भारत की सांस्कृतिक विरासत में श्वानों को विशेष स्थान प्राप्त है। पौराणिक कथाओं से लेकर राजसी इतिहास तक, श्वान सदैव निष्ठा, साहस और सेवाभाव का प्रतीक रहे हैं। आज यह परंपरा नई दिशा ले रही है। भारतीय सुरक्षा बलों में देशी नस्लों के श्वान अग्रिम पंक्ति में उतरकर देश सेवा का दायित्व निभा रहे हैं।
जनवरी 2018 में प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने सीमा सुरक्षा बल (BSF) के टेकनपुर स्थित राष्ट्रीय श्वान प्रशिक्षण केंद्र (NTCD) का दौरा किया था। इस दौरान उन्होंने देशी नस्लों को सुरक्षा बलों में शामिल करने और प्रशिक्षित करने की आवश्यकता पर बल दिया। उनका यह मार्गदर्शन न केवल दूरदर्शी था, बल्कि यह 'आत्मनिर्भर भारत' और 'वोकल फॉर लोकल' की भावना को भी सशक्त करने वाला साबित हुआ।
प्रधानमंत्री ने 30 अगस्त 2020 को 'मन की बात' कार्यक्रम में भारतीय नस्लों के श्वानों को अपनाने की अपील की। इसके बाद बीएसएफ ने रामपुर हाउंड और मुधोल हाउंड जैसी दो प्रमुख भारतीय नस्लों को अपने बल में शामिल कर एक ऐतिहासिक पहल की।
रामपुर हाउंड, उत्तर प्रदेश की रामपुर रियासत से संबंधित है, जिसे नवाबों ने शिकार के लिए विकसित किया था। यह नस्ल अपनी तेज गति, सहनशक्ति और निर्भीकता के लिए जानी जाती है। वहीं मुधोल हाउंड, जो कर्नाटक के दक्कन क्षेत्र से है, पारंपरिक रूप से शिकार और सुरक्षा कार्यों में प्रयुक्त होता रहा है। इसका संरक्षण राजा मलोजीराव घोरपड़े ने किया था, और ब्रिटिश काल में इसे "Caravan Hound" के नाम से भी जाना गया।
इन भारतीय नस्लों की विशेषताएं- उच्च फुर्ती, अनुकूलनशीलता, मजबूत रोग प्रतिरोधक क्षमता और न्यूनतम देखभाल की आवश्यकता, इन्हें देश के विविध और चुनौतीपूर्ण भौगोलिक क्षेत्रों में अत्यधिक उपयोगी बनाती हैं।
BSF ने न केवल इन श्वानों को NTCD टेकनपुर में प्रशिक्षित किया, बल्कि इनके प्रजनन और विकास कार्यक्रम भी आरंभ किए। अब यह पहल क्षेत्रीय K9 केंद्रों तक भी फैल चुकी है। वर्तमान में 150 से अधिक भारतीय नस्लों के श्वान देश के विभिन्न सामरिक और संवेदनशील क्षेत्रों- जैसे कि पश्चिमी और पूर्वी सीमाएं, तथा नक्सल-प्रभावित इलाके में तैनात हैं।
इन श्वानों की क्षमताओं की पहचान तब और स्पष्ट हुई जब वर्ष 2024 में अखिल भारतीय पुलिस ड्यूटी मीट (लखनऊ) में BSF की "रिया", एक मुधोल हाउंड, ने "सर्वश्रेष्ठ ट्रैकर ट्रेड श्वान" और "डॉग ऑफ द मीट" के खिताब अपने नाम किए। यह पहली बार था जब किसी भारतीय नस्ल के श्वान ने 116 विदेशी नस्लों को पीछे छोड़ते हुए यह सम्मान अर्जित किया।
इस सफलता की कड़ी को आगे बढ़ाते हुए, राष्ट्रीय एकता दिवस (31 अक्टूबर) के अवसर पर एकता नगर, गुजरात में आयोजित परेड में केवल भारतीय नस्लों के श्वानों की मार्चिंग टुकड़ी BSF का प्रतिनिधित्व करेगी। इस अवसर पर एक विशेष प्रदर्शन भी प्रस्तुत किया जाएगा जिसमें ये श्वान अपनी सामरिक कुशलता और परिचालन क्षमताएं दिखाएंगे।
BSF की यह पहल केवल सुरक्षा की दृष्टि से ही नहीं, बल्कि यह राष्ट्रीय स्वाभिमान, सांस्कृतिक पुनरुत्थान और आत्मनिर्भरता का भी प्रतीक है। भारतीय नस्लों के श्वानों का समावेश यह सिद्ध करता है कि भारत न केवल अपनी विरासत को पहचान रहा है, बल्कि उसे वैश्विक मंच पर गर्व से प्रस्तुत भी कर रहा है।