''जेल से विधायकी नामांकन ?"
राजनीतिक पार्टियां, कोर्ट, चुनाव आयोग और यहाँ तक कि सामाजिक संस्थाएं भी कहती है कि आपराधिक तत्व चुनाव न लड़ें और न ही उन्हें किसी तरह कि सामाजिक...
राजनीतिक पार्टियां, कोर्ट, चुनाव आयोग और यहाँ तक कि सामाजिक संस्थाएं भी कहती है कि आपराधिक तत्व चुनाव न लड़ें और न ही उन्हें किसी तरह कि सामाजिक...
राजनीतिक पार्टियां, कोर्ट, चुनाव आयोग और यहाँ तक कि सामाजिक संस्थाएं भी कहती है कि आपराधिक तत्व चुनाव न लड़ें और न ही उन्हें किसी तरह कि सामाजिक जिम्मेदारियां सौंपी जाएँ. किन्तु इसके बावजूद न तो राजनीतिक पार्टी ध्यान दे रही है न चुनाव आयोग और कोर्ट भी कह रही है कि आजमखान को जेल से ही नामांकन भरने दिया जाए तब सामाजिक संस्थाओं की क्या बिसात कि वे किसी क्षेत्र से अपराधिकृत लोगों को जिम्मेदारियों से जुड़ा कर सकें. आजम खान भले ही वे विधायक,मंत्री रह चुके हों किन्तु वे अनेक घोटालों में लिप्त पाए गए जिन्हें जेल की हवा कहानी पड़ रही है. एक साधारण सी सरकारी नौकरी तक के लिए पुलिस वेरिफिकेशन व्यक्ति को कराना आवश्यक है ताकि उसे किसी अपराध में सजा तो नहीं मिली.
किन्तु राजनीति में अपराधी के ऊपर अनेक प्रकरण भी चल रहे हों तो माफ़ और उन्हें बाहर तो बाहर जेल के अंदर से भी जनप्रतिनिधि बनने की छूट रहती है. ऐसे दोहरे विचार क्यों ? जबकि नियम तो सब पर एक जैसे लागू होने चाहिए। एक तरफ पुलिस और सरकार अपराध कम करना चाहती है दूसरी तरफ राजनीतिक पार्टियां अपराधियों को सरे आम चुनाव मैदान में उतर कर उन्हें प्रदेश और देश की जिम्मेदारी सौपना चाहती है. तब बताइये राजनीति में बढ़ता अपराधीकरण कैसे कम या खत्म होगा ? मतदाता भी कैसे अपराधीकरण को रोक पाएंगे क्यांकि जब मैदान मे ही अपराधियों की जमात उतरी हो. कोई एक तो चुन ही लिया जाएगा. क्योंकि मतदान में भाग लेना देश के हित में है. पर यह सब कैसे संभव है. जबतक राजनीति की जड़ याने जनप्रतिनिधि चुनने की प्रक्रिया ही साफ़ सुथरी नहीं होती तब तक अच्छे व नेक जनप्रतिनिधियों का देश के जिम्मेदार पदों पर कैसे पहुंचेंगे. राजनीतिक दल, चुनाव आयोग व सरकार तीनों को मिलकर ही सख्त कदम उठाने पड़ेंगे तभी ज्यादा से ज्यादा बेहतर जनप्रतिनिधि देश को मिल सकेंगें........ शकुंतला महेश नेनावा