प्रो एन एम पी वर्मा की याचिका पर हाईकोर्ट ने दिया ऐतिहासिक निर्णय, मिनिस्ट्री को लगा झटका
- ये सत्य की जीत है और इसके लिए संघर्ष जारी रहेगा : प्रो एन एम पी वर्मा
आज प्रो एन एम पी वर्मा की याचिका पर हाईकोर्ट ने सबकी दलीलें सुनी और ऐतिहासिक निर्णय लेते हुए प्रो वर्मा को पुनः कार्यभार सौपने का और उनके ख़िलाफ़ निकाले गये ऑर्डर पर अगली सुनवाई तक स्टे लगा दिया है ।
श्री शेख वली-उज़-ज़मान, विद्वान वकील का कहना है कि याचिकाकर्ता सबसे वरिष्ठ है और पद की रिक्ति को देखते हुए विश्वविद्यालय के क़ानून के 2(6) के अनुसार प्रोफेसर को कुलपति का कार्यभार 05.05.२०२४ को सौंपा गया
बिना किसी आरोप के और याचिकाकर्ता के खिलाफ बिना किसी कारण बताओ नोटिस के रिस्पांडेंट नंबर ४ को ३/१२/२०२४ के ऑर्डर और ४/१२/२०२४ के क्लेरिफिकेशन के बाद कुलपति का पद दे दिया जाता है जबकि ऐसा नहीं किया जाना चाहिए था , क्योंकि याचिकाकर्ता सबसे सीनियर प्रोफेसर है और उनके ख़िलाफ़ किसी भी प्रकार का कोई आरोप नहीं था ।
प्रतिवादी क्रमांक 1 के विद्वान अधिवक्ता बताते हैं कि सीवीओ ने 16.08.2024 को प्रथम चरण की सलाह के लिए सीवीसी को पत्र लिखा है । इसके बाद प्रोफेसर
शिल्पी वर्मा ने याचिकाकर्ता सहित कई कर्मचारियों द्वारा अनियमितताओं के संबंध में पत्र लिखा और याचिकाकर्ता और इन सभी लोगो के ख़िलाफ़ खिलाफ कार्रवाई के लिए राय मांगी गई है।
वह आगे बताते हैं कि प्रोफेसर शिल्पी वर्मा, पूर्व सीवीओ द्वारा 18.11.२०२४ को एक पत्र लिखा गया कि याचिकाकर्ता ने रजिस्ट्रार डॉ. अश्विनी कुमार सिंह को निलंबित कर दिया है क्योंकि वो
संभवत: पूर्व सीवीओ के पद में बदलाव के विरोध में हैं ।
सीवीओ ने प्रोफेसर वर्मा के द्वारा कुलसचिव के हटाने में हितों के टकराव पर प्रकाश डाला और बताया कि क्योंकि प्रो वर्मा केंद्रीय सतर्कता आयोग के अधीन (सीवीसी) कथित करोड़ों रुपये की निविदा कदाचार के लिए समीक्षा में हैं, इसीलिए ये ऑर्डर निकाला गया ।
केन्द्रीय सतर्कता अधिकारी की अवधि 21.06.2024 को ख़त्म हो गई थी, अत: उनके द्वारा कार्यकाल समाप्त होने के बाद जो भी पत्र लिखा गया वह विश्वविद्यालय का दृष्टिकोण नहीं है
और उनके अधिकार क्षेत्र से बाहर है . हालाकि प्रो शिव कुमार द्विवेदी को इस आधार पर चार्ज दे दिया गया है ॰
याचिकाकर्ता की तरफ़ से दलील देते हुए कहा गया कि उनका मानना है कि ये विवादित कार्रवाई किसी ऐसे व्यक्ति के द्वारा जो अधिकृत नहीं था के पत्र के आधार पर की गई है, जो कानून के अनुसार नहीं की गई है । याचिकाकर्ता की सेवा के अंतिम चरण में की गई कार्रवाई, याचिकाकर्ता पर कलंक लगाने का प्रयास है , क्योंकि वो ३१ दिसंबर २०२४ को सेवानृवित्त हो रहे हैं ॰
।उपरोक्त को देखते हुए ऐसा प्रतीत होता है कि पिछले सीवीओ और प्रोफेसरों के बीच किसी विवाद के कारण 18.11.2024 को याचिकाकर्ता के खिलाफ पत्र लिखा और उसी पर विचार करते हुए और बिना याचिकाकर्ता को अवसर दिये ये विवादित आदेश दिए गए हैं, इसलिए, मामले पर विचार और प्रथम दृष्टया अंतरिम राहत का मामला बनता है।
आदेश दिनांक 03.12.2024 एवं 04.12.२०२४ अनुलग्नक संख्या 1 और 2 में निहित लिस्टिंग की अगली तारीख तक रुका रहेगा हालाँकि याचिकाकर्ता की सेवानिवृत्ति के बाद नए सिरे से निर्णय लिया जा सकता है