हिंसा से विश्व की कोई समस्या का समाधान नही

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हिंसा से विश्व की कोई समस्या का समाधान नही


दहशत,भय,ख़ौफ़,हिंसा तथा आतंकवाद जैसी अमानवीय घटनाओ से पूरा विश्व ग्रसित नजर आ रहा है।विश्व की महाशक्ति का दम भरने वाले की भी नींद हराम है ही,युद्ध के मंडराते बादल और वर्तमान में रूस और यूक्रेन की तबाही से दोनों देशों की जनता महाविनाश की कगार पर खड़ी है।उसे सिर्फ अहिंसा की अजेय महाशक्ति ही बचा सकती है।इसके अलावा कोई विकल्प नही है।हिंसा से हिंसा बढ़ती है।उसका कभी अंत नही और उसके परिणाम के बारे में सोचने मात्र से रोंगटे खड़े हो जाते है।स्थायी शांति के लिए सिर्फ वार्ता ही एक मात्र साधन है।अहिंसा मात्र गर्न्थो के उपदेश की शोभा तक सीमित नही है।और धर्म स्थल की चार दिवारो के भीतर चर्चा की विषय वस्तु नही है।परंतु दैनिक जीवन मे ऑक्सीजन की भांति महत्वपूर्ण स्थान आचार विचार और व्यवहार में अहिंसा तत्व रोम रोम में रमकर स्पष्ट झलकना चाहिए।मुठ्ठीभर असामाजिक तत्वों द्वारा हिंसा फैलाने में सफल हो जाते है।इसका मूल कारण वे संगठित और सक्रिय है।परीक्षित है।हम इतने होने के बावजूद हिंसा नही रोक पाये।इसका मुख्य कारण है हम असंगठित और निष्क्रिय है।इसी प्रकार बिखरे रहे तो अस्तित्व पर ही प्रश्नचिन्ह लग जाएगा।समय की सबसे बड़ी मांग है कि अहिंसावादी ताकते संगठित,सक्रिय और प्रशिक्षित हो जाए।और जाति,पंथ और प्रतिभाषा आदि संकीर्ण विकृत मानसिकता से मानव समाज को मुक्त करे।यह तभी संभव हो सकेगा जब शांति चाहने वाले एक मंच पर एकत्रित हो।प्रत्येक मानव को धर्म स्थल की चार दिवारी से बाहर आकर अहिंसक सेनानी बनकर अहिंसा यज्ञ में आहुति के लिए कमर कसनी होगी।


अहिंसा का पालन कायर और बुजदिल नही कर सकते है।हमे हिंसा के मूल कारणों का पता लगाना चाहिए।अहिंसा, संयम और तप से आत्मिक शारीरिक एवं पर्यावरण शुद्धि स्वतः ही हो जाती है।सरकार के पास कोई साधन नही है। समाज ऊर्जा का अखंड भंडार है। हिंसा को जड़ मूल से समाप्त करने के लिए समाज का योगदान जरूरी है।एकाग्रता संगठन की शक्ति से कोई भी समस्या तक पहुंच सकते है।सबको संगठित होकर अहिंसा के अथक परिश्रम करना होगा तभी वैचारिक क्रांति संभव है।

*कांतिलाल मांडोत*

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