''आग बनाम बचाव साधन''........

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आग बनाम बचाव साधन........


हालांकि आग कब, कहाँ, किस कारण लग जाए कुछ कह नहीं सकते. लेकिन उसकी भयावहता और वहां तक तुंरंत पहुँचने के साधनों को देखते हुए और अधिक बेहतर तकनीक जुटाने की आवश्यकता है. देश में तंग गलियों से ऊँची-ऊँची अट्टालिकाओं के मद्देनजर आग बुझाने के साधनों और फंसे हुए लोगों को ताबड़तोड़ निकालने की व्यवस्थाओं पर गंभीरता से विचार करने और संसाधनों को विकसित करना जरुरी है. पिछले कुछ समय में अस्पतालों और निजी छोटे-बड़े भवनों में आग लगने की घटनाओं ने सभी के मन को झंकझोर दिया। माल का नुक्सान होना तो ठीक परन्तु जानों का जाना बहुत ही दुखद रहा. उसमे भी अस्पतालों में फंसे गंभीर मरीजों जो उठ नहीं सकते, भाग नहीं सकते और न ही अपने आपको बचाने की कोशिश ही कर सकते हैं उनके और उनके परिजनों के दर्द को बयां करना बहुत ही हृदयविदारक है.

आग की व्यथा कहीं की भी हो कोई न कोई गंभीर दुःख छोड़ती ही है. यूँ तो आगबुझाने और उस पर तुरन्त काबू पाने के प्रयास हमारे जांबाज करते ही हैं साथ ही उन्हें जनसहयोग भी मिलता है. फिर भी अगर सिस्टम में और अधिक सुधार की गुंजाईश हो तो उसपर विचार करना चाहिए। पुलिस और फायर ब्रिगेड दोनों में सामंजस्य होना चाहिए. अगर कहीं से किसी तरह की सूचना मिले तो उन्हें तुरंत सम्बंधित को पहुँचाने की कोशिश कसरणी चाहिए. क्योंकि घबराहट में लोग पुलिस को अधिकतर सूचना पहुंचा देते हैं. सरकार को एक इमरजेंसी नंबर जनसाधारण के लिए अलॉट कर देना चाहिए जो आपात स्थिति में वो सम्बंधित को तुरंत सूचित कर सके. आपात नंबर भी जनसाधारण में होने वाली घटना-दुर्घटना से शीघ्र राहत दिला सकता है. यूँ तो १००,१०१, १०८ है. अगर सभी घटनाओं के लिए एक के लिए ''एक आपात'' नंबर हो तो वो सम्बंधित को जॉल्डी सूचित कर सकता है और संकट में जनसहयोगी हो सकता है.......


शकुंतला महेश नेनावा

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