राजा और मंत्री दोनों ग्रह पाप या क्रूर ग्रह हो तो वह वर्ष देश समाज के लिए शुभ नहीं, कलयुग में भाद्र शुक्ल पक्ष १३ दिनों का बन रहा है दुर्योग : आचार्य ऋषि द्विवेदी

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राजा और मंत्री दोनों ग्रह पाप या क्रूर ग्रह हो तो वह वर्ष देश समाज के लिए शुभ नहीं, कलयुग में भाद्र शुक्ल पक्ष १३ दिनों का बन रहा है दुर्योग   : आचार्य ऋषि द्विवेदी

पंडित ऋषि द्विवेदी ,

ज्योतिषाचार्य , काशी

वैश्विक महामारी कोविड १९ को लेकर जिस प्रकार विश्वपटल पर भारत अमेरिका समेत तमाम देशों में महाप्रलय दिख रहा है जिसमें हर कोशिश नाकाम साबित हो रहा है। गौरतलब है कि २०१९-२० से महामारी आयी उस समय उतना नुकसान भारत का नहीं हुआ।

लेकिन दूसरी लहर कोविड का भारत समेत समूचे विश्व में प्रलय का रूप धारण कर चुका है। लोग आक्सीजन, डाक्टर, दवा के अभाव में प्राण जा रहा है। देश में चारों ओर मौत का सिलसिल थमने का नाम नहीं ले रहा और दिन पर प्रतिदिन तेजी से बढ़ता चला जा रहा है।

महामारी कब जाएगा कोई गारंटी के साथ नहीं बताने को तैयार किया। लोग अपनी कमियों को छुपाकर सरकार के सिस्टम को कोस रहे है। जितनी कमियां सरकार में है उतनी ही आमजन मानस में भी है।

क्या कहता है ज्योतिष शास्त्र

ज्योतिष शास्त्र में कहा गया है कि कालाधिनम जगत सर्वम अर्थात सभी कार्य समय अधीन है और काल ज्योतिष शास्त्र के अधीन है। तो महर्षि पाणिनी ने ज्योतिष शास्त्र को वेद पुरुष का नेत्र कहा है। ज्योतिषा मनैनम, चख्यु जिस प्रकार मनुष्य नेत्रों के अभाव में कुछ देख नहीं सकता उसी प्रकार वेद शास्त्र, वेद कर्मों को जानने के लिए ज्योतिष शास्त्र का महत्व स्वण सिद्ध है।

ज्योतिष शास्त्र में त्रैकालिक प्रभाव को जाना जा सकता है। जिससे भूतल, अंतरिक्ष एवं भूगर्भ के प्रत्येक पदार्थों का त्रैकालिक ज्ञान के शास्त्र मंे है। वह ज्योतिष शास्त्र है। भारतीय आर्य मनीषियों ने इसी आधार पर ज्योतिष शास्त्र की स्थापना कर भविष्य कथन की व्याख्या की।

देखा जाए तो हिन्दी नव वर्ष २०७८ के प्रवेश के साथ ही कोरोना की दूसरी स्ट्रेन्थ से भारत समेत सम्पूण विश्व मौत का तांडव मचा हुआ है। श्मशानों पर लाशों को जलाने के लिए जगह अभाव तो नई जगह खोज कर श्मशान बनाया जा रहा है।

बात यहीं पर नहीं रुकी तीसरो स्ट्रेथ भी जून में भारत मंे आने वाला है। यह सोचकर घबराहट बेचैनी के आगोश में बचने का कोई उपाय नहीं जिससे आम जनमानस मर्माहत होकर ईश्वर की शरण में आराधना प्रार्थना तक कर रहे है। ज्योतिष की दृष्टि से देखा जाए तो हिन्दी नव वर्ष में खगोल मंडल में कई दुरुयोग बने हुए है। सर्वप्रथम २०७८ के जग लग्न में बना राहु, मंगल युति से अंगारक योग जो महामारी का एक यह भी कारण है।

तो दूसरा इस वर्ष नव वर्ष के राजा और मंत्री मंगल है। शास्त्र के अनुसार जिस वर्ष राजा और मंत्री दोनों ग्रह पाप या क्रूर ग्रह हो तो वह वर्ष देश समाज के लिए शुभ नहीं माना जाता है। तीसरा कारण २६ मई को चंद्रग्रहण जो भारत में खग्रास चंन्द्रग्रहण आंशिक रूप से भारत में सुदुर पूर्वात्तर और पश्चिम बंगाल मंे कुछ भाग में दृश्य होगा। शास्त्र के अनुसार ग्रहण से पूर्व व ग्रहण लगने से आगे १५ दिनों तक इसका विशेष प्रभाव रहता है।

चन्द्रग्रहण भी एक खगोलीय घटना है। हालांकि इस प्रकार के खगोलीय घटना को समय अंतराल पर घटती रहती है। जिसका दुष्प्रभाव देखने को मिलता रहता है। लेकिन कोरोना के दूसरे स्टे्रन्थ में इस बार इनकी बढ़ी ही अहम भूमिका है। इससे पहले भी कई बार महामारी आ चुकी है इसलिए इस प्रकार के कई दुरुयोग आकाश मंडल में बने थे।

लेकिन इस वर्ष २०७८ में जो सबसे बड़ा दुरुयोग बना है वह संवत २०७८ (२१-२२) में भाद्र शुक्ल पक्ष १३ दिनों का ही है। जिससे भाद्र शुक्ल प्रपदा व भाग शुक्ल त्रयोदशी दो तिथियों का क्षय है। देखा जाए तो किसी भी पक्ष में किसी की हानि और वृद्धि हो सकता है।

लेकिन १३ दिनों का पक्ष हजारों वर्षों के बीच एक बार ही आता है। इसका वर्णन महाभारत के भीष्म पर्व मंे है। कहा गया है कि चत्रुर्दशी पंचदशी, भूतपूर्वा, च षोडशीम। इमाम तो नाभि जाने हम का व स्र्या त्रयोदशी।। अपर्वणामी गृहम याको, उत़्त्तरा शनि क्षय अथ मीक्षत:।। वहीं भीष्म पितामह कहते है कि १४, १५ और १६ दिनों के पक्ष तो रहते है इस वर्ष में इसी समय १३ दिनों का पक्ष आया है। अत: यह समय प्राणियों के लिए संहारक है।

तो वहीं दूसरी तरफ ज्योतिष ग्रंथों ज्योतिष निबंधवाली तथा स्मृतिरत्नावलनी मंे कहा गया है कि य राच जायते पक्ष त्योतदह विनाशत। भवेनलोक क्षयो मुंडमाला, कृपा, मही यहां पर भी कहा गया है कि जिस पक्षों में दो तिथियों का क्षय होता है अर्थात १३ दिनों का ही पक्ष होता है उस वर्ष में भारी जन-धन हानि बड़ी लड़ाई, भयंकर द्वेष, किसी भी तरह से जनहानि होती है।

देखा जाए तो १३ दिनों का पक्ष द्वापर युग के महामभारत काल में पड़ा था। अर्थात कलयुग का यह ५१२२ रहा है। ५१२२ वर्ष पूर्व द्वापर युग था। उस समय १३ दिनों के पक्ष में महाभारत हुआ था। जिसमें भारी जन-धन हानि हुई थी। कहने का अभिप्राय यह है कि यह २०७८ में जहां कोरोना अधिकाधिक फैलकर मनुष्य को काल के गाल मंे ले रहा है। अंगारक योग तो राजा मंत्री मंगल का होना किसी भारी आपदा, प्राकृतिक आपदा, भूकंप सुनामी को दर्शा रहा है।

१३ दिन का पखवारा धरती पर बड़ी ही महामारी भारी जन-धन की हानि को दर्शा रहा है। अत: भारत समेत विश्व पटल को २०२१ तक सावधान रहने की आवश्यकता होगी। भाद्रशुक्ल का पखवारा ८ सितंबर से प्रारंभ होकर २० सितंबर तक रहेगा। हो सकता है कि इस वर्ष के १३ दिनों का ही पखवारा होने से महामारी चरम की ओर अग्रसर है। लेकिन १३ दिनों के पखवारे के बाद कुछ कमी जनहानि की होगी। लेकिन राहत की सांस संवत २०७८ के जाने के बाद ही होगी। अर्थात मार्च २०२२ के बाद।

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