विश्व के लिए गंभीर चुनौती है जनसँख्या विस्फोट

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विश्व के लिए गंभीर चुनौती है जनसँख्या विस्फोट



कुछ समय पूर्व मेडिकल जर्नल लांसेट ने एक शोध प्रकाशित किया था जिसके अनुसार साल 2048 तक भारत की जनसंख्या करीब 160 करोड़ तक पहुंच सकती है. साल 2019 में स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले से भाषण देते हुए कहा था कि भारत में जो जनसंख्या विस्फोट हो रहा है, वो आने वाली पीढ़ी के लिए अनेक संकट पैदा करेगा. बढ़ती जनसँख्या न सिर्फ देश बल्कि विश्व के लिए एक गंभीर चुनौती बन चुकी है. नेचुरल रिसोर्सेज सीमित हैं और जनसँख्या की बढ़ोत्तरी बेलगाम. बढ़ती आबादी के चलते संसाधनों पर दिन-ब-दिन बोझ बढ़ता चला जा रहा है और नतीजतन आज करोड़ों लोग भूख-प्यास, आवास और उर्जा की कमी झेलने को मजबूर हैं. मशहूर थ्योरेटिकल फिजिसिस्ट एवं कॉस्मोलॉजिस्ट स्टीफन हॉकिंग की भविष्यवाणी सत्य होती प्रतीत होती है कि पृथ्वी पर इंसान का अब ज़्यादा भविष्य नहीं बचा है. यदि मनुष्य प्रजाति विलुप्त नहीं होना चाहती तो उसे अगले 200 से 500 साल क़े अंतराल में पृथ्वी को छोड़कर अंतरिक्ष में नया ठिकाना खोजना होगा.

आंकड़ों की मानें तो इस सदी के अंत तक दुनिया की आबादी साढ़े बारह सौ करोड़ का आंकड़ा पार कर लेगी. विश्व की आबादी इस समय 700 करोड़ को पार कर चुकी है और हर साल इसमें लगभग 8.2 करोड़ की आबादी जुड़ जाती है. एशिया के दो दिग्गज देश चीन और भारत, इस समस्या में आग में घी डालने जैसा कार्य कर रहे हैं. एक शोध तो यहाँ तक कहता है कि साल 2050 तक इन दोनो देशों की कुल आबादी 500 करोड़ का आंकड़ा पार कर जायेगी। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट को मानें तो भारत की आबादी 2024 तक चीन की आबादी को पछाड़ चुकी होगी. वर्तमान में हमारे देश की जनसंख्या अमेरिका, इंडोनेशिया, ब्राज़ील, पाकिस्तान,बांग्लादेश तथा जापान की कुल जनसंख्या के लगभग सामान है, जिस रफ़्तार से भारत की जनसख्या बढ़ रही है वह बेहद चौंकाने वाली है. ज्ञात हो कि सन 1941 में हमारे देश की कुल जनसंख्या जहाँ 31.86 करोड़ के करीब थी, वहां 2011 में यह 121 करोड़ पार कर गई. आज भारत और चीन की, विश्व की जनसँख्या में क्रमशः 18 और 19 प्रतिशत की हिस्सेदारी है. वर्तमान में विश्व के प्रत्येक 6 व्यक्तियों में से 1 व्यक्ति भारतीय है. भारत के पास विश्व का मात्र 2.4 प्रतिशत भू -भाग ही उपलब्ध है, जबकि यह विश्व की 17.7 फीसदी जनसख्या का बोझ संभालता है.

भारत में बेलगाम जनसँख्या बढ़ोत्तरी क़े अनेक कारण हैं .वैसे तो कानूनी तौर पर लड़की की शादी की उम्र 18 वर्ष है, लेकिन जल्दी शादी क़े खुले प्रचलन से गर्भधारण करने की अवधि बड़ी हो जाती है. गरीबी, निरक्षरता और रेक्रिएशनल फैसिलिटीज की कमी भी बढ़ती आबादी का प्रमुख कारण हैं .अनेक परिवारों की अवधारणा कि परिवार में जितने अधिक सदस्य होंगे उतने ज्यादा कमाने वाले हाँथ होंगे, तथा बेटा पैदा करने का दबाव आदि भी काफी हद तक इसके उत्तरदायी हैं. भारत आज भी गर्भ निरोधकों और जन्म नियंत्रण विधियों के इस्तेमाल में काफी पिछड़ा हुआ देश है. अनेक लोग ऐसे विषयों पर सार्वजानिक चर्चा से आज भी कतराते हैं .देश में सालों से इललीगल इमीग्रेशन भी इस समस्या को जटिल करने वाला हैं.

देश में बढ़ती बेरोज़गारी, संसाधनों की कमी, आर्थिक विकास की रफ़्तार में भी इस प्रकार की लापरवाही और विवेकहीनता का अपना योगदान हैं. बुनियादी ढांचे का विकास तो हुआ किन्तु तेजी से बढ़ती आबादी क़े समक्ष बौना साबित हुआ. ट्रांसपोर्ट , हाउसिंग , कम्युनिकेशन , हेल्थ सर्विसेज तथा एजुकेशन सेक्टर पर इसका कुप्रभाव साफ़ दिखाई देता हैं. पानी की बढ़ती ज़रुरत तथा भूमिगत जल के बेतहाशा दोहन से पानी की उपलब्धता दिनोंदिन कम होती जा रही है, लाइफ एक्सपेक्टेंसी वर्ष 2100 में बढ़कर 81 वर्ष होने की सम्भावना हैं जो आज 68 वर्ष है. जनसँख्या वृद्धि से बेहाल होते देश को इस समस्या का सामना करने कि लिए एक मज़बूत पोलिटिकल विल की आवश्यकता हैं .

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