डेढ़ लाख से अधिक हस्तलिखित पांडुलिपियों के संग्रहालय बीकानेर स्थित अभय जैन ग्रंथालय में

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डेढ़ लाख से अधिक हस्तलिखित पांडुलिपियों के संग्रहालय बीकानेर स्थित अभय जैन ग्रंथालय में राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन के तहत किया जा रहा ज्ञान संपदा का संरक्षण* बीकानेर। बीकानेर का अभय जैन ग्रंथालय सौ वर्ष पुराना है। इस ग्रंथालय का यह शताब्दी वर्ष है । ग्रंथालय की स्थापना अगरचंद नाहटा व भंवरलाल नाहटा ने भारतीय संस्कृति के संरक्षण का संकल्प लेकर मात्र 12 वर्ष की अवस्था से ही ग्रंथों का संग्रह करके प्रारंभ की थी।

उन्होंने सुदूर अंचलों में बिखरी पड़ी भारतीय ज्ञान संपदा को देश भर में घूम -घूम एकत्रित कर संरक्षित करने का कार्य जीवन पर्यंत किया। इस मिशन को अब उनके प्रपोत्र ऋषभ नाहटा आगे बढ़ा रहे हैं। वर्तमान में इस ग्रंथालय में 1,50,000 से अधिक हस्तलिखित पांडुलिपियों और 1 लाख से अधिक किताबों को सुव्यवस्थित रूप से संग्रहित किया गया है। इन हस्तलिखित पांडुलिपियों के संरक्षण और संवर्धन के लिए राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन के साथ मिलकर ऋषभ नाहटा इन हस्तलिखित पांडुलिपियों के संरक्षण का कार्य कर रहे हैं। वे कहते हैं कि इन हस्तलिखित पांडुलिपियों को अभी जन्मे बच्चे की तरह सार संभाल देनी पड़ती है क्योंकि इनका कागज पुराना होने के कारण कई तो बहुत ही जीर्ण क्षीण अवस्था में थे, उन्हें संरक्षित रखने का प्रयास किया जा रहा है।

इस ग्रंथालय का प्रारंभ 7000 पांडुलिपियों से किया गया जो आज 1.5 लाख तक पहुंच गया है। इस ग्रंथालय में हिंदी संस्कृत राजस्थानी गुजराती प्राकृत अपभ्रंश के अतिरिक्त शारदा, डाकारी ,कन्नड़ तमिल, वंगाली, पंजाबी, सिंधी, उर्दू, फारसी आदि भाषाओं की पांडुलिपियों उपलब्ध है। देश-विदेश के अनेक विद्वानों ने ग्रंथालय की प्रशंसा में अपने लेख लिखे हैं। जिससे इस ग्रंथालय की अंतरराष्ट्रीय ख्याति है।

वर्तमान में इसका स्वरूप नवीन योजनाओं के साथ जुड़ गया है अभय जैन ग्रंथालय निदेशक श्री ऋषभ नाहटा भारत सरकार कला एवं संस्कृति मंत्रालय के पांडुलिपि मिशन के तहत इस ग्रंथालय में सूचीकरण का कार्य करवाया जा रहा है। तथा जन उपयोगी बनाने के लिए भारत सरकार की कृति संपदा पोर्टल पर इसकी जानकारी अपलोड की जा रही है। इसके माध्यम से लिपी प्रशिक्षण शिविरो का आयोजन व कार्यशाला का आयोजन भी किया जाता है जिससे विद्यार्थियों को प्रशिक्षित कर रोजगार के अवसर उपलब्ध करवाए जाते हैं।

देश विदेश के विश्विद्यालयों से शोध कर रहे शोधार्थियों साहित्यकारों, इतिहासकारों, व सभी धर्मों के धर्मावलंबियों के लिए यह ग्रंथागार अत्यंत उपयोगी है। पांडुलिपियों के लिए राष्ट्रीय मिशन एक राष्ट्रीय स्तर की व्यापक पहल है जो पांडुलिपियों के संरक्षण और उसमें निहित ज्ञान के प्रसार की आवश्यकता को पूरा करता है।

National Mission for Manuscripts अपने आदर्श वाक्य को पूरा करने की दिशा में काम कर रहा है, -'भविष्य के लिए अतीत का संरक्षण-'। बीकानेर में इस मिशन के तहत अभय जैन ग्रंथालय में इन पांडुलिपियों के संरक्षण पर कार्य चल रहा है। साथ ही शीघ्र ही एक हाइटेक लैब बनाने पर भी काम किया जाएगा जिसके तहत इन पांडुलिपियों के लेपी करण एवं संरक्षण का विशेष एनवायरनमेंट तैयार किया जाएगा ताकि देश की अकूत संपदा संरक्षित रह सके। उल्लेखनीय है कि पर्यटन और संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा फरवरी 2003 में पांडुलिपियों के लिए राष्ट्रीय मिशन की स्थापना की गई थी। अपने कार्यक्रम और जनादेश में यह एक अनूठी परियोजना है जिसका मिशन भारत की विशाल पांडुलिपि धन का पता लगाना और संरक्षित करना है। मिशन में भारत की पांडुलिपि विरासत को पहचानने, दस्तावेजीकरण, संरक्षण और सुलभ बनाने का कार्य किया जा रहा है।

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