"हिन्दू-मुस्लिम नही, सिर्फ इंसान बनो"

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हिन्दू-मुस्लिम नही, सिर्फ इंसान बनो


विश्व पटल पर अनेकता में एकता की महत्ता रखने वाले भारत जैसे देश में वर्तमान में जिस तरह से पिछले कुछ समय से साम्प्रदायिकता को व्यक्तिगत राजनैतिक हितों के लिए समय-समय पर तूल पकड़ाया जाता रहा है। वह भारत जैसे हिन्दू-मुस्लिम एकता के पहचाने जाने वाले देश की अखंडता और सम्प्रभुता के भविष्य के लिए घातक होगा। आज विश्वपटल पर भारत की जो पहचान है, उस पर आज की स्वार्थपरक राजनीति आने वाले समय में सवालिया निशान लगा सकती है। जरूरत है कि ईश्वर, अल्लाह या उस अदृश्य सत्ता की बनाया यह जीव संसार में आने के बाद आपसी भेदभाव से बचे।

हमारे देश में पिछले कई वर्षों से एक मुद्दा चल रहा है, मंदिर या मस्जिद , हिन्दू या मुसलमान। यह एक ऐसा मुद्दा है, जो तब तक ख़त्म नहीं होगा, जब तक इस धरती पर इन्सान है, क्योंकि इस तरह के मुद्दे या मजहबी वातावरण या हिन्दू , मुस्लिमों को लेकर चलाया जा रहा ये धार्मिक युद्ध दैविक या ईश्वरीय नही बल्कि आज के इंसानो द्वारा निर्मित और संचालित है। सच तो यह है कि आज के कुछ मतलब परस्त लोगों ने इस देश में ऐसा माहौल बना दिया है, वरना यह देश तो हमेशा से हिन्दू-मुस्लिम एकता और भाईचारे के लिए जाना जाता है, न की हिन्दू , मुस्लिम वाद के लिए। अगर एक इन्सान के नजरिये से सोचा जाय तो निश्चित ही यह महसूस किया जा सकता है कि यह सब कुछ भी नहीं है। वास्तविकता यह है अपने आपको कट्टर कहलाने के लिए कुछ धर्म परस्त, मतलब परस्त लोग दिखावा भर कर रहे हैं। जो एकता की उपज में जहर के छिड़काव के समान है।

भारत एक ऐसा देश है जहाँ आज भी अगर लोगों के दिलों से पूछ लिया जाय कि आज देश में मंदिर-मस्जिद और हिन्दू-मुस्लिम को लेकर जो माहौल है, इस पर आप क्या कहना चाहेंगे, तो यकीनन वह यही बोलेगा कि, आज देश में इतनी महगाई, लूट-खसोट, बेईमानी और भ्रष्टाचार है कि आज की मासूम जनता तो इन सब से पहले ही मर रही है। उसे इतना समय ही कहाँ है कि इन सब बातों से कोई मतलब रखे। हमारा देश और यहां के निवासियों का समय तो गुजर-बसर और जीवन की आपाधापी में ही निकल जाता है, तो क्या मंदिर और मस्जिद की सियासत वो खाक करेगा। आज देश में यह सब काम तो धर्म की आग पर रोटियां सेकने वाले कर रहे है।

अगर अतीत में जाकर आप याद करे तो पायेगे कि हम तो वह हिन्दू-मुस्लिम है, जो सभी धर्मों को एक समान दृष्टि से देखते है। हम ईद पर अपने मुस्लिम भाइयों के गले लगते हैं उनके यहाँ ईद की सिवैयां खाते है और उनका मान बढ़ाते है, उसी तरह मुस्लिम भाई हम हिन्दुओं के पर्व में शामिल होते है, चाहे वह होली हो या दिवाली। हर पर्व में हम लोग एक दूसरे के त्योहार में शामिल होकर देश की अखंडता का एक उदाहरण देते आये है। ईश्वर या अल्लाह को भी शायद यह अच्छा लगता है कि उनका बनाया इंसान धर्म के नाम पर हिन्दू-मुस्लिम न होकर एक इंसान के रूप में है। वह अदृश्य शक्ति देखिये देश में एक तरफ जहां हिन्दू भाई नवरात्रि व्रत कर रहे हैं तो वहीं दूसरी ओर मुस्लिम है रमजान।

आज के माहौल और राजनैतिक खींचतान के बीच जरूरत है कि हम सब यही समझे की न तो हम हिन्दू है न ही हम मुस्लिम है, बल्कि हम सभी मात्र एक इन्सान है और हमें इंसानियत से ही रहना है। याद करो हम तो ऐसे लोग है जो राम-रहीम दोनों को मानते है। हम एक तरफ अजमेर शरीफ जाते है, तो दूसरी तरफ शिर्डी के साई मंदिर भी एक साथ जाते है। राजनीति की रोटी सेकने वालो को समझ लेना चाहिए कि उनकी सियासत की पोल आज खुल चुकी है। अब आज हमें न तो मंदिर चाहिए और न ही मस्जिद। हमें तो सिर्फ एक इन्सान चाहिए, जो इंसानियत का फर्ज निभाते हुए, राष्ट्रहित के लिए सर्वस्व न्योछावर करने को तत्पर हो। अब ऐसा ढांचा खड़ा कर देना होगा जिसमें इंसानियत हो, जो इन्सान को इन्सान समझे।

यकीनन अगर आज मंदिर और मस्जिद के मुद्दे हटा दिए जाय तो हमारा समाज, समुदाय और देश भाईचारे की वह मिशाल कायम कर सकता हैं, जो निकट भविष्य में तो विश्व में कहीं भी देखने को नहीं मिलेगी। सोचने वाली बात है, जब हम सब एक साथ उठते-बैठते हैं, एक-दूसरे के त्योहार मानते है, तो कहाँ रह जाता है फर्क, मंदिर, मस्जिद और मजहब का। हिन्दू मुस्लिम की मजहबी सोच से ऊपर उठकर आज हमें इंसानियत के साथ चलना चाहिए। प्रदेश, देेश और निजी विकास के लिए आवश्यक है कि हम सभी धर्म के नाम पर नफरत फैलाने के बजाय आपसी प्रेम बढ़ाकर रिश्तों को मजबूत करने का प्रयास करे।

दीपक मिश्र राजू, बाराबंकी

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