एलयू में सात दिवसीय फैकल्टी डेवलपमेंट प्रोग्राम का उद्घघाटन...
विश्वाविद्यालय एवं यु.जी एच.आर.दी.सी के संयुक्त तत्वाधान में एक सात दिवसीय फैकल्टी डेवलपमेंट प्रोग्राम का उद्घघाटन डीन फैकल्टी ऑफ़ आर्ट्स प्रो. बी के...


विश्वाविद्यालय एवं यु.जी एच.आर.दी.सी के संयुक्त तत्वाधान में एक सात दिवसीय फैकल्टी डेवलपमेंट प्रोग्राम का उद्घघाटन डीन फैकल्टी ऑफ़ आर्ट्स प्रो. बी के...
विश्वाविद्यालय एवं यु.जी एच.आर.दी.सी के संयुक्त तत्वाधान में एक सात दिवसीय फैकल्टी डेवलपमेंट प्रोग्राम का उद्घघाटन डीन फैकल्टी ऑफ़ आर्ट्स प्रो. बी के शुक्ला के द्वारा किया गया। उदघाटन सत्र में प्रो. आनंद प्रकाश, विभागाध्यक्ष, मनोविज्ञान विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय मुख्य वक्ता थे। उन्होंने कहा हैप्पीनेस बहुआयामी निर्मिति है जिसमे जैविक, सामाजिक, मनोविज्ञानिक, राजनीतिक और पर्यावरण जैसे विभिन्न पहलू हैं।
मात्रात्मक रूप से मापने से पहले शोधकर्ताओं को इसका संक्रीयात्मक रूप से परिभाषित करना होगा। इस अवसर पर डीन फैकल्टी ऑफ़ आर्ट्स प्रो. बी.के शुक्ला निदेशक, यू.जी.सी एच.आर.डी.सी. प्रो. ध्रुवसेन सिंह, विभागाध्यक्ष मनोविज्ञान विभाग प्रो. मधुरिमा प्रधान, डॉ. मानिनी श्रीवास्तव कई और प्रतियोगी उपस्थित रहे। उद्घाटन सत्र का संचालन डॉ. मानिनी श्रीवास्तव ने किया।
फैकल्टी डेवलपमेंट प्रोग्राम के प्रथम दिन अन्य दो सत्रों के वक्ता व्यास यूनिवर्सिटी, बंगलौर के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. ज़ुडू इलावरसु एवं प्रो. मधुरिमा प्रधान रहे। डॉ. ज़ुडू ने कहा की मन के बंधन जैसे बाध्यकारी चिंतन, तीव्र गति से आने वाले विचार, परिसीमांएं हमें प्रसन्न रहने से रोकते है। इसका समाधान योग अभ्यास को जीवन का अंग बनाकर, अपने गुणों की पहचान कर एवं कर्म योग द्वारा किया जा सकता है।
प्रो. मधुरिमा प्रधान ने अपने वक्तव्य मे कहा की पाश्चात्य मनोविज्ञानिक हैप्पीनेस की संरचना का अध्ययन कर यह बताते हैँ कि जीवन में अधिक सकारात्मक भावो एवं कम नकारात्मक भावों की अनुभूति एवं जीवन में अधिकाधिक संतोष प्राप्त कर हैप्पीनेस को प्राप्त किया जा सकता है। परन्तु भारतीय मनोवैज्ञानिक हैप्पीनेस को एक स्थूल से सूक्ष्म की यात्रा के रूप मे देखते है।
वे न केवल हैप्पीनेस क्या है इसके बारे मे बताते हैं, वरन एक स्थायी प्रसन्नाता को प्राप्त करने के उपाय भी बताते है। भारतीय मनोवैज्ञानिक जीवन मे कायम रहने वाले स्थायी आनंद का रास्ता बताते हैं, जिन्हें पंचकोशों की देखभाल एवं सक्रिय प्रयत्न द्वारा प्राप्त किया जा सकता है। योग, प्रणायाम, प्रार्थना,ध्यान एवं सकारात्मक चिंतन द्वारा इस चिर स्थायी आनंद को सहज ही प्राप्त किया जा सकता है। पाश्चात्य एवं भारतीय विधियों के समन्वय से ही जीवन मे स्थायी आनंद प्राप्त किया जा सकता है एवं भारतीय संकल्पना सर्वे-भवन्तुः सुखिन: को साकार रूप दिया जा सकता है।
अराधना मौर्या