यौन हिंसा और युद्ध : सन्दर्भ स्त्री - युद्ध लड़ते पुरुष है पर टूटती स्त्री है , लुटती भी स्त्री है , बिखरती भी स्त्री है

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यौन हिंसा और युद्ध : सन्दर्भ स्त्री -    युद्ध लड़ते पुरुष है पर टूटती स्त्री है , लुटती भी स्त्री है , बिखरती भी स्त्री है

यौन हिंसा और युद्ध : सन्दर्भ स्त्री पर सोशल मीडिया और सिल्वर जुबली समिति द्वारा एक व्याख्यान का आयोजन किया जा रहा है | इस व्याख्यान में मुख्य वक्ता प्रो. गरिमा श्रीवास्तव , सेंटर ऑफ़ इंडियन लैंग्वेजेज ,जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी, नई दिल्ली से है और अतिथि वक्ता डॉ. प्रीति चौधरी , राजनीति शास्त्र विभाग , बाबासाहेब भीमराव आंबेडकर यूनिवर्सिटी से है | इस व्याख्यान का संचालन प्रो. गोविन्द जी पांडेय , संकायाध्यक्ष , मीडिया एवं संचार विद्यापीठ करेंगे |

युद्ध की विभीषिका अगर किसी को बहुत ज्यादा महसूस होती है तो वो स्त्री है | युद्ध लड़ते पुरुष है पर टूटती भी स्त्री है , लुटती भी स्त्री है , बिखरती भी स्त्री है | युद्ध की विभीषिका को झेलने वाले देश आज जिस बात से सबसे ज्यादा प्रभावित है वो युद्ध के दौरान और उसके बाद यौन हिंसा है |

आज अफगानिस्तान में युद्ध के बाद जो सबसे बड़ा बदलाव आया है वो वहां की स्त्री के जीवन में है , पुरुष को परेशानी है पर स्त्री कैद में है | और ये सिर्फ अफगानिस्तान का हाल नहीं है | सदियों से चला आ रहा है | कोई राजा अपना राज हारता था तो विजेता उनकी स्त्री को सबसे पहले अपने कब्जे में लेता था |

और ये कहानी हर देश की है इंग्लैंड हो या अमेरिका , भारत हो या चीन , जापान हो या रसिया , हर जगह युद्ध और युद्ध के बाद की हिंसा में सबसे ज्यादा अपराध यौन हिंसा के होते है | और जरुरी नहीं है की ये अपराध बाहर के लोग ही करे , अपने देश , परिवार के लोग भी जब मन होता है स्त्री को अपनी यौन हिंसा का शिकार बना लेते है |

स्त्री कब सिर्फ देह में बदल गयी ये पता ही नहीं चला , और जब पता चला तब तक देर हो चुकी थी |

जुड़िये इस व्याख्यान से और सुनिए विशेषज्ञों की बातें





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