राजनीतिक लोकलुभावन बनाम आर्थिक हकीकत".....

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राजनीतिक लोकलुभावन बनाम आर्थिक हकीकत.....

चुनावों में मतदाताओं को लुभाने के लिए राजनीतिक दल लोकलुभाव व फ्री-गिफ्ट की घोषणाएं तो बड़े जोरशोर से कर देते हैं. किन्तु जब उन वादों को पूरा करने का वक्त आता है तो वे बगले झांके लग जाते हैं, फ्री-गिफ्ट जैसे बिजली ,पानी,राशन,गैस,लेपटॉप व अन्य सुविधाएँ मात्र सत्ता पाने के लिए कर तो दी जाती है किन्तु न तो खजाने में इतना धन होता है और न ही किसी स्रोतों से आमदनी के रास्ते. तब कैसे वे इसे पूरा करने में सफल हो सकते हैं. प्रधानमंत्री द्वारा वरिष्ठ अधिकारियों की बैठक में कुछ राज्यों की आर्थिक हकीकत सामने आई हैं. जिसमें कुछ अधिकारयों ने राज्यों में लोकलुभावन योजनाओं को पूरा करने या उसे आगे बढ़ाने की व्यवस्था ठीक नहीं है. इशारा साफ़ है कि यदि फ्री गिफ्ट बांटे जाएंगे तो अन्य योजनाओं पर उसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है.

क्योंकि जब जनधन लोकलुभावन में ही लग जाएगा तो जनकार्यों से सम्बंधित विकासशील योजनाओं की गति कम होना या पूरी न होना भी स्वाभाविक है. कुछ राज्य घोषणाएं तो कर देते हैं फ्री वस्तुएं देने की किन्तु फिर केंद्र से हाथ फैलते हैं करोड़ों के पैकेज के लिए. गरीब लोगों को सुविधाएँ देने और उनके जीवन स्तर को उठाने के लिए बजटीय घाटा उठाकर भी सरकार द्वारा काम करना अच्छी बात है. किन्तु हर किसी क फ्री गिफ्ट देना कितना उचित है ? इससे तो लोगों में आलस्य ही पैदा होगा. जब ऊपरवाला दे खाने को तो कोण जाये कमाने को ? वस्तुएं किफायती व सरलता से उपलब्ध हों वहां तक तो ठीक है ताकि वे कुछ मेहनत भी करें और की सुविधाओं का लाभ भी उठा कर आगे बढ़ते रहें. अतः हर दृष्टिकोण से फ्री-गिफ्ट बंद होने चाहिए ताकि लोगों को मेहनत करने की आदत बनी रहे साथ ही फ्री की आदत छूटे. क्योंकि ऐसा सत्ता स्वार्थ भी किस काम का जो लोगों को आलसी बनाये और जनधन का विकास कार्य में सदुपयोग भी न हो सके....


शकुंतला महेश नेनावा,

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