मोटापे से पीड़ित 12 साल की बच्ची की मेटाबोलिक सिंड्रोम के साथ सफल बैरियाट्रिक सर्जरी

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मोटापे से पीड़ित 12 साल की बच्ची की मेटाबोलिक सिंड्रोम के साथ सफल बैरियाट्रिक सर्जरी

प्रैडर-विली सिंड्रोम से पीड़ित मरीज में जेनेटिक डिसऑर्डर होते हैं जिस कारण उनमें मोटापा, निम्न बौद्धिक स्तर और छोटा कद जैसी समस्या होती है। मरीजों को व्यावहारिक, किशोरावस्था में देरी से प्रवेश करने तथा भूख लगने जैसी अन्य समस्याएं भी होती हैं। प्रैडर विली सिंड्रोम से भी जब मरीज को राहत नहीं मिलती है, तो उनके खानपान की आदतें बदलकर लाभ पहुंचाया जाता है। मैक्स सुपर स्पेशियल्टी हॉस्पिटल, वैशाली के डॉक्टरों ने मोटापे से पीड़ित 12 साल की ऐसी बच्ची पर सफल और सुरक्षित बैरियाट्रिक सर्जरी को अंजाम दिया, जिसका वजन 90.6 किलोग्राम था और वह बिस्तर पकड़ चुकी थी। बच्ची की डायग्नोसिस से पता चला कि वह प्रैडर-विली सिंड्रोम से पीड़ित है, जो वजन बढ़ते रहने के कारण होता है। मोटापे से पीड़ित बच्चों का इलाज अन्य मरीजों की तुलना में बहुत मुश्किल होता है और इसमें ऑपरेशन से पहले, ऑपरेशन के दौरान और ऑपरेशन के बाद बहुत सावधानी से हर चीज का मूल्यांकन करना पड़ता है।

इस मरीज का पेडियाट्रिक एंडोक्रोनोलॉजिस्ट और पेडियाट्रिशियनों की टीम ने संपूर्ण चेक अप किया। सभी उपाय कर लिए गए लेकिन बच्ची के बढ़ते वजन पर काबू नहीं पाया जा रहा था, इसलिए मैक्स हॉस्पिटल वैशाली के डॉक्टरों ने संपूर्ण जांच और एनेस्थिसिया के लिए बच्ची को फिट पाने के बाद बैरियाट्रिक सर्जरी का फैसला किया। बच्चे की स्थिति और डायग्नोसिस के बारे में मैक्स इंस्टीट्यूट ऑफ मिनिमल एक्सेस, बैरियाट्रिक एंड रोबोटिक सर्जरी के निदेशक और प्रमुख डॉ.विवेक बिंदल ने बताया, जन्म के समय से ही इस बच्ची का वजन बढ़ता जा रहा था। कई अस्पतालों के पेडियाट्रिक एंडोक्रोनोलॉजी और जेनेटिक विभागों के डॉक्टरों ने संपूर्ण जेनेटिक तथा हार्मोनल जांच कराई। तब जाकर वजन प्रैडर-विली सिंड्रोम के कारण वजन बढ़ते रहने का पता चला। साथ ही वह स्लीप एपनिया की गंभीर स्थिति में भी पहुंच चुकी थी जिस कारण उसकी नींद पूरी नहीं हो पाती थी और सोने के दौरान ऑक्सीजन स्तर 70 फीसदी से नीचे चला जाता था। इस कारण उसका वजन बढ़ाने वाला हार्मोन भी काम नहीं कर पा रहा था। पिछले दो वर्षों से उसका वजन तेजी से बढ़ने लगा था जिस कारण उसका खड़े रहने या चलना फिरना भी मुश्किल हो गया था। वह डेढ़ साल बाद घर से बाहर निकलकर हॉस्पिटल में आई थी। उस समय उसका वजन 90.6 किलो और कद 127 सेमी थी जबकि बीएमआई 56.2 किलोग्राम प्रति वर्गमीटर था।

लंबे समय तक बिस्तर पर पड़े रहने के कारण त्वचा में भी रक्त आपूर्ति नहीं हो पा रही थी। कुल मिलाकर उसकी स्थिति इतनी खराब हो चुकी थी कि वह व्हीलचेयर पर भी नहीं बैठ पा रही थी। इन सभी स्थितियों के अलावा अत्यधिक मोटापे के कारा उसका डायबिटीज स्तर भी बढ़ चुका था। इस तरह का चुनौतीपूर्ण केस हमारे लिए चिरस्मरणीय बन गया था। उसके मातापिता भी हताश हो चुके थे। पेडियाट्रिक एंडोक्रिनोलॉजी, पेडियाट्रिक इंटेंसिविस्ट, एनेस्थिसियोलॉजिस्ट तथा बैरियाट्रिक सर्जरी के विशेषज्ञों की टीम ने बच्ची में मेटाबोलिक सिंड्रोम के साथ मोटापे से पीड़ित रोग का पता लगाया। डॉ. बिंदल ने बताया, उसकी सभी स्थितियों का मूल्यांकन करने के बाद फैसला किया गया कि वजन कम करने के लिए बैरियाट्रिक सर्जरी ही एकमात्र विकल्प है। हालांकि प्रैडरविली सिंड्रोम में बैरियाट्रिक सर्जरी के बाद भी फिर से वजन बढ़ने की संभावना रहती है लेकिन हमारे पास कोई चार नहीं था। साथ ही ऐसे मरीजों के टिश्यू जल्दी दुरुस्त होकर काम नहीं कर पाते हैं। लेकिन परिवारवालों और क्लिनिकल टीमों के साथ विस्तृत विचार विमर्श के बाद बैरियाट्रिक सर्जरी का फैसला किया गया। सर्जरी के बाद बच्ची जब एनेस्थिसिया की बेहोशी से बाहर आई तो उसे वार्ड में शिफ्ट किया गया। सर्जरी सफल हो चुकी थी। उसे दो दिन बाद ही दर्दमुक्त स्थिति में अस्पताल से छुट्टी दे दी गई। हमें खुशी है कि दो महीने में ही उसका वजन 18 किलो कम हो चुका है और अब वह सहारे के साथ खड़ी होने में समर्थ है। वह और उसके परिजन को पूरा भरोसा है कि जल्द ही वह चलने-फिरने भी लगेगी।

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