राष्ट्रपति चुनाव:- कोशिश है दमदार लेकिन विपक्ष नहीं बना पा रहा एकजुटता का हथियार
राजनीति:- अगले महीने प्रस्तावित राष्ट्रपति चुनाव को लेकर सियासी सरगर्मी तेज हो गई है। पक्ष विपक्ष अपने अपने स्तर से तैयारियों में लग गया है लेकिन अभी...
राजनीति:- अगले महीने प्रस्तावित राष्ट्रपति चुनाव को लेकर सियासी सरगर्मी तेज हो गई है। पक्ष विपक्ष अपने अपने स्तर से तैयारियों में लग गया है लेकिन अभी...
राजनीति:- अगले महीने प्रस्तावित राष्ट्रपति चुनाव को लेकर सियासी सरगर्मी तेज हो गई है। पक्ष विपक्ष अपने अपने स्तर से तैयारियों में लग गया है लेकिन अभी इस संदर्भ में कोई भी दल औपचारिक रूप से आगे नहीं बढ़ा है। विपक्ष जहां एक ओर एकजुट होने की कवायद में लगा है वही उनकी यह एकता उनके मतभेदों का खुला प्रदर्शन कर रही है। क्योंकि उनकी नजर 2024 में होने वाले आम चुनाव पर है और इस चुनाव को लेकर प्रत्येक दल की रणनीति भिन्न है। जिसके चलते राष्ट्रपति चुनाव के दौरान एकता का परिचय देने के लिए एक साथ आया विपक्ष आपसी सहमति नहीं बना पा रहा है।
जहां एक ओर विपक्ष भाजपा को लोकसभा में टक्कर देने की तैयारी कर रहा है और राष्ट्रपति चुनाव में आपसी सहमति बनाने की कोशिश में लगा है। वही उनके मतभेद उनकी इस कोशिश पर पानी फेर रहे हैं और उनके इस चलन से यह स्पष्ट हो रहा है कि उनके मतभेद के आगे कही न कही भाजपा की नीतियां ज्यादा उम्दा है क्योंकि भाजपा में आपसी सहमति की झलक दिखाई दे रही है।
वही विपक्ष अपने मतभेदों को बुलाकर कोशिश में लगा है कि वह एकजुट हो जाए। नीतीश कुमार विपक्ष के लिए बड़ी समस्या बने हुए हैं। लेकिन फिर भी कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी विपक्ष को एकजुट करने की राह पर निकल चुकी है। उन्होंने कई दलों के साथ सम्पर्क साधा है और भाजपा के सामने मजबूत रूप से खड़े होने के लिए एकजुट होने का संदेश दिया है। हालाकि उनके इस प्रस्ताव का कई विपक्षी दलों ने विरोध किया है। नेताओ ने एकजुट होने की नीति को जल्दबाजी की नीति भी बताया है और कहा है कि इस पर एक बार पुर्नविचार की आवश्यकता है।
तेलंगाना राष्ट्र समिति के प्रमुख केसीआर काफी पहले से विपक्षी दलों को एकजुट करने की मुहिम में लगे हुए हैं। इसके बावजूद उन्होंने बैठक में शामिल होना जरूरी नहीं समझा। इतना ही नहीं इस एकजुट होने की मुहिम में लगे केसीआर का कोई प्रतिनिधि भी इस बैठक में नहीं आया। लेकिन अब इस बार देखना यह है कि आखिर कौन कौन बेहतर रणनीति के साथ राष्ट्रपति चुनाव में एकजुट होकर खड़ा होगा क्योंकि विपक्षी राष्ट्रपति चुनाव में जीत-हार की लड़ाई लड़ रहा। चुनाव होने की स्थिति में सत्तारूढ़ एनडीए के उम्मीदवार का जीतना लगभग तय माना जा रहा है।
दोनों पक्षों में से कौन सा पक्ष कितनी एकजुटता और कितना सामंजस्य बनाए रखते हुए कितनी अच्छी रणनीति से लड़ता है और यह भी कि बाड़ पर खड़े दलों में से कौन कितने को अपनी तरफ खींच पाता है। इस लिहाज से शिरोमणि अकाली दल, आम आदमी पार्टी, बीजेडी और वाईएसआरसीपी जैसे नॉन-एनडीए दल विपक्षी खेमे के लिए महत्वपूर्ण हैं। लेकिन अब विपक्ष की एकजुटता क्या संकेत देगी यह चुनाव के बाद ही पता चल पायेगा।