प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अगले हफ्ते मास्को जाने वाले हैं। उनकी इस यात्रा से कई अहम संदेश निकलेंगे और दोनों देशों के बीच संबंध और भी प्रगाढ़ होंगे। ये बात संयुक्त राष्ट्र में रूस के स्थायी प्रतिनिधि वसीली नेबेंजिया ने सोमवार को कही।
इस महीने के लिए सुरक्षा परिषद की अध्यक्षता संभालने के बाद उन्होंने संवाददाताओं से बात करते हुए कहा,रूस लंबे समय से भारत का मित्र देश रहा है। भारत के साथ हमारी रणनीतिक साझेदारी है।
उन्होंने कहा, दोनों देश अहम मुद्दों पर ठोस बातचीत करेंगे और इससे गंभीर संदेश निकलेंगे, संयुक्त दस्तावेज के रूप में।
उन्होंने कहा, मुझे उम्मीद है कि रूस-भारत संबंध और भी बेहतर होंगे।
इस यात्रा का विशेष महत्व है क्योंकि यह प्रधानमंत्री मोदी की तीसरी बार चुने जाने के बाद पहली रूस यात्रा होगी।
फरवरी 2022 में रूस ने यूक्रेन पर आक्रमण कर दिया, उसके बाद से भारत और रूस के बीच कोई उच्च स्तरीय द्विपक्षीय यात्रा नहीं हुई है।
प्रधानमंत्री मोदी ने आखिरी बार 2019 में रूस का दौरा किया था, जब उन्होंने व्लादिवोस्तोक में पांचवें पूर्वी आर्थिक मंच शिखर सम्मेलन में भाग लिया था।
मॉस्को की पीएम मोदी की आखिरी आधिकारिक यात्रा 2015 में हुई थी।
पुतिन की भारत की आखिरी यात्रा 2021 में हुई थी। उन्होंने पिछले साल नई दिल्ली में आयोजित जी20 शिखर सम्मेलन में हिस्सा नहीं लिया था।
इस बीच, पीएम मोदी ने 2021 और 2023 में अमेरिका का दौरा किया, जब राष्ट्रपति जो बाइडेन ने उनका स्वागत किया।
भारत ने यूक्रेन पर रूस के आक्रमण की सार्वजनिक निंदा नहीं की है, हालांकि प्रधानमंत्री मोदी ने 2022 में उज्बेकिस्तान में एक बैठक के दौरान पुतिन से सीधे कहा, मैं जानता हूं कि आज का युग युद्ध का युग नहीं है, और मैंने इस बारे में आपसे फोन पर बात की है।
भारत ने यूक्रेन युद्ध को समाप्त करने के लिए कूटनीतिक दबाव बनाना जारी रखा है और प्रधानमंत्री मोदी यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोडिमिर ज़ेलेंस्की के संपर्क में भी हैं।
पश्चिमी देशों को नजरअंदाज करते हुए, नई दिल्ली ने मास्को के साथ आर्थिक और रक्षा संबंध जारी रखा है, खासकर ऊर्जा के क्षेत्र में।
पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के इस दावे के बारे में पूछे जाने पर कि वे 24 घंटे में यूक्रेन युद्ध समाप्त कर पाएंगे, संयुक्त राष्ट्र में रूस के स्थायी प्रतिनिधि वसीली नेबेंजिया ने कहा, यूक्रेन का संकट एक दिन में हल नहीं हो सकता।
अफगानिस्तान के साथ दोहा में शुरू हुई संयुक्त राष्ट्र प्रायोजित वार्ता के बारे में उन्होंने कहा कि यह उपयोगी थी, लेकिन इसके परिणाम को लेकर संशय है।
उन्होंने कहा, हर कोई अफगानिस्तान के लिए अच्छा चाहता है, लेकिन इसे कैसे करना है, इसका रोडमैप हर देश में अलग-अलग है और मुश्किलें छोटी-छोटी बातों में ही छिपी हैं।