क्या गोवा से निकलेगी महाराष्ट्र के सत्ता की धारा , ताज का मजा लेंगे विद्रोही विधायक

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क्या गोवा से निकलेगी महाराष्ट्र के सत्ता की धारा , ताज का मजा लेंगे विद्रोही विधायक


महाराष्ट्र का सियासी संकट कम होता दिखाई नहीं दे रहा है । अब सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षों को नोटिस जारी कर पांच दिन में जवाब मांगा है। 11 जुलाई को इस मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट करेगा। चिड़िया उड़ जाने के बाद उनके पर काटने के लिए उद्धव ठाकरे ने बागी मंत्रियों पर कार्रवाई करते हुए उनके मंत्रालयों को छीन लिया है।

वही एक ओर ये नाटक चल रहा है तो दूसरी तरफ एक जमीन घोटाले को लेकर शिवसेना नेता संजय राउत को ईडी ने नोटिस भेजा है। उन्हें कल पेश होने के लिए कहा गया है।

इस खेल का हीरो कौन है : वैसे तो हर नाटक के अंत में हीरो विजयी होता है पर महाराष्ट्र के नाटक का हीरो कौन है ये अभी तक पता नहीं चल पाया है | कई दावेदार है पर सब पुरानी कहानी को ध्यान में रखते हुए सावधानी से कदम रख रहे है |

पहले की गलती नहीं दोहराएगी बीजेपी : अजीत पवार के साथ एक बार धोखा खा चुकी बीजेपी नहीं लगता है की इस बार कोई जल्दबाजी करेगी | पिछली बार बिना तसदीक़ किये जो काम फडणवीस ने किया था उससे बीजेपी की लीड़रशीप ने जरूर सबक लिया होगा |

उद्धव के सामने क्या विकल्प है : इन सबमे जो सबसे ज्यादा परेशान है वो उद्धव ठाकरे है | एक तरफ उनके पास आदित्य और संजय राउत जैसे लोग है जिनकी राजनीतिक नासमझी शिवसेना को चोट पंहुचा रही है | इन दोनों के बड़बोलेपन ने शिवसेना को जितना नुकसान पहुंचाया है उतना एकनाथ शिंदे ने भी नहीं पहुंचाया होगा | इनको रोक न पाना उद्धव की सबसे बड़ी कमजोरी है | उद्धव ठाकरे अपने आप में एक अच्छे राजनेता का गुण रखते है और वो बालासाहेब जितना कट्टर भी नहीं है जिसके कारण उनका बीजेपी से गठबंधन चल गया | पर सत्ता की जितनी भूख संजय राउत में दिखाई देती है वो उद्धव में नहीं है | वो इस्तीफा देने जा रहे थे और अगर सूत्रों की माने तो उनको शरद पवार ने रोका | ये अपने आप में दर्शाता है की उनके अंदर अपने पिता के कुछ अंश शेष है |

पवार का खेल क्या है : इसमें जो सबसे बड़ा खिलाडी है वो शरद पवार है और वो ही इस स्थिति से उद्धव को बाहर लाने का प्रयास कर रहे है | सब जानते है की उद्धव सरकार में जितना अजीत और शरद की चल रही है उतना तो किसी की भी नहीं चल रही है | कांग्रेस की स्थिति तो उस यात्री की तरह है की अगर ट्रेन चलती रहेगी तो वो लटकी रहेगी पर अगर ट्रैन का ट्रैक बदल जाता है तो उसको ट्रेन से उतरने के अलावा कोई और राश्ता नहीं है और उससे एक राज्य की और सत्ता चली जायेगी |

कुल मिलकर अब सब कुछ इस बात पर निर्भर है की एकनाथ शिंदे कितने दिनों तक उद्धव के दबाव और बालासाहेब के नाम पर टिके रहते है | उनका रुख ही आने वाले समय में महाराष्ट्र की दिशा तय करेगा | पर अगर वो सफल हो जाते है तो महाराष्ट्र में पुणे का कद बढ़ जाएगा |

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