''अतिक्रमण हटाने के बवाल पर सवाल''......

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अतिक्रमण हटाने के बवाल पर सवाल......

पिछले कुछ समय से देश के विभिन्न हिस्सों में बरसों से सरकारी जमीन पर जबरन किये गए को वहां के स्थानीय प्रशासन का अमला हटाने का प्रयास या हटा रहा है. कुछ स्थानों पर पहली या दूसरी बार भी बेवजह के जनविरोध के बल पर भगा दिया जाता है. जिसमें स्थानीय अतिक्रमणकारी व राजनीतिक दल के सदस्य होते हैं. जबकि स्थानीय प्रशासन अतिक्रमित जमीन की वैध/अवैध स्थिति की बारीकी से छानबीन करके ही कार्रवाई करता है फिर भी आखिर जनप्रतिनिधियों द्वारा अतिक्रमणकारियों के सहयोग से आखिर बवाल क्यों मचाते हैं,यह समझ से पर लगता है. इसके दूसरे पहलू पर ध्यान डालें तो आखिर सरकारी जमीन पर कब्जे क्यों हो जाते हैं स्थानीय प्रशासन की नाक के नीचे ? बस्तियां की बस्तियाँ व बड़ी-बड़ी अट्टालिकाएं तक क्यों बस जाती है ?

यह सब एक रात में तो होता नहीं.? कहीं ना कहीं स्थानीय प्रशासन की लापरवाही और अतिक्रमणकारियों जोर-जबरदस्ती अवश्य होती होगी. तभी तो सरकारी जमीन अतिक्रमणकारियों के हौंसले से उनके कब्जे में आ जाती होगी. यूं भी कशते हैं सरकार के हाथ लम्बे होते हैं तो फिर अवैध कब्जों के मामले में बौने क्यों हो जाते हैं ? आखिर बहुत देर हो चुकी होने पर भी तो प्रशासन की सख्ती से अतिक्रमणकारियों और जनप्रतिनिधियों के विरोध के बावजूद लोग स्वयं और प्रशासन के सहयोग से अतिक्रमण हटाने को मजबूर हो ही जाते हैं. अतः यदि अवैध कब्जे होते वक्त ही यदि स्थानीय प्रशासन कार्रवाई करते रहे तो न तो लोगों का नुक्सान हो, न उन्हें परशानी झेलना पड़े, न राजनीतिक पार्टियों को सस्ती लोकप्रियता हेतु राजनीतिक रोटियां सेंकने का मौका मि, न इतना बवाल हो और न ही स्थानीय प्रशासन को दलबल का उपयोग करके अतिक्रमण हटाने हेति इतनी मशक्कत ही करना पड़े.........

शकुंतला महेश नेनावा,

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