स्वदेशी और मीडिया, प्रो. गोविन्द जी पाण्डेय, संकायाध्यक्ष , मीडिया एवं संचार विद्यापीठ , बीबीएयू , लखनऊ

  • whatsapp
  • Telegram
  • koo
स्वदेशी और मीडिया,    प्रो. गोविन्द जी पाण्डेय,    संकायाध्यक्ष , मीडिया एवं संचार विद्यापीठ , बीबीएयू , लखनऊ


स्वदेशी और मीडिया


प्रो. गोविन्द जी पाण्डेय


संकायाध्यक्ष , मीडिया एवं संचार विद्यापीठ , बीबीएयू , लखनऊ


हाल की मीडिया रिपोर्टिंग और खबरों को अगर आप ध्यान से पढ़े तो पता चलता है कि मीडिया कई खेमो में बट चुका है और राष्ट्रवाद अब पार्टीवाद में बदल चुका है | ऐसा नही है कि देश के राजनेता भारत के हित की बात नही सोचते पर अब ये राजनीति का हिस्सा बन चुका है | जब देशहित राजनीति का विषय बन जाए तो पक्ष –विपक्ष होना भी एक सामान्य बात हो जाती है | पर क्या देशहित में पक्ष और विपक्ष हुआ जा सकता है ? राष्ट्र की हित की बातें कभी भी विमर्श का उस तरह विषय नही थी जैसा कि अब हो रहा है |


विपक्ष का व्यवहार, जब से मोदी सरकार आई है तब से काफी आक्रामक है और भाषा के स्तर पर इतना छिछलापन शायद ही पहले कभी देखा गया हो | स्वदेशी बनाम विदेशी की चर्चा मीडिया में भी जोर शोर से चल रही है | इस चर्चा को हवा तब मिली जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने चीन की सीमा पर आक्रामक नीतियों के खिलाफ उसके कई गेमिंग एप से लेकर सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर बैन लगा दिया |

यहाँ से उठा शोर अब ट्विटर , फेसबुक , गूगल , और पारंपरिक मीडिया अखबार, टीवी , रेडियो में भी पहुच गया है | अब लोग ट्विटर को बदल कर भारत के कू प्लेटफार्म को अपना रहे है | इसी तरह फेसबुक के साथ तो बड़ा विवाद नही हुआ पर यहाँ भी कई सारी भारतीय कम्पनी जोर शोर से लगी है कि एक स्वदेशी प्लेटफार्म खड़ा किया जा सके | हैरानी की बात है की जिस सॉफ्ट वेयर इंडस्ट्री के मसीहा हम भारतीय कहे जाते है वहां पर ज्यादा तरह मीडिया के सॉफ्टवेयर आज भी विदेशी है |


आप प्रिंट मीडिया को ले लीजिये वहाँ पर इस्तेमाल होने वाला डिजाईन सॉफ्टवेयर एडोबी फोटोशॉप हो या पेज मेकर हो या क्वार्क एक्सप्रेस या कोई और सॉफ्टवेयर वो सभी विदेशी है | पर इसका इस्तेमाल तो देशी मीडिया कर रहा है | इसी तरह दूसरी बड़ी मीडिया इंडस्ट्री है टेलीविज़न न्यूज़ की जिसमे विदेशी सॉफ्टवेयर की भरमार है और अरबो रूपये खर्च करके हम विदेशी सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर का इस्तेमाल करते है |


अब हम अगर स्वेदशी मीडिया की बात करे और ये विदेशी अपना माल देना बंद कर दे तो भारत की मीडिया इंडस्ट्री एक दिन में समाप्त हो जायेगी | कारण वही है दुसरो पर निर्भरता | यही हाल यहाँ के दुनिया की सबसे बड़ी फिल्म इंडस्ट्री का है जहाँ पर कैमरा से लेकर लाइट तक सब विदेशी है | और अब शायद लोकेसन भारत के अच्छे लग रहे है पर ज्यादातर फिल्मकार की इच्छा विदेश में ही शूटिंग करने की होती है |


अब सवाल ये है कि स्वदेशी को किस तरह से अपनाया जा सकता है ? उसके लिए हमे एक सोची समझी नीति के साथ चलना होगा | विदेशी का विरोध की नीति अभी कारगर नही होगी क्योंकि ज्यादातर मीडिया और प्रोडक्शन हाउस का काम विदेशी सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर पर निर्भर है | स्वदेशी के नाम पर हम उनको घर में बेरोजगार नही बिठा सकते |


अब आप एडोबी की बात करे तो उसके चेयरमैन , प्रेसिडेंट और चीफ एग्जीक्यूटिव ऑफिसर शांतनु नारायण है , एक भारतीय, जो दुनिया की सबसे बड़ी सॉफ्टवेर कंपनी है | अगर हम मीडिया इंडस्ट्री में देखे तो इनके बनाये या फिर इनकी तरह किसी विदेशी कम्पनी जो भारतीय चला रहा है के सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर का इस्तेमाल कर रहे है | पर हम कब विश्वस्तर पर खड़े होंगे ये हमें सोचना है |

हमारे पास लोग है पर विचार और अवसर की कमी ने हमें स्वदेशी मॉडल अपनाने नही दिया है | स्वदेशी का मतलब ख़राब चीजे नहीं हो सकती , स्वदेशी के नाम पर हम कुछ भी नहीं परोस सकते क्योंकि दुनिया एक ग्लोबल विलेज के रूप में बदल चुकी है | ग्राहक के पास अब विश्व के श्रेष्ठतम वस्तु को खरीदने का मौका है और वो स्वदेशी के नाम पर अपने मेहनत की कमाई किसी कमतर संसाधन पर नहीं लगाएगा |


इसका सीधा सा अर्थ है की स्वदेशी और गुणवत्ता युक्त वस्तु ही बाजार में टिकेगी और बिकेगी इसलिए स्वदेशी के साथ –साथ हमे विश्व स्तर की चीजो का निर्माण करना होगा |


हमें सोचना होगा कि हम जिस तरह से रक्षा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर हो रहे है और अपने देश में ही लड़ाकू विमान बनाने लगे है उसी तरह हमे अपने देश में ही उच्च श्रेणी के कैमरा, सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर का निर्माण करना होगा | उसके लिए हमे सिर्फ नीति बनाने की जरुरत है निर्माता तो भारतीय ही है बस वो दुसरो की चाकरी कर रहे है उनके अंदर देश के प्रति भाव भी है जिसको हमे इस्तेमाल कर उन्हें भारत के लिए इन उपकरणों का निर्माण करने की सहूलियत प्रदान करनी होगी |


नयी शिक्षा नीति में जिस तरह से क्षेत्रीय भाषा में शिक्षा पर जोर दिया गया है और मातृभाषा को महत्त्व मिला है वो सराहनीय है पर क्या हमने अपनी तैयारी का जायजा लिया है | सिर्फ कह देने से तो परिवर्तन आने से रहा | भारत में विज्ञान की अच्छी किताबे हिंदी में उपलब्ध नही है तो क्षेत्रीय भाषा में क्या वो होंगी | इस विषय पर हमे सोचना चाहिए नही तो अच्छे विचार के बावजूद स्थानीय स्तर की समस्याओं के कारण ये योजना मूर्त रूप नही ले पाएगी |


इसलिए हमें स्वदेशी का विचार उसी तरह से करना है जैसे हमारे पडोसी देश चीन ने किया | उसने अपनी अर्थव्यवस्था को दो दशक तक बंद कर पहले क्षमता पैदा की और फिर उसके बाद १९७८ से जो अपनी व्यवस्था को विश्व के लिए खोला की वो आज शीर्ष अर्थव्यवस्था बनने की ओर है |


हम क्या कर रहे है ? हम अपनी अर्थव्यवस्था और उसके आधारभूत ढाँचे को बिना परखे विश्व गुरु बनने निकल पड़े है | हमारे लोगो में असीम क्षमता है पर अगर उसको सही दिशा नही मिलेगी तो सब व्यर्थ हो जाएगा |




Next Story
Share it