''शादी की २१ की उम्र से परहेज क्यों ?
क्या हम समय के साथ नहीं बदल सकते ? आखिर क्यों रुढ़िवादी बने रहना चाहते हैं ? ज़माना बदल रहा है. लेकिन आज भी दूरस्थ स्थानों में रहने वालों की सोच तो...
क्या हम समय के साथ नहीं बदल सकते ? आखिर क्यों रुढ़िवादी बने रहना चाहते हैं ? ज़माना बदल रहा है. लेकिन आज भी दूरस्थ स्थानों में रहने वालों की सोच तो...
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क्या हम समय के साथ नहीं बदल सकते ? आखिर क्यों रुढ़िवादी बने रहना चाहते हैं ? ज़माना बदल रहा है. लेकिन आज भी दूरस्थ स्थानों में रहने वालों की सोच तो छोड़िये शहरों और महानगरों में रहने वालों की सोच पर भी तरस आता है. सस्ती लोकप्रियता हांसिल करने के लिए कतिपय सामाजिक और राजनीतिक लोग भी ''कूप मंडूप'' विचारों को फ़ैलाने में पीछे नहीं हैं. हमारी सरकार केवल देश को ही आगे बढ़ाने में नहीं लगी है बल्कि हर नागरिक को वैचारिक और सामाजिक सम्पन्नता की ओर ले जाने के प्रयास कर रही है. लड़की की शादी की उम्र तय करने के लिए उसने देशभर के लोगों, विशेषकर युवक-युवतियों से भी अपने विचार आमंत्रित करके व विद्वानों की समिति द्वारा मंथन करने के पश्चात ही बहुत सोच-समझकर निर्णय लिया और उसे लागू किया है. इससे सबसे अधिक मातृ और शिशु की रक्षा होगी।
क्योंकि युवतियों की वैचारिक परिपक्वता बढ़ेगी। वे अपने स्वास्थ के प्रति जागरूक रहेंगी. पढ़ाई के लिए आगे बढ़ने वाली युवतियों के लिए भी यह वरदान साबित होगी. वे स्वावलम्बी होकर अपनी गृहस्थी के बारे में भी बेहतर निर्णय लेने में सक्षम होंगी. लड़की की शादी की न्यूनतम २१ वर्ष की उम्र से परहेज करने वाले या उसका विरोध करने वालों को समझना चाहिए कि प्रगतिशील विचारधारा वाले युवक-युवतियां तो चाहते ही हैं कि शादी की उम्र २१ ही हो ताकि वे बेहतर शिक्षा,जॉब व कॅरियर बना सकें. उन्होंने ही सरकार को सुझाया और उसने उनकी दूरदृष्टि को माना भी. खैर जो भी मतमतान्तर हों किन्तु सरकार का निर्णय लड़कियों के हित में ज्यादा है जो कि स्वागत योग्य भी है......
शकुंतला महेश नेनावा,