस जीत की खास बात यह रही कि उन्होंने सत्ताधारी भाजपा और आईपीएफटी के गठबंधन को मात दी थी। इसके अलावा, लेफ्ट और कांग्रेस भी उनके सामने नहीं टिक सके थे। त्रिपुरा विधानसभा चुनाव में टीएमपी 60 में से 42 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। फिलहाल आदिवासी बहुत क्षेत्रों में टीएमपी को बेहद मजबूत राजनीतिक ताकत माना जा रहा है।

प्रद्योत बिक्रम की खास बात यह है कि आदिवासी समुदाय के बीच गहरी पकड़ होते हुए भी वह अन्य समुदायों को नजरअंदाज नहीं कर रहे। अपनी राजनीति के बारे में वह कहते हैं कि मैंने महलों से सियासत का जाना-पहचाना रास्ता चुना। मैं नॉर्थईस्ट में पला-बढ़ा हूं और मैंने यहीं पर अपनी पढ़ाई की है। अब मैं आदिवासियों के संवैधानिक अधिकारों के लिए लड़ रहा है। हालांकि मैं अन्य लोगों के खिलाफ बिल्कुल नहीं हूं। खास बात यह भी है कि प्रद्योत बिक्रम खुद चुनाव नहीं लड़ रहे हैं। हालांकि वह अपनी पार्टी के लिए प्रचार-प्रसार में जोर-शोर से जुटे हैं। उनकी पार्टी गैर-आदिवासी इलाकों में भी उम्मीदवार खड़े कर रही है। गौरतलब है कि आदिवासी वोट चुनाव में बड़ी भूमिका निभाते रहे हैं।दूसरी तरफ भाजपा टीएमपी की ग्रेटर तिपरालैंड की मांग से सहमत नहीं है। उसका कहना है कि यह बंगाली आदिवासी समरसता को प्रभावित करेगा। अमित शाह ने हाल ही में एक रैली में कहा था कि अगर आप टीएमपी के लिए वोट करेंगे तो वह कांग्रेस या सीपीआई(एम) को चला जाएगा।

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