इलाहाबाद विश्वविद्यालय में ‘‘कांस्टीट्यूशन एंड कांस्टीट्यूशनलिज्म : द फिलोस्फी ऑफ डॉ. बी. आर. अम्बेडकर’’ विषय पर सेमिनार

  • whatsapp
  • Telegram
इलाहाबाद विश्वविद्यालय में ‘‘कांस्टीट्यूशन एंड कांस्टीट्यूशनलिज्म : द फिलोस्फी ऑफ डॉ. बी. आर. अम्बेडकर’’ विषय पर सेमिनार
X


प्रयागराज। इलाहाबाद विश्वविद्यालय, प्रयागराज में शनिवार को ‘‘कांस्टीट्यूशन एंड कांस्टीट्यूशनलिज्म : द फिलोस्फी ऑफ डॉ. बी. आर. अम्बेडकर’’ विषय पर सेमिनार का आयोजन किया गया। मुख्य अतिथि भारत के सर्वोच्च न्यायालय के माननीय मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री बी.आर. गवई, सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ माननीय न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री विक्रम नाथ, इलाहाबाद उच्च न्यायालय के माननीय मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री अरूण भंसाली और इविवि की कुलपति प्रो. संगीता श्रीवास्तव ने दीप प्रज्ज्वलित कर कार्यक्रम की शुरूआत की। इविवि की 15 यूपी एनसीसी बटालियन ने अतिथियों को गार्ड आफ ऑनर दिया। इसके बाद विश्वविद्यालय का कुलगीत प्रस्तुत किया गया। सेमिनार में मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति बी.आर. गवई को सम्मानपत्र प्रदान किया गया।

अपने संबोधन में मुख्य अतिथि सीजेआई न्यायमूर्ति बी.आर. गवई ने कहा कि भारतीय लोकतंत्र की आत्मा संविधान में निहित हैै। कई देशों में केंद्र और राज्यों में अलग-अलग संविधान कार्य करते हैं, लेकिन भारत में एक की संविधान राज्यों और केंद्र के लिए कार्य करता है। जिला स्तर से न्यायिक व्यवस्था प्रारंभ होकर हाईकोर्ट होते हुए सुप्रीम कोर्ट तक जाती है। इससे सभी को न्याय की अवधारणा संभव हो पाई है। नेपाल, बाग्लादेश और श्रीलंका जैसे देशों के अस्थिर लोकतंत्र का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि भारत में संविधान के कारण ही लोकतंत्र की नीव मजबूत है। उन्हांने कोलेजियम सिस्टम को सही ठहराते हुए कहा कि इस व्यवस्था में नियुक्तियों में राज्य सरकार और केंद्र सरकार और विभिन्न एजेंसियों के इनपुट शामिल होते हैं और इसके आधार पर ही न्यायमूर्तियों की नियुक्ति होती है।

उन्होंने कहा कि डा. अंबेडकर के कारण भी भारतीय संविधान में एकल नागरिकता को स्वीकर किया गया। उसने प्रयासों से ही देश की शक्ति संरचना को तीन चारणों यानी विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका में समांतर रूप से विभाजित किया जा सका। उन्होंने न्यायापालिका की स्वतंत्रता पर जोर दिया। उन्होंने आर्टिकल 32 को संविधान की आत्मा बताया और कहा कि इसके बिना संविधान निर्जीव है। राज्यों एवं केंद्र के बीच शक्ति संतुलन बहुत जरूरी है।

संविधान से प्रदत्त मौलिक अधिकारों का जिक्र करते हुए सीजेआई जस्टिस बीआर गवई ने कहा कि जीने के अधिकार में भोजन, स्वच्छ हवा-पानी और शिक्षा का अधिकार निहित है। अनेकता में एकता ही भारत की आत्मा है और विविधता, सामुदायिक भाईचारा और समानता से ही देश समृ़द्ध होगा। सामाजिक समानता और उदारवादिता के मध्य सामंजस्य से ही देश की प्रगति संभव है। उन्होंने कहा कि डा. अंबेडकर के सामाजिक क्रांति के माध्यम से सामाजिक और आर्थिक न्याय संभव हो सका है। भारतीय संविधान के लिए सभी समान हैं, कोई उच्च या निम्न नहीं है। भारतीय संविधान पन्नों में नहीं बल्कि भारत के लोगों में ही निहित है।

इस अवसर पर सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ माननीय न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री विक्रम नाथ ने कहा कि डा. भीमराव रामजी अंबेडकर भारतीय संविधान के निर्माता थे। उन्हांने उदारवाद और सामाजिक न्याय के विचार को जन्म दिया। उन्होंने कहा कि कोई भी व्यक्ति भारतीय संविधान से ऊपर नहीं है। डा. अंबेडकर समाज में व्याप्त जाति, लिंग और समाज आधारित भेदभाव को समाप्त करने के पक्षधर थे। उन्होंने ही सभी के लिए सुलभ न्याय की अवधारणा को संविधान के जरिए रखा। उन्होंने कहा कि सीजेआई गवई का कार्यकाल युवाओं के लिए प्रेरणा देता रहेगा।



इलाहाबाद उच्च न्यायालय के माननीय मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री अरूण भंसाली ने कहा कि डॉ. आंबेडकर के जीवन और कार्यों ने वर्तमान भारत की नींव रखी। हमारे संविधान के मुख्य शिल्पी, डॉ. आंबेडकर का दृष्टिकोण केवल एक कानूनी दस्तावेज़ का मसौदा तैयार करने तक सीमित नहीं था, बल्कि स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व से परिपूर्ण देश के निर्माण का एक नैतिक वादा था। बाबासाहेब के लिए, संविधान समाज में व्याप्त असमानता और अस्पृश्यता को दूर करने का एक महत्वपूर्ण साधन था। डॉ. आंबेडकर की संविधान की समझ कानून के लिखित प्रावधानों से कहीं आगे तक जाती है। बाबासाहेब का मानना था कि भारत में लोकतंत्र की सफलता संवैधानिक नैतिकता के विकास पर निर्भर करती है।

कुलपति प्रो. संगीता श्रीवास्तव ने अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा कि सीजेआई का इलाहाबाद विश्वविद्यालय में आना गर्व की बात है। इमर्सन की कविता के माध्यम से उन्होंने जस्टिस बीआर गवई के व्यक्तित्व को सबके सामने रखा। उन्होंने कहा कि इलाहाबाद विश्वविद्यालय भारत में शिक्षा का चौथा सबसे पुराना स्तंभ है। इलाहाबाद विश्वविद्यालय ने देश को कई प्रतिभाओं से नवाजा है। शिक्षा ही सही मायने में देश का निर्माण कर सकती है। उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय के वर्तमान स्थिति से अतिथियों को अवगत करवाया। उन्होंने कहा कि इविवि वर्तमान में सभी केंद्रीय विश्वविद्यालयों में से तीसरा सबसे ज्यादा लोकप्रिय विश्वविद्यालय है। इसके बाद उन्होंने आए हुए सभी अतिथियों का धन्यवाद ज्ञापित किया। डा. सोनल शंकर ने स्वागत भाषण दिया और सेमिनार के महत्व पर प्रकाश डाला। इस अवसर पर विभिन्न संकायों के डीन, विभागाध्यक्ष, शिक्षक और विद्यार्थी मौजूद रहे।





विश्वविद्यालय को मिले तीन नए भवन

भारत के सर्वोच्च न्यायालय के माननीय मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री बी.आर. गवई, सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ माननीय न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री विक्रम नाथ, इलाहाबाद उच्च न्यायालय के माननीय मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री अरूण भंसाली और इविवि की कुलपति प्रो. संगीता श्रीवास्तव ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय में तीन नवनिर्मित भवनों लोकार्यपण किया। इसमें न्यू कैमेस्ट्री बील्डिंग, लेक्चर थियेटर कांप्लेक्स, और केन्द्रीय पुस्तकालय का रीडिंग हाल शामिल है।

Next Story
Share it