'जयंती योग 'में श्रीकृष्ण जन्मोत्सव व्रत-पूजन से मिलेगा कई गुना फल

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जयंती योग में श्रीकृष्ण जन्मोत्सव व्रत-पूजन से मिलेगा कई गुना फल

प्रख्यात ज्योतिषाचार्य पं. ऋषि द्विवेदी के अनुसार सनातन धर्म में भाद्र कृष्ण अष्टमी को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी अर्थात भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव मनाने की परम्परा है। भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भाद्र मास, कृष्ण पक्ष की अष्टमी, बुधवार को रोहिणी नक्षत्र में अर्धरात्रि में वृषभ राशि के उच्च के चंद्रमा में हुआ था। लम्बे अंतराल के बाद इस बार ऐसा ही अद्भुत योग बन रहा है। इस महायोग को जयंती योग कहा जाता है।


भाद्रपद कृष्ण पक्ष की अष्टमी को लड्डू गोपाल का जन्मोत्सव मनाया जाएगा। ज्योतिष गणना के अनुसार इस वर्ष जन्माष्टमी दशकों बाद का अद्भुत संयोग लेकर आ रही है। बताया जा रहा है कि जिस तरह द्वापर युग में अष्टमी तिथि को चंद्रमा उच्च भाव में विराजमान थे, ठीक उसी तरह इस बार भी जन्माष्टमी पर रोहिणी नक्षत्र में ये अद्भुत संयोग पढ़ रहा है। बीते वर्ष तिथि को लेकर भ्रम की स्थित बनी थी, लेकिन इस बार जन्माष्टमी छह सितम्बर और सात सितम्बर दोनों दिन मनाया जायेगा।

इसमें वार, तिथि, नक्षत्र तीनों का संयोग भाद्र कृष्ण अष्टमी को बैठता है। इस बार यह योग छह सितम्बर को बन रहा है। देखा जाये तो भाद्र कृष्ण अष्टमी तिथि छह सितम्बर को रात्रि 07:58 पर लगेगी जो सात सितम्बर को रात्रि 07:52 मिनट तक रहेगी। जबकि रोहिणी नक्षत्र छह सितम्बर को दिन में 02:39 मिनट पर आयेगी जो सात सितम्बर को दिन में 03:07 मिनट तक रहेगी। छह सितम्बर को ही बुधवार का संयोग है। वहीं, गोकुलाष्टमी उदयाव्यापिनी रोहिणी मतावलम्बी वैष्णवजन सात सितम्बर को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी मनायेगी। जबकि गृहस्थ जन्माष्टमी व्रत की पारणा सात सितम्बर को प्रातः करेंगे। यह सर्वमान्य और पापग्न व्रत बाल कुमार, युवा, वृद्ध सभी अवस्था वाले नर-नारियों को व्रत-पूजन विधि व्रतियों को चाहिए कि उपवास के पहले दिन रात्रि में अल्पाहार करें।

रात्रि में जितेन्द्रिय रहे और व्रत के दिन प्रातः स्नानादि नित्य कर्म करके सूर्य, सोम, पवन, दिग्पति, भूमि, आकाश, यम और ब्रह्मादि को नमस्कार करके उत्तरमुख बैठे। हाथ में जल, अक्षत, कुश, पुष्प लेकर मास, तिथि एवं पक्ष का उच्चारण कर संकल्प लें। संकल्प में 'मेरे सभी तरह के पापों का शमन व सभी अभिष्टों की सिद्धि के लिए श्रीकृष्णजन्माष्टमी व्रत करेंगे या करूंगी' यह संकल्प करें। मध्यान में काला तिल के जल से स्नान कर देवकी जी के लिए सूतिका गृह नियत करें।

उसे स्वच्छ व सुशोभित करके उसमें सूतिका उपयोगी समस्त सामग्री यथाक्रम रखें। फिर एक सुंदर विछौना के ऊपर अच्छादि का मंडल बनाकर उस पर कलश स्थापन करें और उसी पर सद्यःप्रसूत श्रीकृष्ण मूर्ति स्थापित करें। रात्रि में भगवान के जन्म के बाद जागरण इत्यादि करना चाहिए। इस व्रत को करने से पुत्र की इच्छा रखने वाली महिलाओं का पुत्र, धन की कामना करने वालों करना चाहिए। इससे अनेक पापों को निवृत्ति और को धन यहां तक इस व्रत को करके कुछ भी पाना असंभव नहीं रहता है।

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