नगर निगम और पीडब्ल्यू डी की लड़ाई मे फंसा विकास , अंबेडकर विश्वविद्यालय से शहीद नगर का रास्ता बना नर्क
जिस तरह से लखनऊ का हाल सफाई रैंकिंग मे है उससे लगता है की ये आने वाले समय मे सबसे गंदी राजधानी का तमगा न हासिल करले | कागज पर पूरी सफाई होती है पर...
जिस तरह से लखनऊ का हाल सफाई रैंकिंग मे है उससे लगता है की ये आने वाले समय मे सबसे गंदी राजधानी का तमगा न हासिल करले | कागज पर पूरी सफाई होती है पर...
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जिस तरह से लखनऊ का हाल सफाई रैंकिंग मे है उससे लगता है की ये आने वाले समय मे सबसे गंदी राजधानी का तमगा न हासिल करले | कागज पर पूरी सफाई होती है पर वास्तव मे हर तरफ गंदगी का अंबार है और आने वाले समय मे इसे साफ न किया गया तो डेंगू और चिकनगुनिया हो या मलेरिया उससे जनता का मरना तय है |
ये तभी होता है जब सत्ता के शिखर पर बैठे लोग अपने महलो मे राजनीति मे लगे होते है और उनसे नीचे के लोग उनके महल की खिड्कियों के पास खड़े उनको अपना चेहरा दिखाने के लिए लगे रहते है | इन विधायकों और पार्षदो को ये पता ही नही की उनके क्षेत्र की क्या दशा या दुर्दशा है |
दुर्दशा का कारण : ये जाति आधारित या धर्म की राजनीति है जिसमे जाति और धर्म के नाम पर वोट देते है और जब विकास की बात आती है तो वो इन प्रतिनिधियों को कुछ नहीं कह पाते क्योंकि वो उनके ही जाति या धर्म के होते है | चुनाव जीत जाने के बात ये प्रतिनिधि अपना एक ग्रुप बना लेते है और सारा विकास उसी ग्रुप तक सीमित हो जाता है | अगले चुनाव मे ये फिर से जनता को जाति और धर्म पर डरा कर वोट लेते है और फिर वही परिणाम |
दशा बदलनी है तो खुद को बदलना होगा : जनता को ये सब इसी लिए सहना होता है क्योंकि वो आपस मे बाँट दिये जाते है | जो ज्यादा बोलता है या चिल्लाता है उसके सामने कुछ काम कर के उसे चुप करा दिया जाता है | पर अगर हमें स्थिति में परिवर्तन लाना है तो समाज में व्यापक बदलाव लाना होगा |
यूनिवर्सिटी के गेट नंबर एक से मात्र पचास मीटर की दुरी भी नहीं है जहाँ शराब खुले आम बिक रही है | शराब और सिगरेट पीकर वहाँ से गुजरती आंबेडकर विश्वविद्यालय की छात्राओं पे टिप्पड़िया करते ये मनचले यहाँ दिख जाएंगे | एक तरफ की रोड बनी नहीं है और दूसरी तरफ दुकानदारों ने अतिक्रमण कर आना जाना मुश्किल कर दिया है |
इससे भी हालत और बिगड़ गयी है की आस पास बन रहे मकानों का सारा गिट्टी हो या बालू वो सड़क पर ही रखा है जिससे वहां गाड़ी चलना दूभर हो चूका है | सोचिये हम लखनऊ में रह रहे है और आंबेडकर यूनिवर्सिटी के हजारो छात्र - छात्राएं इसी जगह से रोज गुजरते है | बगल में मंत्री और मुख्यमंत्री के अलावा राष्ट्रपति भी आ चुके है पर उसके ठीक बगल अतिक्रमण और नगर निगम के अधिकारियों की मिली - भगत से ये सारा खेल चल रहा है |
वही आंबेडकर विश्वविद्यालय के पीछे बुधवार और रविवार के सब्जी मार्किट ने लोगो को नर्क में पहुंचने का काम किया है | बुधवार और रविवार आप चार बजे शाम के बाद इधर गाडी लेकर नहीं आ सकते क्योंकि हर तरफ अवैध कब्ज़ा है | इन लोग से बोलने का मतलब आप लोकल गुंडों से जो इनसे वसूली करते है उससे लड़ाई मोल लीजिये और उनको ही ट्रैफिक और पुलिस से मदद मिल रही है |
सड़क के दूसरी तरफ दुकानदारों और पार्किंग की तरह इस्तेमाल हो रहा है | वही एक होटल अपनी पार्किंग करता है तो बाकी के लोग और नशेड़ी लोगो ने इसको स्वर्ग मान यही अड्डा जमा लिया है | खान पान की अवैध दुकानों से ये सड़क भर गयी है और आम आदमी सत्ता और सरकार को कोसते अपने हाल पे रोता चला जाता है |
कई बार प्रयास होने और नगर निगम के अधिकारियों से कहने के बावजूद इस रोड का कायाकल्प नहीं हो सका है और लोग सोचने को मजबूर है की क्या यही सरकार है | अगर जल्द कुछ नहीं किया गया तो इस क्षेत्र की जनता का गुस्सा इस बार के चुनाव में सत्ता पक्ष पर जरूर निकल जाएगा - समय रहते जिम्मेदार नहीं सम्भले तो बिना गलती के सरकार को नुक्सान उठाना पड़ेगा |