प्रख्यात ज्योतिषाचार्य पं. ऋषि द्विवेदी के अनुसार दीपावली २० अक्टूबर को मनाना शास्त्र सम्मत
दीपावली तिथि को लेकर लोगों में संशय की स्थिति बनी हुई है। इस बार दीपावली २० अक्टूबर को मनायी जायेगी। ब्रह्म पुराण के अनुसार कार्तिक अमावस्या को अर्धरात्रि के समय भगवान गणेश-लक्ष्मी, कुबेर सदगृहस्थों के आवास स्थलों पर जहां-तहां विचरण करते हैं। इसलिए अपने घरों को सब प्रकार से स्वच्छ, शुद्ध और सुशोभित करके चारों तरफ दीपों से प्रकाशित करके दीपावली मनाने से माता लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और चिरकाल तक स्थायी रूप से घर में निवास करती है।
अमावस्या दो दिन : प्रख्यात ज्योतिषाचार्य पं. ऋषि द्विवेदी के अनुसार कार्तिक अमावस्या तिथि २० अक्टूबर को दिन में दो बजकर ५६ मिनट पर लगेगी जो कि २१ अक्टूबर को सायं चार बजकर २६ मिनट तक रहेगी। कार्तिक अमावस्या तिथि इस बार २० व २१ अक्टूबर दो दिन है। २१ अक्टूबर को सूर्यास्त सायं पांच बजकर ४० मिनट पर हो रहा है, जबकि कार्तिक अमावस्या तिथि सूर्यास्त के पूर्व सायं चार बजकर २६ मिनट पर समाप्त हो रहा है। २१ अक्टूबर को सायं चार बजकर २६ मिनट के बाद कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा तिथि लग जायेगी। वहीं, २१ अक्टूबर को प्रदोष व निशितकाल दोनों में कार्तिक अमावस्या तिथि नहीं मिलने से दीपावली २० अक्टूबर को मनाना शास्त्र सम्मत होगा।
निर्णय सिंधुकार में उल्लेख : निर्णय सिंधुकार के अनुसार 'पूर्वत्रैव प्रदोषव्याप्तौ लक्ष्मी पूजनादौ पूर्वा।" धर्मसिंधु के इस वचनानुसार कार्तिक कृष्ण अमावस्या को प्रदोष काल में दीपावली का पर्व मनाया जाता है। प्रदोष काल में ही दीपदान, लक्ष्मी पूजन आदि करने का नियम है। अत: २० अक्टूबर को प्रदोष काल में अमावस्या मिलने से दीपावली मनाना शास्त्र सम्मत होगा।
प्रदोष व रात्रिव्यापिनी तिथि : ब्रह्म पुराण में कार्तिक अमावस्या को लक्ष्मी, कुबेर आदि का रात्रि भ्रमण के बारे में बताया गया है। इस अनुसार भी प्रदोष व रात्रिव्यापिनी कार्तिक अमावस्या तिथि २० अक्टूबर को ही है। प्रदोष काल सूर्यास्त के बाद दो घटी रहता है। एक घटी २४ मिनट का होता है, अर्थात सूर्यास्त के बाद ४८ मिनट का समय प्रदोष काल होता है, जो २० अक्टूबर को ही मिल रहा है। वहीं, २१ अक्टूबर को कार्तिक अमावस्या स्नान, दान व श्राद्ध की होगी। २१ अक्टूबर को इस बार कार्तिक अमावस्या भौमवती अमावस्या होने से इस दिन गंगा स्नान करने से सहस्र सूर्यग्रहण में गंगा स्नान के फल समान पुण्य प्राप्त होगा।
दीपावली पूजन का शुभ मुहूर्त : दीपावली पूजन का मुख्य काल प्रदोष काल है जिसमें स्थिर लग्न की प्रधानता होती है। अत: स्थिर लग्न वृष रात्रि सात बजकर १० मिनट से नौ बजकर छह मिनट तक है। दिन का स्थिर लग्न कुंभ दिन में दो बजकर ३४ मिनट से शाम चार बजकर पांच मिनट तक है। निशितकाल मध्यरात्रि में महाकाली पूजन के लिए उत्तम होगा।
प्रदोष काल में निशितव्यापिनी अमावस्या तिथि में पूजन सर्वश्रेष्ठ : कार्तिक अमावस्या दिन में ०२:५६ मिनट पर लगेगी, २१ अक्टूबर को सायं ०४:२६ मिनट पर समाप्त