मानव अधिकार किसी भी सभ्य समाज के विकास के मूल आधार होते है:

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मानव अधिकार किसी भी सभ्य समाज के विकास के मूल आधार होते है:

मानवाधिकारों की रक्षा,

Dr.pravita Tripathi

मानव अधिकार शाब्दिक रूप से वे अधिकार है जो व्यक्ति को मानव होने के नाते प्राप्त है जहां लोगो को योजनाबद्ध तरीके से वंचित किया जाता है वहां मानव अधिकार हासिल करने के लिए लोगो को निश्चित रूप से क्रांतिकारी बनना होता है।किसी भी सभ्य समाज में रहने वाले व्यक्ति को यह मौलिक अधिकार प्राप्त है कि उसके प्राण,स्वतंत्रता और समता तथा गरिमा को अक्षुण रखा जाए।

मानव अधिकार किसी भी सभ्य समाज के विकास के मूल आधार होते है जिस समाज में मानवाधिकारों का सम्मान नही होता है वे समाज सभ्यता की दौड़ में काफी पीछे रह जाते है और जो अधिकार मानव गरिमा को बनाए रखने के लिए आवश्यक है उन्हे मानवाधिकार कहा जाता है।1945 में सयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना के लिए अनेक प्रतिनिधियों ने चार्टर की प्रस्तावना में मानव के मौलिक अधिकारों,मानव के व्यक्तित्व के गौरव तथा महत्व में,पुरुष एवम् स्त्री के समान अधिकारों में विश्वास प्रकट किया गया है अनुच्छेद एक के अनुसार सयुक्त राष्ट्र संघ का मुख्य कार्य "जाति ,लिंग,भाषा या धर्म के आधार पर भेदभाव किए बिना सभी के मानवाधिकारों और मूल स्वतंत्रताओ को समान करने को बढ़ावा देना है।सयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा द्वारा 10 दिसंबर 1948 को इसे सर्वसम्मति से पारित किया गया मानवाधिकार की वैश्विक घोषणा के अनुच्छेद एक और दो में कहा गया है कि " सभी मनुष्य अधिकार और सम्मान लेकर जन्म लेते है। और उन्हें वैश्विक घोषणा में वर्णित सभी अधिकार और स्वतंत्रा, जाति ,रंग,लिंग ,भाषा ,धर्म ,राजनीतिक या अन्य विचारधारा राष्ट्रीय या सामाजिक ,मूलसंपत्ति जन्म या अन्य स्थितियों के किसी भेदभाव के बिना स्वतः मिल जाते है।"

मानव अधिकार और उनकी रक्षा एक सार्वभौमिक तथ्य है। मानवाधिकारों के संरक्षण व उनके प्रति आदर ,चिंता आज के समय की मांग है।इन अधिकारों की रक्षा की एक मात्र गारंटी परस्पर सद्भाव ही है जहां यह सद्भाव भी नही रहता उस समाज में रहने वाले लोग और वर्ग एक दूसरे के प्रति असहिष्णुता का व्यवहार करने लगते है।इसी व्यवहार को देखते हुए सरकारों को हस्तक्षेप करने की आवश्यकता पड़ती है।यह हस्तक्षेप आमतौर पर पुलिस बल के रूप में सामने आने लगता है।इसी लिए पुलिस का पहला कर्तव्य होता है कि वह मानवाधिकारों की रक्षा करे।इसके लिए समाज राजनेता सरकार का भी दायित्व है कि वह पुलिस बलों का मनोबल बनाए रखने में सहायक हो।

मानवाधिकार का सबसे बड़ा शत्रु आतंकवाद है।मानवाधिकार के प्रति किसी व्यक्ति की उदासीनता का सबसे मुख्य कारण शिक्षा का अभाव। सरकार के अनेकों प्रयास के वावजूद भी देश में शिक्षा के स्तर में अभी भी सुधार की आवश्यकता है भारत सरकार द्वारा निःशुल्क प्राथमिक शिक्षा का प्रावधान किया गया, स्कूलों में मिड डे मिल की व्यवस्था होने के वावजूद भी बच्चों को विद्यालय तक ला पाना कठिन कार्य है। बहुत से माता पिता अपने बच्चों को अभी भी स्कूल भी नही भेजते है क्यों कि वे अपने अधिकारों के विषय में बहुत कुछ जानते ही नहीं।जब तक ऐसे नागरिकों को अपने अधिकारों का ज्ञान नही होगा तब तक वे किस प्रकार अधिकारों के हनन का विरोध करेंगे।मैं उन मानवीय अधिकारों के हनन की बात कर रही हूं जो आमतौर पर सरकारों द्वारा किये जाने वाले अत्याचारों के कारण तोड़े जाते है।इन अधिकारों की रक्षा के लिए सभ्य समाज द्वारा कही न कहीं आवाज उठाई जाती है।परंतु ऐसे अधिकार आतंकवादियों द्वारा रौंद दिए जाते है।

आज दुनिया भर में महिलाओं और बच्चों के साथ हो रहे अत्याचार को रोकने के लिए मानवाधिकार संगठनों के प्रयासों को महत्व देना बहुत आवश्यक है।समय समय पर शारीरिक रूप से अशक्त लोगों के अधिकारों और सम्मान की रक्षा करने के विषय में विश्व स्तरीय वार्ताओं से भी अपेक्षित परिणाम नहीं निकले।आज भी अनेक देश है जहां मानवाधिकारों के हनन के लिए कोई दंडात्मक कार्यवाही भी नही की जाती है।जाने कितने लोग बिना मुकदमे के जेल में पड़े सड़ रहे है।कई देशों में सरकारी संस्थाओं व्यक्तियों,समूहों द्वारा व्यापक पैमाने पर मानवाधिकारों का हनन एक वास्तविकता है। अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन एमनेस्टी इंटरनेशनल ने बार बार इस ओर विश्व जनमत का ध्यान आकृष्ट करने का प्रयास किया है।रूस अमेरिका ,चीन,ईरान,सऊदी अरब,पाकिस्तान ,भारत जैसे महत्वपूर्ण देश में आज तक फांसी की सजा को समाप्त नही किया गया जबकि विश्व के अधिकांश देशों में इसे समाप्त कर दिया गया।

विश्व में लगातार बढ़ रही हिंसा और दमन कारी नीतियों को ध्यान में रखते हुए मानवाधिकार आयोग को मजबूत करना चाहिए ।इसे पूरी तरह सक्रिय करने में सहायता देनी चाहिए। समस्त जटिलताओं और अंतर्विरोधों के वावजूद मानवाधिकार आयोग के महत्व का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि इसे किसी देश के सभ्य और सुसंस्कृत होने की कसौटी माना जाता है और आयोग मानव को सर्वप्रथम मानव मानकर उसके अधिकारों की रक्षा के लिए उठ खड़ा होता है।

हमारे संविधान निर्माताओं ने भारत के बहुधर्मी ,बहुलवादी समाज को ध्यान में रखते हुए ही ऐसे संविधान की रचना की थी जिसमे देश के सभी नागरिकों को समान अधिकारों की रक्षा हो सके। अंत में मैं इतना कहना चाहूंगी आज मानवाधिकार के हनन के मामलों को मुख्य रूप से सहिष्णुता की संस्कृति को विकसित कर रोका जा सकता है जो शिक्षा के प्रयास से ही संभव है । इसी के साथ कानून का परिपालन करवाने वाली सभी संस्थाओं को शिक्षित प्रशिक्षित करने की आवश्यकता है।जिससे विश्व में कहीं भी मानवाधिकारों का हनन नही होगा इस आदर्श स्थिति को प्राप्त करने के लिए हम सब को मिलकर प्रयास करने चाहिए। तभी हम अपने अधिकारों की रक्षा कर सकेंगे।


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