औपनिवेशिक मानसिकता छोड़ भारत की शिक्षा नीति पर जोर देना होगा

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औपनिवेशिक मानसिकता छोड़ भारत की शिक्षा नीति पर जोर देना होगा


भारत गुलामी की बेड़ियों में जकड़ा रहा था।अंग्रेजो ने औपनिवेशिक भाषा को अहमियत देना शुरू कर दिया।जिससे भारत की पुरानी संस्कृति पर काट लगना शुरू हुआ।इन लोगो की खोटी मानसिकता रही है।उप राष्ट्रपति वैंकेया नायडू ने मैकाले शिक्षा पद्धति को सिरे से खारिज कर दिया।उंन्होने कहा कि भारतीयो को अपनीऔपनिवेशिक छोड़ कर भारतीय पहचान पर गर्व करने का आह्वान किया।मैकाले ने भारत के वेद उपनिषदों के ज्ञान को एक अलमारी में समा जाने वाली पुस्तको का हवाला दिया और कहा कि भारत का ज्ञान अलमारी में इक्कठा कर लिया जाए तो यह बराबर नही होगा।मैकाले उच्च वर्ग के लोगो को शिक्षा देने के पक्ष में थे।उंन्होने भारत मे आकर अलगाववाद के बीज बोने शुरू कर दिए।औपनिवेशिक शासन ने समाज मे बिखराव कर निम्न जाति के रूप में देखना सिखाया।भारत में शिक्षा को भी भगवाकरण का चोला पहनाकर आरोप मढ़ते रहते है।लेकिन भगवाकरण में क्या खोट है।भारत को भारतीय वेद,उपनिषदों और मर्यादा पुरुषोत्तम राम और कृष्ण की जीवन कहानी और शास्त्रों का मर्म नही समझा सकते है तो हम आज भी मैकाले और औपनिवेशिक दबाव में है।पाठ्यक्रम में धार्मिक ग्रथ को पढ़ाया जाना अनिवार्य कर देना चाहिए।


जहा तक भारत और भारतीयता को नही अपनाएंगे वहा तक भारत की संस्कृति की सच्ची परख नही होगी।शिक्षा को अपने जीवन का अंग बनाना है।1834 में मैकाले इंग्लैंड से भारत आया था।उसकी यह मानसिकता थी कि रूप रंग वेशभूषा हर तरह से भारतीय हो,लेकिन उन्हें ऐसी शिक्षा दी जाए जिससे आत्मिक रूप से अंग्रेज बन जाए।इन लोगो की विघटनकारी मानसिकता से भारत मे 200 साल शासन किया।आज भी महानगरों में मैकाले की शिक्षा ही झलकती है।इसमें भारतीयता गायब है।मुघलो ने कई वषों तक तलवार के दम पर शासन किया और उसके बाद अंग्रेजो ने शिक्षा का आमूलचूल परिवर्तन कर भारतीयों को अंग्रेज बनाने की कोई कसर नही छोड़ी।

*कांतिलाल मांडोत सूरत*

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