रूस की मनमानी के सामने नाटो का द्विधाभरा विरोध

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रूस की मनमानी के सामने नाटो का द्विधाभरा विरोध


रशिया ने यूक्रेन की भौगोलिक स्थिति को तहस नहस करने की कोई कोर कसर नही छोड़ी है।नाटो के सदस्य देशों की मानसिकता जवाब दे चुकी है।अमेरिका ने आपत्ति जरूर जताई है लेकिन यूक्रेन को सैन्य उपकरण या गोला बारूद देने की रूस के भय से हिमत नही है।अमेरिका की पोल उस समय खुल गई थी।जब कोरोनोकाल में अमेरिका हाई तौबा कर रहा था।अमेरिका फर्स्ट का नाम बुलंदियों पर रखने के लिए अमेरिका धमकी ही देता है।हिरोशिमा नागासाकी पर बम गिराने से विश्व के नक्शे पर चमका अमेरिका की आज तक इमेज बरकरार है।भारत ने विश्व को बता दिया था कि भारत सबका बाप है।इंटरनेशनल मीडिया में गरीब देश के नाम से भारत को संबोधित किया जाता था।मोदी की ताकत का लोहा दुनिया ने माना है।कांग्रेस के इतने वर्षों तक भारत पर शासन करने के बाद देश की इकोनॉमी भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ती थी।अनेक प्रकार के घोटाले कांग्रेस के कार्यकाल में हुए है।


आज भारत की सरकार देश को विकासलक्षी योजनाओ से सराबोर कर रही है।नाटो में 30 देश होते हुए यूक्रेन की तबाही अपनी आँखों से निहाल रहे है।नाटो ने एक समझदारी तो दिखाई है कि नाटो रूस का भरचक विरोध करता तो हो सकता है कि विश्वयुद्ध छिड़ जाए।नाटो का मुख्य उधेश्य समझौतों की धाराओं को लागू करना है।लेकिन बदलती परिस्थितियों के कारण नाटो ने छुपी साध ली है।यूक्रेन की तबाही का मंजर विश्व देख रहा है।भारत नाटो का सदस्य नही है फिर भी भारत की संस्कृति महान है और दोनों देशों को आपसी बातचीत से समस्या का हल निकालने की नसियत दी है।नार्वे के पूर्व प्रधानमंत्री जेन्स स्टोलटेनबर्ग की अध्यक्षता में हर वर्ष बैठक होती है।इसमें नियमो और इन देशों पर थोपे जाने वाले रूल्स बनाए जाते है,लेकिन ये सभी कागजों में ही सिमटकर रह जाते है।रूस यूक्रेन की लड़ाई का अंत कब होगा यह तो कह नही सकते है।लेकिन नाटो की 30 देशो का प्रतिनिधित्व करने वाली संस्था की भागीदारी का यूक्रेन को कोई फायदा नही मिला।दुनिया तमाशबीन बनकर देखती रह गई।यूक्रेन के राष्ट्पति ने कहा है कि रूस को फलाय जॉन जाहिर नही किया तो रूस अन्य देशों पर भी हमला कर सकता है।

*कांतिलाल मांडोत *

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