बालाघाट- कनेरी में कृषि सखी दीदियों ने किसानो को सिखाया जीवामृत बनाना

Update: 2025-08-19 05:53 GMT



 कृषि विभाग द्वारा किसानो को रासायनिक खाद एवं कीटनाशक के स्‍थान पर प्राकृतिक एवं जैविक खाद व कीटनाशक का उपयोग करने के लिए प्रोत्‍साहित किया जा रहा है। राष्‍ट्रीय प्राकृतिक कृषि मिशन के अंतर्गत जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में आजीविका मिशन के स्‍व-सहायता समूह से जुड़ी जैविक व प्राकृतिक खेती करने वाली महिलाओं को कृषि सखी दीदी नियुक्‍त किया गया है। इन दीदियों द्वारा किसानो को जैविक एवं प्राकृतिक खाद बनाना सिखाया जा रहा है। इन दीदियों द्वारा अपने घरो पर भी जैविक कीटनाशक तैयार कर उनका विक्रय किया जा रहा है। लांजी विकासखंड के ग्राम कनेरी एवं बिरसा विकासखंड के ग्राम बलगांव व बासिनखान में कृषि सखी दीदियों ने किसानो को जीवामृत बनाना सीखाया है।

ग्राम कनेरी के किसान श्रीलाल मस्‍करे के घर में कृषि सखी यशवंती माहुले एवं लीला राहंगडाले द्वारा किसानो को जीवामृत बनाने की विधि बतायी गई। कृषि सखी दीदियों द्वारा बताया गया कि देशी गाय का 10 किलोग्राम गोबर, 08 से 10 लीटर देशी गाय का मूत्र, 01 से 02 किलोग्राम गुड़, 1-2 किलोग्राम बेसन, 01 किलोग्राम पेड़ के नीचे की मिट्टी एवं 180 से 200 लीटर पानी को मिलाकर जीवामृत बनाया जाता है। इसके लिए इन सामग्रियों को प्‍लास्टिक के ड्रम में डालकर लकड़ी के एक डंडे से घोलना पड़ता है और इस घोल को 2-3 दिन तक सड़ने के लिए छाया में रखना होता है। इस दौरान दिन में 02 बार सुबह शाम घड़ी की सुई की दिशा में लकड़ी के डंडे से 02 मिनट तक घोल को चलाना होता है। इस ड्रम को बोरे से ढकना होता है।

03 दिन बाद ड्रम में जीवामृत बनकर तैयार हो जाता है। इस जीवामृत का उपयोग 200 लीटर प्रति एकड़ के हिसाब से सिंचाई के पानी के साथ फसल में कर सकते है। किसानो को बताया गया कि देशी गाय के एक ग्राम गोबर में असंख्‍य सूक्ष्‍म जीवाणु होते है। जीवामृत बनाते समय 10 किलोग्राम गोबर लगभग 200 लीटर पानी में मिलाने से उसमें लाखो करोड़ो जीवाणु हो जाते है। ये जीवाणु धीरे-धीरे अपनी संख्‍या दोगुनी कर लेते है।

72 घंटे बाद इनकी संख्‍या असंख्‍य हो जाती है। इस जीवामृत को जब पानी के साथ खेतों में डालते है तो यह पेड़-पौधो को भेजन देने, फसल को पकाने और तैयार करने में जुट जाता है। भूमि में जाते ही जीवामृत धरती के भीतर 10-15 फीट जाकर समाधि की स्थिति में बैठे हुए देशी केंचुवें तथा दूसरे जीव जंतुओं को उपर की ओर खींचकर उन्‍हें क्रियाशील बना देता है।

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