कुछ शब्द देश की वास्तविकता के नाम: हेमा हरि उपाध्याय

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कुछ शब्द देश की वास्तविकता के नाम: हेमा हरि उपाध्याय

देश में चारों तरफ उथल-पुथल मची हुई है | सभी अपनी ढपली पर अलग-अलग बेसुरा राग अलाप रहे हैं | कोई हिंदू, हिंदुत्व पर अपनी किताब में टिप्पणी कर विवाद पैदा कर रहे हैं तो कोई अन्य मुद्दों पर | हिंसा व विरोध के चलते देश जल रहा है | मानव मानव में नफरत और घृणा का प्रसार हो रहा है | इन सब विवादों में अगर नुकसान हो रहा है तो देश व जनता का | असल मुद्दों पर कोई भी बात करने को तैयार नहीं है | चाहे महंगाई का मुद्दा हो या बेरोजगारी का या भ्रष्टाचार का रिश्वतखोरी का या स्वास्थ्य तंत्र में मरीजों से लूटपाट का कहीं कोई इन मुद्दों पर वाद विवाद नहीं | बस विवादित बयानों पर जोर आजमाइश की जा रही है, ऐसा प्रतीत होता है कि इसमें ही देश व जनकल्याण के भाव निहित है | लाख टके का सवाल तो यह है कि इन बेतुके मुद्दों के कारण देश कहां पर है !

एक तरफ हम सब देश व जनता के प्रति चिंता जताते हैं, देश को सबसे ऊंचे स्थान पर रखते हैं, लेकिन कड़वी सच्चाई तो यह है कि कथनी में देशभक्ति का राग अलाप, करनी में तो देश को फिसड्डी स्थान पर ही रखना चाहते हैं ! आखिर देश को कब देश समझेंगे ? चाहे पक्ष हो या विपक्ष या किसी दल का कार्यकर्ता हो या आमजन, हम सब को समझना होगा की देश व उसका विकास, जनता का कल्याण हो तो ही हम सब की पहचान है, अन्यथा हमारा कोई मूल्य नहीं है !

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