रिटायर्ड जस्टिस अब्दुल नज़ीर को राज्यपाल बनाने पर बवाल,शुरू हुआ कांग्रेस और भाजपा के बीच घमासान
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस सैयद अब्दुल नजीर को आंध्र प्रदेश का राज्यपाल बनाने जाने पर घमासान शुरू हो गया है। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस सैयद...
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस सैयद अब्दुल नजीर को आंध्र प्रदेश का राज्यपाल बनाने जाने पर घमासान शुरू हो गया है। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस सैयद...
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस सैयद अब्दुल नजीर को आंध्र प्रदेश का राज्यपाल बनाने जाने पर घमासान शुरू हो गया है। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस सैयद अब्दुल नजीर को आंध्र प्रदेश का राज्यपाल बनाने जाने पर घमासान शुरू हो गया है। कांग्रेस ने जस्टिस नजीर की नियुक्ति पर सवाल खड़े किए और पूछा कि न्यायिक व्यवस्था के लोगों को सरकारी पद क्यों दिए जा रहे हैं। पार्टी ने रविवार को कहा कि यह न्यायपालिका के लिए खतरा है। साथ ही केंद्र सरकार पर आरोप लगाया कि जो भी पीएम मोदी के लिए काम करता है उसे राज्यपाल बना दिया जाता है।
वहीं, कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने कांग्रेस के आरोपों पर पलटवार किया। उन्होंने कहा- राज्यपाल की नियुक्ति पर एक बार फिर से पूरा इको सिस्टम जोरों पर है। उन्हें बेहतर तरीके से यह समझना चाहिए कि वे अब भारत को अपनी पर्सनल जागीर नहीं समझ सकते। अब भारत संविधान के नियमों के अनुसार चलता है।
जस्टिस अब्दुल को गवर्नर बनाया जाना एक गलत नजीर बताया जा रहा है, लेकिन यह पहला मौका नहीं है, जब किसी जस्टिस को गवर्नर बनाया गया है। इससे पहले भी ऐसी ही नजीर सरकारों द्वारा पेश की गई हैं। जस्टिस अब्दुल नजीर बाबरी मस्जिद केस और तीन तलाक जैसे अहम मामलों की सुनवाई करने वाली बेंच का हिस्सा रहे हैं। जस्टिस नजीर से पहले पूर्व मुख्य न्यायाधीश पी. सदाशिवम और पूर्व जस्टिस एम. फातिमा बीवी भी गवर्नर बन चुकी हैं। जस्टिस पी. सदाशिवम को 2014 में केरल का गवर्नर बनाया गया था। नजीर से पहले यह आखिरी मौका था, जब किसी जज को गवर्नर बनाया गया था।जस्टिस नजीर 4 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट से रिटायर हुए हैं। 40 दिन बाद ही उन्हें गवर्नर बना दिया गया है। जस्टिस नजीर राम मंदिर पर फैसला देने वाली बेंच में शामिल थे। उन्होंने मंदिर निर्माण के पक्ष में फैसला दिया था।
अब सवाल ये उठता है कि आखिर किस आधार पर रिटायर्ड जस्टिस नजीर का राज्यपाल बनना गलत है? क्या सही में किसी रिटायर्ड जज का राज्यपाल बनना न्यायिक व्यवस्था को कमजोर करता है? क्या लोगों का विश्वास न्यायिक प्रक्रिया में कम हो जाता है? अब संविधान ने कभी भी किसी जज को राज्यपाल या दूसरे सरकारी पद संभालने से नहीं रोका है। संविधान में स्पष्ट तौर पर बताया गया है कि कौन राज्यपाल बन सकता है, राज्यपाल के पास क्या शक्तियां रहती हैं। संविधान के आर्टिकल 157 और 158 में राज्यपाल पद को लेकर विस्तार से बताया गया है। । संविधान के मुताबिक जो भारत का नागरिक है, जिसकी उम्र 35 या उससे ज्यादा है, जो संसद या विधानमंडल के किसी सदन का सदस्य ना हो, जो किसी भी लाभ वाले पद पर ना रहा हो, जो कुछ समय से राजनीति में सक्रिय नहीं है, उसे राज्यपाल बनाया जा सकता है।अब संविधान के ये प्रावधान बताते हैं कि रिटायर्ड जस्टिस नजीर का राज्यपाल बनना किसी भी तरह से गलत नहीं है। वे ना राजनीति में सक्रिय हैं, ना उनके पास कोई लाभ वाला पद है और ना ही वे विधानमंडल के सदस्य रहे हैं. ऐसे में वे राज्यपाल बनने के लिए पूरी तरह योग्य हैं।
कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने दिवंगत नेता अरुण जेठली का एक वीडिया ट्वीट किया। 2012 के उस वीडियो अरुण जेठली कह रहे हैं- रिटायर्ड से पहले के फैसले रिटायर्ड के बाद मिलने वाली नौकरियों से प्रभावित होते हैं। यह न्यायपालिका की स्वतंत्रता के लिए खतरा है। कांग्रेस नेता ने वीडियो के कैप्शन में लिखा- निश्चित रूप से पिछले 3 से 4 सालों में इसके पर्याप्त सबूत हैं।वहीं, कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघ ने कहा- हम भी इसी भावना को साझा करते हैं, यह न्यायपालिका के लिए खतरा है। उन्होंने कहा कि यह किसी व्यक्ति विशेष के बारे में नहीं है। क्योंकि मैं उन्हें व्यक्तिगत रूप से जानता हूं, लेकिन हम रिटायर्ड के बाद न्यायाधीशों की नियुक्ति के खिलाफ हैं। सिंघवी ने कहा कि भाजपा का यह बचाव कि यह पहले भी हुआ था, कोई बहाना नहीं हो सकता और मुद्दा जस का तस है।