पितरों के प्रति श्रद्धा व कृतज्ञता व्यक्त करने का काल पितृपक्ष 30 सितंबर से

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पितरों के प्रति श्रद्धा व कृतज्ञता व्यक्त करने का काल पितृपक्ष 30 सितंबर से
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प्रख्यात ज्योतिषाचार्य पंडित ऋषि द्विवेदी के अनुसार शास्त्रों में मनुष्यों के लिए देव ऋषि एवं पित्र के रूप में तीन ऋण बताए गए हैं शास्त्र कहते हैं कि जिन माता-पिता ने हमारी आयु आरोग्यता और सुख सौभाग्य आदि के अभिवृद्धि के लिए अनेक प्रयास किया उनके ऋण से मुक्त न होने पर हमारा जन्म ग्रहण करना निरर्थक होता है |

इसलिए सनातन में पितरों के प्रति श्रद्धा निवेदित करने के लिए पितृपक्ष की व्यवस्था बनी पितृपक्ष का प्रारंभ 30 सितंबर से माना जाएगा अश्विन प्रतिपदा तिथि 29 सितंबर शाम 4:02 पर लगेगी वह 30 को दोपहर 1:58 तक रहेगी पूर्णिमा का श्राद्ध 29 सितंबर को होगा पितृ विसर्जन या सर्व पितृ अमावस्या 14 अक्टूबर को है |

पितरों को ना करें नाराज : शराब तिथि को रात्रि में मुख्य द्वार पर दीपक जलाकर पितृ विसर्जन किया जाता है पितृ लोग अपने पुत्र आदि से साथ तर्पण की अपेक्षा करते हैं यह उपलब्ध नहीं होता तो वह श्राप देकर चले जाते हैं अतः सभी सनातनी को पितृ पक्ष में पितरों की मृत्यु तिथि को जल तिल जो कुछ और पुष्पादि श्रद्धा और ग्रास देकर एक तीन या पांच ब्राह्मण को भोजन कर देने मात्र से पित्रगढ़ संतुष्ट हो जाते हैं उनके ऋणों से मुक्ति मिलती है इस कार्य की अपेक्षा नहीं करनी चाहिए इसके लिए जी मास की तिथि को माता-पिता आदि की मृत्यु हुई हो उसे तिथि को श्राप दर्पण गौ ग्रास और ब्राह्मणों को भोजन आदि करना आवश्यक है इससे पित्रगढ़ प्रसन्न होते हैं |

सनातन धर्म में तर्पण - श्राद्ध मध्याहन में होना आवश्यक है। इस दृष्टि से पितृ पक्ष का प्रारंभ 30 सितंबर से माना जाएगा। आश्विन प्रतिपदा तिथि 29 सितंबर शाम 4:02 बजे लगेगी। वह 30 को दोपहर 1:58 बजे तक रहेगी। पूर्णिमा का श्राद्ध (नांदीमातामह श्राद्ध) 29 सितंबर को होगा। पितृ विसर्जन या सर्वपितृ अमावस्या 14 अक्तूबर को है।

सूक्ष्म विधि :दूरदराज में रहने वाले सामग्री उपलब्ध नहीं होने, तर्पण की व्यवस्था नहीं हो पाने पर एक सरल उपाय के माध्यम से पितरों को तृप्त किया जा सकता है। दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके खड़े हो जाइए। अपने दाएं हाथ के अंगूठे को पृथ्वी की और करिए 11 बार पढ़ें ॐ तस्मै स्वधा नमः यह पितरों के प्रति आपकी भावाजलि होगी।

विशेष तिथियां :

मातृ नवमी 7 अक्टूबर: इस दिन यदि माता की मृत्यु तिथि ज्ञात न हो तो श्राद्ध करने के साथी सौभाग्यवती स्त्रियों के श्राद्ध का विधान है|

आश्विन कृष्ण एकादशी 10 अक्टूबर : इस दिन इंदिरा एकादशी व्रत उपवास सहित एकादशी का श्राद्ध होगा |

द्वादशी श्रद्धा 11 अक्टूबर: इस दिन सन्यासी यति वैष्णव जन के श्राद्ध का विधान है|

आश्विन कृष्ण चतुर्दशी 13 अक्टूबर: किसी दुर्घटना में मृत व्यक्तियों का श्राद्ध स्थिति पर किया जाता है |

सर्वपितृ अमावस्या 14 अक्टूबर :जिस मृतक की तिथि ज्ञात न हो या किन्हीं कर्म से नियत तिथि पर श्रद्धा ना हो सका हो तो उनके निमित्त अमावस्या को श्राद्ध किया जाता है


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