छात्र आंदोलन पर लाठी बरसा खत्म करने का प्रयास

  • whatsapp
  • Telegram
  • koo
छात्र आंदोलन पर लाठी बरसा  खत्म करने का प्रयास

फीस बढ़ोतरी को लेकर शुरू हुआ आंदोलन पूरी तरह से राजनीतिक रंग में ढल गया है और अब यह विचारधारा की लड़ाई में बदलता चला जा रहा है।लकी जी ने अपनी विचारधारा के लिए जाना जाता है और राष्ट्र विरोधी विचारधारा को लगातार पनपने देना कहीं न कहीं विश्वविद्यालय के ऊपर प्रश्नचिन्ह लगाता है।

हालांकि जब फीस बढ़ोतरी की घटना को लेकर आंदोलन छात्रों ने शुरू किया तो बहुत सारे ऐसे लोग थे जो छात्र संगठनों के साथ खड़े थे और उन्होंने भी प्रत्यक्ष और परोक्ष इस आंदोलन को मदद की।पर जब भी आंदोलन वामपंथी कार्यकर्ताओं ने अपने हाथ में ले लिया और विवेकानंद की मूर्ति के नीचे अब शब्दों की भरमार कर दी तो कहीं न कहीं राष्ट्रवादी छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ता मजबूरन इस आंदोलन से हट गए।

छात्र आंदोलन को राजनीतिक आंदोलन में बदलने का दुष्परिणाम आने वाले समय में दिखाई देगा छात्र मुद्दों को राजनीतिक मुद्दा बनाना कहीं से भी छात्र राजनीति के लिए भी ठीक नहीं है और छात्रों के भविष्य के लिए भी कहीं से उचित नहीं है।

दिल्ली होने के कारण जवाहरलाल विश्वनाथ विद्यालय को लगातार मीडिया कवरेज मिलती रहती है और छोटा सा मुद्दा भी बड़ा बना दिया जाता है।कई बार सोशल मीडिया पर यह चर्चा चलती है कि बाकी के विश्वविद्यालय जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय का मॉडल क्यों नहीं फॉलो करते हैं।अंतर यही है कि दूरदराज छोटे विश्वविद्यालयों में पढ़ने वाला छात्र जहां एक और अपने भविष्य को लेकर चिंतित रहता है वहीं दूसरी ओर उसका बड़े से बड़ा मुद्दा भी मीडिया कि निगाहों में नहीं आता है।

जाने कितने ऐसे मुद्दे हैं जो काल के गाल में समा जाते हैं और इन छात्र नेताओं की उस पर नजर भी नहीं पड़ती है।जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में सिर्फ इस आधार पर की यह प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय है और यहां के छात्र देश-विदेश में नाम कमा रहे हैं तो इस मामले में पटना विश्वविद्यालय इलाहाबाद विश्वविद्यालय या बनारस हिंदू विश्वविद्यालय भी किसी तरह काम नहीं है पर इन विश्वविद्यालयों की समस्याओं को ना तो कोई सुनने को तैयार है और ना ही विश्वविद्यालयों में धन कोई दे रहा है।देशभर के सभी विश्वविद्यालयों को अगर ऊपर उठाना है तो सिर्फ एक विश्वविद्यालय पर ध्यान देने की जगह देश के सभी विश्वविद्यालयों पर ध्यान दिया जाए|

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय 1 दिन में नहीं बना देश भर में इतने केंद्रीय विश्वविद्यालय खोलने के बाद उन्हें अपने हाल पर छोड़ देना फंड मुहैया कराना भी अपने आप में अत्याचार है सरकार को यह भी ध्यान देना चाहिए कि सिर्फ देश में एक ही केंद्रीय विश्वविद्यालय नहीं है बाकी के श्वविद्यालयों में भी फंड उसी तरह से उपलब्ध कराएं और इसका परिणाम उन्हें 10 से 20 साल में जरूर देखने को मिलेगा जब भारत में अन्य केंद्रीय विश्वविद्यालय भी उसी श्रेणी में आकर खड़े हो जाएंगे जिस श्रेणी में आज जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय को कहा जा रहा है।

Next Story
Share it