"और कितना महँगा होगा इलाज"
माना कि कुछ बिमारी लाइलाज होती है पर इतनी भी लाइलाज नहीं कि उसका इलाज कराते-कराते मरीज़ भी चला जाए और उसकी दौलत, खेत, जायदाद तो खत्म हो ही जाए साथ ही...
माना कि कुछ बिमारी लाइलाज होती है पर इतनी भी लाइलाज नहीं कि उसका इलाज कराते-कराते मरीज़ भी चला जाए और उसकी दौलत, खेत, जायदाद तो खत्म हो ही जाए साथ ही...
माना कि कुछ बिमारी लाइलाज होती है पर इतनी भी लाइलाज नहीं कि उसका इलाज कराते-कराते मरीज़ भी चला जाए और उसकी दौलत, खेत, जायदाद तो खत्म हो ही जाए साथ ही उसके परिजन भी करोड़ों के कर्ज में डूब जाएं. ठीक है न तो बिमारी पर किसी का वश है न मृत्यु पर. जिंदगी बचाने के लिए अच्छी से अच्छी कोशिश की जा सकती है मरीज़ के परिजन और डॉक्टर द्वारा. एक विकासशील देश में एक साधारण किसान के इलाज में 8 महीनें में 8 करोड़ खर्च हो जाएं यह दुर्लभ सा लगता है. करोड़पति और अरबपति की बात छोड़िए वे इतना और इससे भी अधिक वहन कर सकते हैं किन्तु देश का एक समान्य आदमी रीवा मध्यप्रदेश का किसान जो प्रगतिशील विचार धारा का हो और जिसे प्रदेश सरकार ने सम्मानित किया हो ऐसे व्यक्ति के कोरोना के इलाज में दिल्ली के अपोलो अस्पताल में 8 करोड़ खर्च हो गए फिर भी जिंदगी नहीं बची. हालांकि जिंदगी इंसान के नहीं भगवान के हाथ में होती है, मानव प्रयास कर सकता है. अब यक्ष प्रश्न यह है कि देश में निजी स्वास्थ्य सेवाएं इतनी महंगी क्यों होती जा रही है ? इसका इलाज सरकार को करना चाहि ताकि इलाज आदमी के वश से बाहर न हो. ऐसा तब ही हो सकता है जब वह अपने अधिनस्थ (सरकारी ) अस्पतालों की दशा सुधारे, जब वहीं बेहतर इलाज मिलने लगेगा तो लोग निजी अस्पतालों में महंगे इलाज कराने व लुटने को मजबूर नहीं होंगे........शकुंतला महेश नेनावा,