किसान आन्दोलन की आड़ में अपनी राजनीति चमकाते योगेन्द्र यादव
किसान आन्दोलन अब एक ऐसी दिशा की ओर जा रहा है जहाँ से उसके दिशाहीन हो जाने की संभावना बढ़ रही है - वही ये आन्दोलन जिस तरह राजनीतिक रूप लेता जा रहा है...

किसान आन्दोलन अब एक ऐसी दिशा की ओर जा रहा है जहाँ से उसके दिशाहीन हो जाने की संभावना बढ़ रही है - वही ये आन्दोलन जिस तरह राजनीतिक रूप लेता जा रहा है...
किसान आन्दोलन अब एक ऐसी दिशा की ओर जा रहा है जहाँ से उसके दिशाहीन हो जाने की संभावना बढ़ रही है - वही ये आन्दोलन जिस तरह राजनीतिक रूप लेता जा रहा है उसमे इसके आगे चलकर हिंसक हो जाने की सम्भावना भी बढती चली जा रही है -
अमीर बनाम गरीब किसान
ये आन्दोलन अमीर और गरीब किसानो के बीच की खाई को भी दिखा रहा है | एक तरफ आन्दोलन कर रहे पंजाब और हरयाणा के किसान जिन्होंने अपने ट्रेक्टर और अन्न से पूरा सड़क जाम कर रखा है और दूसरी ओर इनकी ओर देखता यूपी , बिहार, एमपी का गरीब किसान जिसके पास अपने परिवार को भी खिलने के लिए पर्याप्त अन्न नहीं है -
ये वो किसान है जो एमएसपी का नब्बे फीसदी तक फायदा उठाते है और ये उनके भविष्य से जुड़ा प्रश्न है -
उनकी तरह बड़ी गाड़ी और बड़े संसाधन रखने की आश लिए हिंदी भाषी क्षेत्र का किसान, जिसको एमएसपी पर अन्न बेचने की बात तो दूर उसका मतलब भी 90 फीसदी को पता नही होगा इसलिए चिंतित नहीं है -
पर इन सारी वजहों के बावजूद भी ये किसान आन्दोलन कई मायनों में महत्वपूर्ण है -
अन्ना आन्दोलन के बाद कोई बड़ा आन्दोलन जिसमे स्थापित नेता की कोई भूमिका नही है |
किसानो के समर्थन में ज्यादातर लोग पर राजनीतिक पार्टियों के इसमें जुड़ने से अब लोग दूर भी हो रहे है |
कांग्रेस का समर्थन तो समझ में आता है पर अभी तेलंगाना में केसीआर को बीजेपी सो जो झटका मिला है उसके कारण आन्दोलन का समर्थन -
सपा का अपने घटे हुए समर्थन को पुनर्जीवित और कार्यकर्ताओ में जोश भरने का आन्दोलन |
शिवसेना का बीजेपी विरोध की हर हद पार कर लेने की जिद के कारण समर्थन |
एनसीपी जो कभी प्राइवेट मंडी का समर्थन करती रही अब बीजेपी को मौका मिलने पर अपनी पार्टी को तोड़ने की सजा देने के लिए समर्थन |
राजस्थान से ज्यादा आवाज नहीं आ रही है क्योंकि वहा पर किसान ज्यादा बड़ा है ही नहीं और खेती का संकट है - वोट बैंक के कारण मज़बूरी में समर्थन -
अब इन सब लोगो के समर्थन के कारण किसान आन्दोलन कमजोर हो जाएगा क्योंकि अब जनता पक्ष और विपक्ष में जनता बंट जायगी -
दोनों के सोशल मीडिया में खालिस्तान और आतंकवाद के अलावा एक दुसरे पर आरोप -प्रत्यारोप बढेगा |
सरकार को क्या करना चाहिए
प्रधानमंत्री को स्वयं आगे आकर किसानो से बात कर उनका विश्वास बहाल कर के इस पर राजनीति को पूर्णविराम लगा देना चाहिय - ज्यादा लम्बा खीचने पर ये आन्दोलन हिंसक हो जाएगा क्योंकि उसमे शरारती तत्व भी भेष बदल कर शामिल हो गए होंगे -
देश के किसानो के सम्मान के लिए सरकार को स्वयं से आगे आकर पक्ष -विपक्ष के बड़े नेताओ की एक कमेटी बनाकर इसे उसके हवाले कर देना चाहिए जिसमे किसान नेता भी मेम्बर हो और इनको किसान कानून में संसोधन और परिवर्तन करने के अधिकार देना चाहिए -