"अतिक्रमण से अधिक खतरनाक जर्जर इमारतें''

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अतिक्रमण से अधिक खतरनाक जर्जर इमारतें
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मुंबई के मलाड क्षेत्र में पुरानी तीन मंजिला ईमारत ढह गई. कुछ लोगों के मलबे में दबे होने की शंका है.ऎसी ही घटनाएं देश के विभिन्न शहरों और महानगरों में बरसात के वक्त होती रहती है. स्थानीय प्रशासन तब जागता है जब कोई घटना घट जाती है. उससे पहले उसे ज़रा भी ख्याल नहीं रहता कि अपने शहर में कितनी जर्जर व खतरनाक इमारतें हैं जिनपर कार्रवाई करना उचित है ? जबकि ये उसकी महत्वपूर्ण जवाबदारी है. अतिक्रमण की मुहीम भी जब चलाई जाती है जब लोग परेशान हो जाते हैं या आवागमन अवरूद्व होने लगता है. स्थानीय प्रशासन के पास कोई छोटा-मोटा अमला नहीं होता. सबके काम बंटे होते हैं फिर आखिर वे उसे समय-समय पर अंजाम क्यों नहीं दे पाते ?

अतिक्रमण से अधिक खतरनाक जर्जर इमारतें और उनके रखरखाव पर ध्यान देना होता है. विभाग का काम सुरक्षा की दृष्टि से भी इमारतों के निरीक्षण का जिम्मा होता है. पर.....? हमारे देश में अनेक कॉलोनियों को पूर्णविकसित हुए बरसों हो गए हैं किन्तु अभी भी उनमें अनेक प्लाट खाली पड़े हैं जिनके कारण वहां के अड़ौसी-पड़ौसी हमेशा वहां फैली गंदगी से रोजाना दो-चार होते रहते हैं. जिससे बीमारियों फैलने ाका अंदेशा हमेशा बना रहता है. खाली प्लाट रखने की एक इयाद होनी चाहिए जिसके बाद वहां निर्माण आवश्यक कर देना चाहिए ताकि वहां बस्ती भी हो जाए और गंदगी भी न रह पाए. एक बात और है देश में कुछ वर्षों से स्वच्छता अभियान चल रहा है.

गिने-चुने शहर ही सफाई में बाजी मार रहे हैं. जबकि देश में हजारों शहर और महानगर हैं. आखिर वे क्यों नहीं ध्यान दे रहे हैं जबकि बड़े ग्रुप में भी एक साथ बाजी मारी जा सकती है बराबरी के अंक पाकर। केंद्र की योजना का लाभ आखिर सब शहर क्यों नहीं ले रहे हैं. और वे क्यों हैं उन शहरों से सीख रहे हैं कि वहां वे किस प्लानिंग से स्वच्छता में देश को सहयोग दे रहे हैं ? हर शहर का स्थानीय प्रशासन सजग हो जाए तो एक-एक करके वे पूरे देश को स्वच्छ बना कर ''स्वच्छ भारत अभियान'' सफल बना सकते हैं.........

शकुंतला महेश नेनावा

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