अहंकार है विनाश की जड़ स्वामी चैतन्य जी महाराज
हैदर गढ़ बाराबंकी 25 मार्चअहंकार विनाश की जड़ है। इससे मनुष्य का पतन होता है और वह मरने के बाद भी निंदा का पात्र बनता है। यह विचार इत्र की नगरी...


हैदर गढ़ बाराबंकी 25 मार्चअहंकार विनाश की जड़ है। इससे मनुष्य का पतन होता है और वह मरने के बाद भी निंदा का पात्र बनता है। यह विचार इत्र की नगरी...
हैदर गढ़ बाराबंकी 25 मार्च
अहंकार विनाश की जड़ है। इससे मनुष्य का पतन होता है और वह मरने के बाद भी निंदा का पात्र बनता है।
यह विचार इत्र की नगरी कन्नौज से समागत सन्यासी चैतन्य जी महाराज ने बहुताधाम के मानस संत सम्मेलन के पांचवे दिन व्यक्त किये।
स्वामी जी ने बताया कि प्रायः जीव को बल विद्या रूप धन का अभिमान हो जाता है। इसके कारण वह दूसरों का अपमान और अत्याचार करने लगता है। रावण और कंस आदि का अहंकार इतना बढ़ गया था कि वे सारे संसार को पीड़ित करने लगे थे । अतः भगवान ने स्वयं अवतार लेकर उनका अंत किया।
आज भी रावणादि की निंदा होती है और कोई अपनी संतान का नाम रावण या कंस नहीं रखता।
लखनऊ से आए पंडित बृजेश शास्त्री भागवताचार्य ने कहा कि परमात्मा परीक्षा का विषय नहीं है अपितु प्रतीक्षा का विषय है। इंद्र पुत्र जयंत ने भगवान की परीक्षा लेनी चाहिए अतः उसे दंड मिला। दूसरी ओर जटायु ने भगवान राम के आगमन की प्रतीक्षा की जिससे उसे उत्तम गति मिली और वह अधम पंछी होकर भी भक्ति का आदर्श हो गया।
प्रोफेसर डॉ जितेंद्र नाथ पांडे ने तुलसी के व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हुए बताया कि जिस प्रकार प्राचीन ऋषियों ने पर्वतों की गुफा और पावन नदियों के तट पर कठोर तप करके वेद मंत्रों का दर्शन किया और वेदों की रचना हुई। उसी प्रकार दीर्घकाल तक किए गए नाम जप के प्रभाव से तुलसी के हृदय में वेद उपनिषद पुराण आदि में समाहित समस्त ज्ञान राशि का उदय हुआ और उन्होंने मानस जैसे अद्भुत लोक कल्याणकारी ग्रंथ की रचना की।
शंभू प्रसाद सुमति हिय हुलसी।
रामचरितमानस कवि तुलसी ।।
रायबरेली के पंडित शिव शरण अवस्थी ने कहा कि संसार का प्रत्येक प्राणी भगवान की रचना है। अतः किसी भी प्राणी की हिंसा करना या दुख देना सृष्टि का अपमान और पाप है ।
पंडित स्वामी दीन शुक्ला रामायणी ने बताया कि जीव और ब्रम्ह में कोई भेद नहीं है। जीव ब्रह्म का ही अंश है। ब्रम्ह विकार रहित किंतु जीव शत्रु मित्र अपना पराया रूपी अविद्या मोह के कारण अपने वास्तविक स्वरूप को भूलकर जन्म मृत्यु के जाल में फस कर दुख भोग रहा है पंडित रामेश्वर प्रसाद द्विवेदी ने कहा कि मनुष्य योग प्रधान है जबकि पशु भोग प्रधान हैं। अतः मनुष्य को भगवान से धन वैभव जैसी भोग की वस्तुएं ना मांग कर स्वयं भगवान को ही पाने की लालसा करनी चाहिए ।
पंडित अजय शास्त्री जी ने बताया कि रामचरितमानस से हमें राष्ट्रवाद और देश प्रेम की प्रेरणा मिलती है।
इनके अतिरिक्त पंडित भुवनेश्वर दीक्षित पन्नालाल प्रेमी महंत लालता दास पंडित अभय नाथ शास्त्री सर्वेश मिश्रा आदि ने अपने संबोधन से श्रद्धालुओं को भावविभोर किया।
प्रवचन सभा में सेवानिवृत्त शिक्षा अधिकारी माता प्रसाद अवस्थी, कवि आसाराम अवस्थी धीर, सीताकांत अवस्थी उमा नाथ शुक्ला राम भगत सिंह जिला पंचायत सदस्य प्रतिनिधि रामभीख त्रिवेदी राम अवध दीक्षित राम किशोर पांडे सहित दूर दूर से आए प्रतिष्ठित लोग उपस्थित रहै।