जामिया और अलीगढ़ में विद्रोह के स्वर देशद्रोह के समान

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जामिया और अलीगढ़ में विद्रोह के स्वर देशद्रोह के समान
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अगर पढ़े लिखे लोग जो देश के कानून को जानते हैं और नागरिकता से संबंधित कानून को पढ़ लिख सकते हैं और उस पर उच्च न्यायालय और न्यायालय में प्रश्न कर सकते हैं ऐसे लोगों का सड़क पर आकर न्याय मांगना और आम आदमी का जीवन संकट में डालना देशद्रोह के समान है ऐसे लोगों से गृहमंत्री को सख्ती से निपटना चाहिए और बवाल करने वाले लोगों को उन्हीं की भाषा में जवाब देना चाहिए जिससे वह फिर कभी भारत की सड़कों पर निकलकर किसी को भी मारने की हिम्मत न कर सके।

जामिया मिलिया इस्लामिया एक समय प्रोग्रेसिव विश्वविद्यालय के तौर पर देखा जाता था पर आज उसकी कट्टर छवि के कारण उसके साथ पर बट्टा लग रहा है और आने वाले समय में इस तरह की और विद्रोह हुए तो वह दिन दूर नहीं जब आम छात्र इस विश्वविद्यालय से कन्नी काट लेगा।

विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले लोगों का दायित्व है कि किसी भी कानून पर लोगों की गलतफहमी को दूर किया जाए और अगर कोई ऐसा नियम है जिसे जनता के अधिकार और मानव स्वतंत्रता बाधित होती है तो उसे सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज किया जा सकता है पर ऐसा न करके सड़क पर निकल जाना बस जला देना लोगों का आना-जाना दूभर कर देना आम नागरिकों की जान खतरे में डालना यह कहीं से भी सभ्य समाज का प्रतिबिंब नहीं है।और जब आप सभी समाज की तरह व्यवहार नहीं करते तब आपको गोली खाकर मरने के लिए तैयार भी रहना चाहिए।

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