56 साल से पियारी देवी अपने पति की बची हुई कमाई को पाने की लड़ाई लड़ रही है, न्याय व्यवस्था और लोकतंत्र दोनों पर एक प्रश्न चिन्ह लग गया है

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56 साल से पियारी देवी अपने पति की बची हुई कमाई को पाने की लड़ाई लड़ रही है,    न्याय व्यवस्था और लोकतंत्र दोनों पर एक प्रश्न चिन्ह लग गया है
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8 दिसंबर 1966 को पियारी देवी के पति को टर्मिनेट किया गया और तब से अब तक यह लड़ाई चल रही है, वक्त है कि ठहर सा गया है और कहा जाता है कि खता किसी और ने की सजा कोई और भुगत रहा है |

भारत में ही ऐसा हो सकता है कि पति की नौकरी और उनकी पेंशन की बात होते -होते ५० साल से ऊपर हो गया है लेकिन अभी भी न्याय की आस में बैठी हुई भारत की एक महिला को अगर न्याय नहीं मिला तो न्याय व्यवस्था से लोगों का विश्वास उठ जाएगा |

यह कहानी नहीं है हकीकत है और अगर आपको इस हकीकत को जानना है तो आप नीचे दी हुई सूचनाओं को ध्यान से पढ़ें-

भारत में आए सूखा से जिस समय गांव और शहर परेशान थे उस समय उनके पति जो नलकूप विभाग में काम करते थे उनके साथ कई लोगों को टर्मिनेट कर दिया गया |

उनमें से कई लोग जो संसाधन संपन्न थे वह वापस नौकरी पा गए और वह लोग जो घर से संपन्न नहीं थे या कहीं सिस्टम से लड़ नहीं सके उन्हें सिस्टम ने इतना लंबा इंतजार करा दिया शायद राम को तो 14 साल ही बनवास मिला था और 56 साल का बनवास में चल रही महिला अगर अपने पति की बची हुई कमाई को जो उसका जायज हक है नहीं पाती है तो न्याय व्यवस्था और लोकतंत्र दोनों पर प्रश्न चिन्ह लग जाएगा |


आदरणीय उत्तर प्रदेश राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के सचिव श्री अश्वनी कुमार एचजेएस जैसे उच्च पद के अधिकारी का आदेश जो 15 जून २००६ को हुआ था इस पर अधिशासी अभियंता नलकूप खंड देवरिया कोई कार्रवाई नहीं किए और उल्टे इनके पति को यह बोले मैंने महालेखाकार को पत्र भेज दिया है, पर पत्र नहीं भेजा गया था , जिसका खुलासा 6 साल के बाद २०१२ में इनके पति श्री सत्यनारायण सिंह नलकूप चालक के मरने के बाद पता चला।

अब विधि का विधान देखिये जब उन्होंने अपने पति के फंड के लिए आम आदमी पार्टी के संजय सिंह को पत्र लिखा तो उनके पत्र के जवाब में जब नलकूप विभाग ने जवाब भेजा तो उससे पता चला की सत्य नारायण सिंह के बारे में महालेखाकार को कोई भी पत्र नहीं भेजा गया।


श्री सत्यनारायण सिंह नलकूप चालक रहे जो देवरिया के हांटा में नलकूप संख्या 21 पर कार्यरत थे वहां पर कार्य करते समय ही उनको टर्मिनेट किया गया था पर आज तक इस विषय को पूरी तरीके से प्रशासन ने नहीं देखा है और उनकी पत्नी आज भी अपने पति के फंड का इंतजार कर रही है।

उनके द्वारा दिए गये डॉक्यूमेंट हम नीचे लगा रहे है जिससे सत्य का पता चले और सरकार की आँख खुले और पियरी देवी को उनका हक़ मिल सके | बात सिर्फ कुछ सौ रुपयों की थी और अगर आज की तारीख में वो मिलता भी है तो हजारो में होगा | पर एक गरीब की आँखों में हजारो से ही लाखों ख्वाब बना लिए जाते है | पियारी देवी के पति की मौत अपना हक़ लेने के लिए लड़ते हुए हो गयी और शायद सरकार और उसके हाकिम लोग न जागे तो पियारी देवी की भी मौत हो जायेगी और उनका सपना भी उनके साथ चला जाएगा | बचपन एक्सप्रेस की सरकार से मांग है की वो न सिर्फ पियारी देवी को उनका हक दे बल्कि उनके सपनो को भी वापस करे , उस काल को भी ले आएं जो वो जी नहीं पायी और पति के अधूरे ख्वाब को सिर्फ देखती रही उसे छू नहीं पायी |





















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