मां कामाख्या देवी के दर्शन से होती है मनोवांछित फल की प्राप्ति

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मां कामाख्या देवी के दर्शन से होती है मनोवांछित फल की प्राप्ति

क्षेत्र के उत्तरी दिशा में आदि गंगा गोमती नदी के तट पर पन्ही गांव में स्थित माता कामाख्या देवी मन्दिर का इतिहास बहुत ही पुराना है। मान्यता है कि नवरात्रि में मां कामाख्या की पूजा अर्चना करने एवं दीपक जलाने से भक्तों को सभी मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती है।

पन्ही गांव निवासी व मन्दिर के पुजारी सुरेंद्र दास महराज बताते हैं कि लगभग ढाई सौ वर्ष पूर्व पन्ही निवासी एक व्यक्ति मकान निर्माण कराने के लिये नींव की खुदाई करा रहे थे। खुदाई के दौरान एक पत्थर से फावड़ा टकराया और पत्थर से रक्त निकलने लगा। बताते है कि रक्त पत्थर से इतना निकला की खून से जगह भर गयी। इसके बाद खुदाई बन्द कर दी गयी। दूसरे दिन नीव की खुदाई में माता की मूर्ति जो कि काले पत्थर की थी और माता जी मगरमच्छ पर सवार थी, उसे निकालकर दीना बाबा द्वारा स्थापित कर दिया गया। माता की मूर्ति के साथ जो शिवलिंग मिला उसे भी दीना बाबा ने माता जी के मूर्ति के साथ कुछ दूरी पर स्थापित कर दिया। बताया जाता है कि अज्ञात वास के दौरान पाण्डवों द्वारा मां कामाख्या देवी की आराधना की गयी थी। देवी मन्दिर की दीवारें लाखौरी ईंटो से निर्मित है।

मान्यता है कि माता जी के मन्दिर में दीपक जलाने व दर्शन करने से लोगों को मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। देवी मन्दिर पर प्रत्येक सोमवार को जहां भक्त दर्शन के लिये आते हैं वहीं नवरात्रि में भक्तों एवं श्रद्धालुओं की काफी भीड़ होती है।

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