"फोकटिये चुनावी वादे लोकतंत्रीय नहीं"

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फोकटिये चुनावी वादे लोकतंत्रीय नहीं

सभी राजनीतिक पार्टियां चुनाव जीतने और सत्ता पाने के लिए मतदाताओं से लुभावने और फोकटिये वादे खूब करती है व सत्ता में आते ही अर्थव्यवस्था पिछली सत्ता ने बिगाड़ दी इसलिए आपको किये वादे निभाने में परेशानी हो रही है. सुप्रीम कोर्ट जनहित याचिका पर संज्ञान लेते हुए केंद्र सरकार और चुनाव आयोग को नोटिस जारी करते हुए राजनीतिक दलों द्वारा लुभावने और बांटने वाले वादे करने पर उनकी मान्यता रद्द करने व चुनाव चिन्ह जब्त करने की बात कही है. अपने स्वार्थ के लिए फ्री बांटने और मृगतृष्णी झूठे वादे करना वैसे भी लोकतंत्रीय नहीं है यदि उन्हें पूरे करने की कोशिश की तो जनधन का अपव्यय ही होगा, लोग आलसी होंगे, फ्री की सुविधा पाने की आदत बनेगी, आर्थिक बोझ भी बढ़ेगा जिससे अन्य जरुरी आपदायी, स्वास्थ्य,शिक्षा सम्बन्धी जनहितैषी और विकासशील कार्यों में भी बाधाएं आएगी. इससे देश की तरक्की के रास्ते रुकेंगे. देशहित और जनहित में फ्री जनधन लुटाना बंद होना चाहिये। अगर चुनाव जीतने के लिए देना है तो अपने पार्टी फंड में से खर्च करें जनता का धन वे क्यों बर्बाद कर रहे हैं अपने निजी स्वार्थ के लिए. ....... शकुंतला महेश नेनावा

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