बंगाल की राजनीति में पहली बार हुई जाति की राजनीति पढ़ें पूरी खबर
पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव से पहले जाति की राजनीति में बंगाल में अपने पैर जमा लिए हैं। आपको बता दें कि दिल्ली हरियाणा उत्तर प्रदेश जो हिंदी भाषा...


पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव से पहले जाति की राजनीति में बंगाल में अपने पैर जमा लिए हैं। आपको बता दें कि दिल्ली हरियाणा उत्तर प्रदेश जो हिंदी भाषा...
पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव से पहले जाति की राजनीति में बंगाल में अपने पैर जमा लिए हैं। आपको बता दें कि दिल्ली हरियाणा उत्तर प्रदेश जो हिंदी भाषा बोलने वाले प्रदेश हैं वह कास्ट पॉलिटिक्स जबरदस्त होती थी। वही बंगाल में अभी तक जाति की राजनीति का नामोनिशान नहीं था परंतु 2020 में होने वाले विधानसभा चुनाव की वजह से बीजेपी और टीएमसी में जमकर भिड़ंत होती है और जाति की राजनीति एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन जाती है।
इसी के साथ ओबीसी व अन्य सभी छोटी से छोटी व बड़ी से बड़ी जातियों को लुभाने के लिए टीएमसी और बीजेपी ने एक से एक योजनाओं का ऐलान अपने घोषणा पत्र में शुरू कर दिया है। एक दूसरे पर प्रहार करते हुए ममता बनर्जी ने कुर्मी जाति को अति पिछड़ी जाति में डालने का प्रस्ताव प्रस्तुत किया है। इसी के साथ बीजेपी के अध्यक्ष जेपी नड्डा ने तेली जाति व अन्य कई जातियों को ओबीसी में शामिल करने का वादा किया है।
आपको बता दें कि बंगाल की राजनीति में पहली बार मतुआ समुदाय को वोट बैंक के आधार पर देखा जा रहा है। और कोई समुदाय विशेष ने ममता बनर्जी को जिताने का आश्वासन दे दिया है। बंगाल में हो रही राजनीतिक गतिविधियों से पूरा देश परिचित है। कैसे टीएमसी और भारतीय जनता पार्टी के बीच लोगों को लुभाने की होड़ लगी हुई है।आपको बता दें कि पश्चिम बंगाल में जाति राजनीतिक तब शुरू हुई जब 62% जनसंख्या ओबीसी व अन्य जातियों की पाई गई।
नेहा शाह