"सूत के धागे से स्वराज्य" : डा. प्रविता त्रिपाठी
स्वराज्य एक पवित्र ,वैदिक शब्द है जिसका अर्थ आत्म शासन तथा आत्म नियंत्रण न कि सभी बंधनों से मुक्ति। हमारा देश महापुरुषों और महात्माओं की जन्मस्थली...
स्वराज्य एक पवित्र ,वैदिक शब्द है जिसका अर्थ आत्म शासन तथा आत्म नियंत्रण न कि सभी बंधनों से मुक्ति। हमारा देश महापुरुषों और महात्माओं की जन्मस्थली...
स्वराज्य एक पवित्र ,वैदिक शब्द है जिसका अर्थ आत्म शासन तथा आत्म नियंत्रण न कि सभी बंधनों से मुक्ति। हमारा देश महापुरुषों और महात्माओं की जन्मस्थली रहा है।हमारे देश पर जब जब काल के बादल गहराते गए तब तब राम ,कृष्ण,गौतम,गांधी जी ने अवतार स्वरूप इस पावन धरती पर जन्म लिया।
जब देश परातंत्रता की वेडियों में जकड़ा हुआ था। जनमानस दासता से मुक्ति पाने के लिए छटपटा रहा था,तब आवश्यकता थी ऐसे महापुरुष की जो जनताको सही मार्गदर्शन कर व दासता के अभिशाप से मुक्ति दिलाए।ऐसे समय में 2 अक्तूबर 1869 ई. में गुजरात के पोरबंदर नामक स्थान पर मोहनदास करम चंद्र गांधी ने जन्म लिया।जो बाद में महात्मा गांधी व बापू के नाम से लोकप्रिय हुए। गांधी जी ने भारत माता की करुणा वेदना को समझा तथा सत्य,अहिंसा व प्रेम,के आदर्शो पर चलकर अंग्रजों को नतमस्तक कर दिया। गांधी जी का कहना था कि 'आत्म निर्भता' दासता से मुक्ति के लिए प्रथम प्रयास है।इसके लिए उन्होंने अपनी बेसिक शिक्षा पद्धति की बुनियाद रखी।गांधी जी का यह विचार इस भावना से ओत प्रोत था कि आज के बालक कल के नागरिक होंगे,उनके सर्वांगीण विकास द्वारा ही देश का विकास संभव है।अतः उन्हें एक ऐसी शिक्षा दी जाए जो उन्हें सफल,सुसभ्य,सुसंकृत व आत्मनिर्भर बना सके।इसके लिए उन्होंने तकली के माध्यम से शिक्षा को वेशिक शिक्षा नीति का उद्देश्य माना व उस शिक्षा की कल्पना की जो सभी प्रकार की दासता से मुक्ति करा सके।
स्वराज्य का शाब्दिक अर्थ स्वशासन या अपना राज्य self governance or home rule भारत के राष्ट्रीय आंदोलन के समय प्रचलित स्वराज्य शब्द आत्मनिर्णय तथा स्वाधीनता की मांग पर बल देता है प्रारंभिक उदारवादियों ने स्वाधीनता को दूरगामी लक्ष्य मानते हुए स्वशासन के स्थान पर अच्छी सरकार के लक्ष्य को प्राथमिकता दी है।उग्रकाल में स्वराज्य शब्द लोकप्रिय हुआ,जब बाल गंगाधर तिलक ने उद्घोषणा की कि स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और इसे मैं लेकर रहूंगा।गांधी जी ने सर्वप्रथम 1920 में कहा था मेरा स्वराज्य भारत के लिए संसदीय शासन की मांग है, जो व्यस्क मताधिकार पर आधारित होगा।स्वराज्य जनप्रतिनिधियों द्वारा संचालित ऐसी व्यवस्था जो जन आवश्यकताओं तथा जन आकांक्षाओं के अनुरूप हो।' गांधी जी के स्वराज्य का विचार ब्रिटेन के राजनैतिक,सामाजिक,आर्थिक ,ब्यूरो क्रैटिक,कानूनी,सैनिक, एवम् शैक्षणिक संस्थाओं का बहिष्कार करने का आंदोलन था।
गांधी जी द्वारा गुजरात विद्यापीठ की सन् 1920ई. में स्थापना की गई और उसका सूत्र वाक्य भी रखा गया "सा विद्या या विमुक्तेय।" अर्थात् विद्या वही जो मुक्ति देती है।गुजरात विद्या पीठ के आचार्य,अध्यापकों,विद्यार्थियों से गांधी जी की मुलाकात 13.1.1921 में विद्यालय में हुई वही से गांधी जी द्वारा सूत के धागे से स्वराज्य की घोषणा की गई ।यह उद्धरण उस अवसर पर दिए हुए व्याख्यान से थी। गांधी जी का मानना था कि मेरे सपनों का स्वराज्य,गरीब का स्वराज्य है गांधी जी चाहते थे कि हर मनुष्य की मलभूत आवश्यकताएं पूरी हो,उनका सपना था कि मनुष्य को शिक्षा स्वास्थ्य,आवास ,स्वतंत्र घूमने फिरने जैसी इन सभी आवश्यकताओं का सपना पूरा हो। गांधी जी का मानना था कि जब इंसान की मूलभूत जरूरतें पूरी होगी तभी हमारे देश का विकास हो सकेगा। गांधी जी कहना भी था कि मेरे सपने का स्वराज्य तो गरीब का स्वराज है। उनका मानना था कि अपनी जिंदगी में खास चीजों को मैं खास वक्त पर ही देख सकता हूं जैसे रौलट बिल आंदोलन के समय नाडियाद में मुझे अचानक लगा कि कानून को विनय के साथ तोड़ने के लिए अभी जनता तैयार नही है इस तरह तीन चार दिन से एक बात मेरे मन में पैदा हो रही है यदि हमे असहयोग को सफल बनाना है,विद्यार्थियों को इस आंदोलन में शरीक करनाहै,एक वर्ष में स्वराज्य प्रात करना है तो हमे क्या करना चाहिए?" उनके मन में विचार आया कि असहयोग को सच्चा साबित करना है तो सारा वक्त सभी को सूत कातने में लगाना होगा। हिंदुस्तान हमारे हाथ से इस लिए गया कि हम सब ने स्वदेशी को छोड़ दिया था और विदेशी को धीरे धीरे अपनाने लगे थे। हिंदुस्तान में सूत कातना कोई अलग धंधा नही था हर वर्ग की स्त्रियां सूत कातती थी,कुछ पुरुष वर्ग भी कातते थे,इनमे कुछ पुरुष ढाके की मल मल कातने वाले भी थे। लेकिन यह तो मैंने कुछ पेशेवर मनुष्यों की बात की है आमतौर पर कातना कोई पेशा नही था,बल्कि कर्तव्य या फर्ज समझा जाता था, इसे करना अपना धर्म माना जाता था।अर्थात जब तक हिंदुस्तान में सूत कातना जारी था तब तक हिंदुस्तान खुशहाल था,मालामाल था।" इतिहास भी इस बात का साक्षी था कि प्राचीन काल में भी भारत के बन हुए वस्त्रों की विदेशों में बहुत मांग थी तब हम स्वतंत्र थे, तब हम आत्मनिर्भर थे,सोने की चिड़ियां कहे जाने वाले भारत वर्ष पर जब विदेशियों की धन लोलुप दृष्टि पड़ी तो अपनी कूटनीति से उन्होंने भारत की आत्मनिर्भरता को धीरे धीरे ठेस पहुंचानी शुरू की।भोली भाली भारत की जनता उनकी चालों में ऐसे उलझ गई कि उन्हें इसका अहसास भी नही हुआ।जब उनको अहसास हुआ तब तक बहुत देर हो चुकी थी विदेशियों ने शरीर को तो दास बना लिया था पर आत्मा और विचारों को बांध नही पाए थे स्वतंत्रता की अग्नि भारतीयों के हृदय में धधक रही थी जो समय समय पर आंदोलनों और क्रांतियों के माध्यम से फूट पड़ती थी फिर भी पूर्ण सफलता न मिल पाई।अब भारतीय जनता ऐसे अवतार की प्रतीक्षा में थीजो उन्हे पूर्ण मुक्ति दिला सकें ऐसे अवसर पर गांधी जी का आगमन हुआ।वे एक युग पुरुष थे उनके प्रयासों के फलस्वरूप 15 अगस्त 1947 में हम स्वतंत्र हो गए। परंतु अफसोस की बात युग पुरुष गांधी जी अधिक समय तक हम सब के बीच नही रह सके, 30जनवरी 1948 ईस्वीं में काल के निर्मम हाथों में शहीद हो गए। मैं मानती हूं कि गांधी जी
आज हमारे बीच नही है फिर भी उनके आदर्श समय समय पर हम सभी देशवासियों को प्रेरित
करते है विश्व बंधुत्व का पाठ
पढ़ाते है।
गांधी जी ने मानव जीवन के विकास के लिए तीन प्रमुख बाते रखी।
पहली- हर नागरिक की यह सोच होनी चाहिए कि उसके राज्य ,समाज का विकास तेजी से हो यानि कि राज्य में सबका विकास एक साथ हो। दूसरी यह होनी चाहिए कि किसी भी न्यायालय के वकील का जितना श्रम होता है, उतना ही श्रम एक गेट कीपर का होता हैजिस तरीके से वकील न्यायालय में जाकर किसी भी केश की बहस करते है उसी तरीके से वह गेट कीपर भी गेट पर जाकर ड्यूटी करता है उसकी भी अपनी एक मेहनत होती है। कोई भी काम हो । छोटे या बड़े से मतलब नही होता है मेहनत दोनो की बराबर होती है।इसी लिए गांधी जी ने कहा है कि इंसान गरीब हो या अमीर दोनो को समान अधिकार मिलने चाहिए जो अधिकार उस वकील के हो उतने ही अधिकार उस चौकीदार के हो ,दोनो के साथ उनके मूल अधिकारों में कोई भेदभाव नही किया जाना चाहिए।
तीसरी बात काम करके जीवन व्यतीत करना चाहिए क्योंकि सबका जीवन होता है एक किसान फसल उगाने के लिए दिन रात खेतों में मेहनत करता है, हल चलाता है,खेतों को बीज दवाई खाद पानी देता है तब जाकर हमारे समाज राज्य के लिए अन्न उत्पादित करता है,और उस अन्न का उपयोग राज्य के सभी नागरिक करते है।कहने का तात्पर्य यह है कि गांधी जी के सूत के धागे से स्वराज्य की धारणा ऐसी हो जिसमे राज्य का कोई भी नागरिक भूखा ,नंगा न हो,सभी मेहनत करे,सभी को उनकी मेहनत का समान पारिश्रमिक मिले।आज मैं देख रही हूं कि कोई बेड विस्तर पर सो रहा है तो कोई फुटपात पर लेटा है,किसी को दो टाइम का भोजन नसीब नही कोई ब्रेड , बिस्किट खा रहा है ऐसे राज्य की कल्पना गांधी जी के रामराज्य स्वराज्य से नही की जा सकती है।गांधी जी के रामराज्य में पूर्ण
स्वतंत्र रहने की बात की गई है जिसमे मन ,वचन,कर्म की शुद्धता शामिल हो,भारत के राष्ट्रीय आंदोलन के समय प्रचलित यह शब्द आत्म निर्णय तथा स्वाधीनता
की मांग पर बल देता है।
मैं मानती हूं कि सूत के धागे के माध्यम से स्वराज्य की घोषणा ने हमे स्वतंत्रता तो दिला दी फिर भी हम आर्थिक रूप से स्वतंत्र नही हो पाए है आज भी हम विदेशी सामानों को प्राथमिकता देते है और यह तब तक होता रहेगा जब तक हम मेड इन इंडिया के लेबिल को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रमुखता नहीं दिला देते है गांधी जी के स्वराज से आज भी हमे बहुत कुछ सीखने की आवश्यकता है गांधी जी ने अहिंसा के मार्ग पर चलकर ही एक कल्याण कारी राज्य की कल्पना की थी। आज हमारे समाज में फैले जघन्य अपराध , ऊंच ,नीच जाति पात भेदभाव को मिटाने के लिए गांधी जी का रामराज्य घुटी का काम करेगा हमे स्वराज्य को अपनाने के लिए फिर से एक बार हर संभव प्रयास करने चाहिए तभी हमारा भारत वर्ष पूर्ण आत्म निर्भर हो सकेगा, गांधी जी की आत्मा के शांति मिलेगी ऐसा करना राष्ट्र पिता गांधी जी के प्रति हम सभी की सच्ची सृद्धांजलि होगी। आज मैं गांधी जी की 153वीं जयंती पर उनको शत शत नमन करती हूं।
"अहिंसा का लबादा ओढ़ना धोखा है जरूरत है हम दिल में बसी हिंसा का त्याग करें"......।महात्मा गांधी।।
"जो बदलाव तुम दुनिया में देखना चाहते वह खुद में लेकर आओ"
।।।। महात्मा गांधी।।।