निचली अदालतों और हाई कोर्ट के स्टे ऑर्डर अपने आप रद्द नहीं होते, Supreme Court का बड़ा फैसला
स्टे ऑर्डर को लेकर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने अहम फैसला सुनाया है। शीर्ष कोर्ट ने कहा कि ट्रायल कोर्ट या हाई कोर्ट द्वारा दिया गया स्टे ऑर्डर छह...
स्टे ऑर्डर को लेकर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने अहम फैसला सुनाया है। शीर्ष कोर्ट ने कहा कि ट्रायल कोर्ट या हाई कोर्ट द्वारा दिया गया स्टे ऑर्डर छह...
स्टे ऑर्डर को लेकर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने अहम फैसला सुनाया है। शीर्ष कोर्ट ने कहा कि ट्रायल कोर्ट या हाई कोर्ट द्वारा दिया गया स्टे ऑर्डर छह महीने के बाद स्वत: खत्म नहीं हो सकता। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संवैधानिक अदालतों को मामलों के निपटारे के लिए समयसीमा तय करने से बचना चाहिए।
हालांकि, कोर्ट ने कहा कि असाधारण परिस्थितियों में ऐसा किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने कहा कि ये नियम है कि दीवानी और आपराधिक मामलों में दिया गया स्थगन आदेश 6 महीने के बाद स्वतः समाप्त नहीं होता है जब तक कि आदेशों को विशेष रूप से बढ़ाया न जाए। इसी के साथ सर्वोच्च न्यायालय ने 2018 के अपने ही उस आदेश को पलट दिया है, जिसके तहत पहले किसी अदालत की तरफ से स्टे के अंतरिम आदेशों को, जब तक कि विशेष रूप से उन्हें बढ़ाने का आदेश न स्पष्ट हो, छह महीने बाद अपने आप रद्द मान लिया जाता था। तब सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा था कि किसी अंतरिम स्टे ऑर्डर को बढ़ाने के लिए अदालतों (हाईकोर्ट या निचली अदालतों) को स्पष्ट आदेश जारी करने होंगे।