'खोदा पहाड़ निकली चुहिया', 'ढाक के तीन पात'

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खोदा पहाड़ निकली चुहिया, ढाक के तीन पात
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'कौओं की रमत, मेंढकी का मरण' जैसी जितनी भी कहावतें है, वे सब मध्य प्रदेश के पंचायत चुनाव पर लागू होती है । दुख इस बात का कतई नहीं है कि चुनाव निरस्त हुए, दुख तो इस बात का है कि पंचायती चुनाव की प्रक्रिया शुरू होने से ही लेकर संशय की के बादल छाए हुए थे कि चुनाव होंगे या नहीं ! लेकिन ये चुनाव फुटबॉल की तरह इधर से उधर निर्णय / फैसले लेने में उलझते रहे ! जरा सोचिए चुनाव प्रक्रिया में लगे प्रशासनिक अमले जिन्होंने दिन रात एक किया तथा समय, श्रम के साथ काफी धन खर्च हुआ है, उसका क्या !

पहले व दूसरे चरण के चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों ने तो प्रचार प्रसार शुरू कर खर्च करना शुरू भी कर दिया था । हठधर्मिता की हद के चलते ये चुनाव मजाक बनकर रह गए । चुनाव के निरस्त होने से यह भी जाहिर हो गया है कि सही समय पर उचित निर्णय व फैसले लेने की दूरदर्शी दृष्टि का अभाव कितना भारी पड़ा है, चाहे सरकारी खजाने पर या चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों की जेबों पर ! भविष्य में ऐसी पुनरावृत्ति ना हो यह सबक है सभी राज्यों की सरकारों को - मध्य प्रदेश के पंचायती राज चुनाव !

हेमा हरि उपाध्याय 'अक्षत' खाचरोद उज्जैन


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