जीत गई सरकार हार गया आम आदमी, झारखंड में ऑक्सीजन ना मिलने पर बेटे ने अपने मुंह से दी मां को सांस, मां ने मौके पर दम तोड़ा....
कोरोना महामारी के कारण पूरा भारत देश इस वक्त जूझ रहा है। ऐसे में अस्पतालों के बाहर कुछ इस तरह मंजर दिखाई दे रहा है जिसकी वजह से आम आदमी लगभग टूटता जा...
कोरोना महामारी के कारण पूरा भारत देश इस वक्त जूझ रहा है। ऐसे में अस्पतालों के बाहर कुछ इस तरह मंजर दिखाई दे रहा है जिसकी वजह से आम आदमी लगभग टूटता जा...
कोरोना महामारी के कारण पूरा भारत देश इस वक्त जूझ रहा है। ऐसे में अस्पतालों के बाहर कुछ इस तरह मंजर दिखाई दे रहा है जिसकी वजह से आम आदमी लगभग टूटता जा रहा है। अस्पतालों के बाहर किसी को देखने वाला कोई नहीं बचा तथा लाशों के ढेर बाहर फेंके जा रहे हैं। अस्पतालों की व्यवस्था कुछ इस तरह से चरमरा गई है कि स्वास्थ्य कर्मचारी से लेकर चिकित्सक तथा चिकित्सीय उपकरण तक का कोई अता पता नहीं है।
दर्जन चिकित्सा तथा सैकड़ों कर्मचारी खुद अस्पताल के बिस्तर पर जिंदगी और मौत के बीच जंग लड़ रहे हैं। परंतु इस स्थिति के बाद भी प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा सिर्फ लंबे चौड़े वादे जनता को परोसे जा रहे हैं। जिसका जमीनी हकीकत से शायद कोई वास्ता तक नहीं है।
मामला सदर अस्पताल का है, जहां पर पीड़ित परिवार अपने परिजनों को लेकर चिल्लाते रहे परंतु उनके सुनने वाला कोई नहीं। नेपाल हाउस से आए एक परिवार में बेटा अपनी कोरोना पॉजिटिव मां का गोद सिर में रखकर गाड़ी में बैठा था। अस्पताल पहुंचने के बावजूद मरीज को वाहन से उतारने के लिए ना तो कोई व्यवस्था थी ना ही कोई कर्मचारी आया। मां को सांस लेने में काफी कठिनाई का सामना करना पड़ रहा था।
हजारों बार चिल्लाने के बावजूद उन्हें ऑक्सीजन का सिलेंडर उपलब्ध नहीं कराया। जिसके बाद दशा कुछ ऐसी बन गई कि बेटे ने मां को मुंह से सांस देना शुरू कर दिया। इस वायरस के और सरकार की खराब व्यवस्था के कारण मानव सभ्यता तक संकट में आ चुकी है।'
बेटा अपनी मां को मुंह में मुंह लगाकर लगातार सांस देने की कोशिश करता रहा। अस्पताल में लंबे औपचारिकता पूरी करने के बाद जैसे ही उसे ऑक्सीजन सिलेंडर मिला वह दौड़ कर अपनी मां के पास पहुंचा परंतु तब तक बहुत देर हो चुकी थी। अस्पताल की चौखट पर ही उम्मीद टूटने पर परिवार का भरोसा सरकार और अस्पताल दोनों से उठ गया। जिसके बाद पूरा परिवार चिल्लाने के साथ-साथ सिस्टम को कोसता रहा।
नेहा शाह