भाषा विश्वविद्यालय: अंतरराष्ट्रीय फार्मेसी सम्मेलन ICD5–2025 में वैश्विक वैज्ञानिकों की भागीदारी, पाँच तकनीकी सत्रों में शोध और नवाचार पर हुई विस्तृत चर्चा
ख़्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती भाषा विश्वविद्यालय, लखनऊ के फार्मेसी संकाय द्वारा दवा खोज, विकास एवं औषधि वितरण–2025 (ICD5–2025) विषयक तीन दिवसीय...

ख़्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती भाषा विश्वविद्यालय, लखनऊ के फार्मेसी संकाय द्वारा दवा खोज, विकास एवं औषधि वितरण–2025 (ICD5–2025) विषयक तीन दिवसीय...
ख़्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती भाषा विश्वविद्यालय, लखनऊ के फार्मेसी संकाय द्वारा दवा खोज, विकास एवं औषधि वितरण–2025 (ICD5–2025) विषयक तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन 17 से 19 नवम्बर 2025 तक विश्वविद्यालय के अटल हॉल में किया जा रहा है। इस सम्मेलन में देश-विदेश के विद्वान शिक्षाविद, वरिष्ठ वैज्ञानिक, शोधकर्ता तथा प्रतिष्ठित औषधि उद्योगों के विशेषज्ञ आधुनिक फार्मेसी, नयी अनुसंधान प्रवृत्तियों और उभरती तकनीकों पर अपने विचार साझा कर रहे हैं। पूरे आयोजन का संचालन माननीय कुलपति प्रो० अजय तनेजा एवं संयोजन भेषजी विभाग की डायरेक्टर प्रो० शालिनी त्रिपाठी के नेतृत्व में किया जा रहा है।
18 नवम्बर को आयोजित वैज्ञानिक गतिविधियों के अंतर्गत विभिन्न विषयों पर पाँच तकनीकी सत्र संपन्न हुए, जिनमें औषधि विकास, जैव-प्रौद्योगिकी, नैनो-चिकित्सा तथा सटीक औषधि-प्रेषण प्रणालियों पर व्यापक विचार-विमर्श किया गया।
प्रथम सत्र : औषधि विकास एवं प्राकृतिक स्रोतों पर आधारित अनुसंधान
इस सत्र की अध्यक्षता डॉ. सारिका सिंह (वरिष्ठ वैज्ञानिक, सीडीआरआई) ने की।
सी–मैप के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. एन. पी. यादव ने प्राकृतिक औषधियों के विकास पर अपना मुख्य व्याख्यान प्रस्तुत करते हुए बताया कि लैवेंडर के आवश्यक तेल तथा उसके प्रमुख तत्व लीनालूल और लीनालाइल एसीटेट IMQ-प्रेरित सोरायसिस के उपचार में प्रभावी पाए गए हैं, जो त्वचा संबंधी रोगों के लिए इसके वैज्ञानिक उपयोग की पुष्टि करता है। इस शोध के लिए उन्हें वर्ष 2019 में विशेष वैज्ञानिक पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
डॉ. शशांक सिंह (भारतीय एकीकृत औषधीय संस्थान, जम्मू) ने प्राकृतिक यौगिकों से कैंसर की जटिल किस्मों के लिए लक्षित उपचार विकसित करने पर प्रकाश डाला।
प्रो. गौरव कैथवास (बीबीएयू, लखनऊ) ने आधुनिक शोध में सत्य, विश्वास और तकनीक की अपरिहार्यता पर अपने विचार प्रस्तुत किए।
इस सत्र में विश्वविद्यालय के युवा शोधकर्ता डॉ. शुभम रस्तोगी ने भी अपने अनुसंधान का प्रस्तुतीकरण किया।
द्वितीय सत्र : दवा खोज एवं अत्याधुनिक औषधि विकास
अध्यक्षता प्रो. आर. पी. त्रिपाठी (पूर्व वैज्ञानिक, सीडीआरआई) और प्रो. शैलेन्द्र सक्सेना (केजीएमयू) ने की।
पुर्तगाल के प्रो. सर्ज मिगनानी ने विशेष लक्षित प्रोटीन विघटन की उन्नत पद्धतियों पर अपना व्याख्यान दिया।
सीडीआरआई के पूर्व मुख्य वैज्ञानिक प्रो. एस. के. रथ ने औषधियों के सुरक्षा मूल्यांकन और जोखिम विश्लेषण की महत्ता पर विस्तार से चर्चा की।
डॉ. पी. पी. सिंह (जम्मू) ने औषधीय गुण वाले प्राकृतिक यौगिकों के संश्लेषण और उनके चिकित्सीय उपयोग पर अपने शोध साझा किए।
लखनऊ विश्वविद्यालय की युवा शोधकर्ता सुश्री पल्लवी शुक्ला ने एनएसएआईडी वर्ग की औषधियों के अमोनियम लवणों की द्रव-पारगम्यता संबंधी अध्ययन प्रस्तुत किया।
तृतीय सत्र : अनुवादकीय जैव-प्रौद्योगिकी
इस सत्र की अध्यक्षता प्रो. सिद्धार्थ मिश्र और प्रो. अजय शर्मा ने की।
ऑस्ट्रेलिया के प्रो. एंड्रू ब्रूक्स ने त्वचा कैंसर (मेलानोमा) की प्रगति तथा प्रतिरक्षा-तंत्र से बचाव की जैविक रणनीतियों पर अपना मुख्य व्याख्यान दिया।
क्वींसलैंड प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, ऑस्ट्रेलिया की डॉ. त्रुदी कोलिट ने देशज औषधीय वनस्पतियों की संभावनाओं पर अपने विचार साझा किए।
डॉ. नितिन चित्रांसी ने तंत्रिका-नेत्र विज्ञान से जुड़े रोगों—अल्ज़ाइमर, ग्लूकोमा तथा मल्टीपल स्क्लेरोसिस—में अनुवादकीय शोध की भूमिका पर महत्वपूर्ण प्रस्तुति दी।
चतुर्थ सत्र : औषधि-प्रेषण तकनीक एवं लक्षित उपचार प्रणाली
अध्यक्षता डॉ. अखिलेश कुमार जैन (उ.प्र. औषधि विभाग) एवं प्रो. राजीव जैन (जिवाजी विश्वविद्यालय) ने की।
सीडीआरआई के डॉ. मनीष कुमार चौरसिया ने सटीक औषधि-प्रेषण प्रणाली और स्मार्ट उपचार तकनीकों पर अपना मुख्य व्याख्यान दिया।
डॉ. पुष्पेन्द्र कुमार त्रिपाठी (लखनऊ विश्वविद्यालय) ने डेंड्राइमर आधारित नैनो-औषधियों की उपयोगिता और चुनौतियों पर चर्चा की।
डॉ. मयंक हांडा (वडोदरा) ने डिजिटल-सहायक पोषक-औषधियों के विकसित होते स्वरूप पर अपना आमंत्रित व्याख्यान प्रस्तुत किया।
डॉ. सौम्या सिंह ने मधुमेह-जनित नेत्र रोग में उपयोगी ताप-संवेदनशील औषधि जैल पर अपना शोध प्रस्तुत किया।
पाँचवाँ सत्र : नैनो-प्रौद्योगिकी एवं नैनो-चिकित्सा
सत्र की अध्यक्षता प्रो. सर्ज मिगनानी (पुर्तगाल) एवं प्रो. एस. के. रथ (पूर्व वैज्ञानिक, सीडीआरआई) ने की।
डॉ. सौरभ अग्रवाल (अमेरिका) ने बाल्यावस्था कैंसर उपचार में दवा खोज के अनुवादकीय मार्गों पर अपने विचार प्रस्तुत किए।
डॉ. अभय सिंह चौहान (अमेरिका) ने डेंड्राइमर प्रौद्योगिकी के औद्योगिक उपयोग और व्यावसायीकरण पर विस्तृत व्याख्यान दिया।
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पोस्टर प्रस्तुतीकरण
दिवस भर आयोजित दो विशेष सत्रों में विभिन्न संस्थानों के प्रतिभागियों ने अपने नवीनतम अनुसंधान पर आधारित पोस्टर प्रस्तुत किए, जिन पर विशेषज्ञों ने सुझाव और मार्गदर्शन प्रदान किया।
कल इस तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का समापन सत्र आयोजित किया जाएगा।





