खजुराहो कलातीर्थ कलाकार का प्रेम : ऊषा सक्सेना

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खजुराहो कलातीर्थ कलाकार का प्रेम :  ऊषा सक्सेना


चित्रलेखा कह रही थी संगीत हमारी भारतीय संस्कृति की आत्मा है जो हमारे रोम रोम में बसी है । गीत के लिये राग आवश्यक ह । प्रश्न उठता है कि राग क्या है और सुर की साधना क्या है ? जब तक हम राग को नही जानेंगे स्वर को नही साध सकते ।स्वर को साधना भी किसी तपस्या से कम नही । स्वर की साधना ही ईश्वर की साधना है ।सबसे पहले शून्य में जिस शब्द की उत्पत्ति हुई वह "वाक्"है । वाक् के भी चार प्रकार हैं -१.परा २.पश्यन्ती ३.मध्यमा ४.बैखरी ।

यह वाक् अर्थात वाणी ही नाद का मूल आधार है वाक् के भी दो रूप है-(१) नादात्मक (२)वर्णात्मक । नादात्मक वाक् आवेग रूपी चित्तवृत्ति का सूचक है जब कि दूसरी ओर वर्णात्मक नाद वर्ण से संबंधित होने के कारण हमारे विचारों का निदेशक होता है ।

कंठ से निकलने वाली ध्वनि को शब्द कहते हैं

वाद्ययंत्रों से निकलने वाली ध्वनि को स्वर कहते हैं । इस तरह स्वर साधना के लिये ही ध्वनि विज्ञान की उत्पत्ति हुई ।इसमें बांसुरी प्रमुख है

वाद्ययंत्र:-गायन के साथ स्वर साधने के लिये वाद्य यंत्रों का निर्माण हुआ जिसमें सबसे पहला प्राचीन वाद्य यंत्र वीणा है ।मां वीणापाणि के द्वारा ही इसका प्रारंभ हुआ जिसमें वीणा के तारों को हाथ से झंकृत कर स्वर ध्वनि उत्पन्न की जाती है ।बाद मे वीणा के कई रूप सामने आये इकतारा नारद की वीणा ,रुद्र वीणा । वीणा वस्तुत:तंत्री वाद्य यंत्रों का संरचनात्मक नाम है ।

वीणा के बाद अन्य वाद्य यंत्रों का निर्माण हुआ जिनमे मंजीरे- झंझरी,मादल ,पखावज ,ढोलक,

ढोल ,तुरही ,ढपली ,नगाड़ा आदि बने जिनमें समय समय पर आवश्यकतानुसार उनके रूप मे परिवर्तन होता रहा । इस प्रकार संगीत में वाद्य यंत्रों का अपना महत्व है ।श्री कृष्ण बांसुरी वादन में निष्णात् थे उनकी बांसुरी में सम्मोहन था जो जड़ चेतन सभी को उसकी ध्वनि पर सम्मोहित

कर लेते थे ।

नृत्य:-नृत्य एक कला है जिसमें कलाकार अपने अंग प्रत्यंगों के माध्यम से गीत के मनोभावों को वाद्य यंत्रों के साथ अपने घुंघरूओं के स्वर को समायोजित करते हुये ताल और लय के साथ यति और गति को नियंत्रित करता है । नृत्य के भी कई रूप हैं यह एकल भी किया जाता है तथा युग्म एवं समूह में भी ।शिवजी का तांडव नृत्य एकल है ।जबकि दूसरी ओर पार्वती केसाथ लास्य नृत्य युगल नृत्य है इसमें प्रेम क्रीड़ा है ।

सामूहिक नृत्य समूह में कियाजाताहै जैसे राधा-कृष्ण की अपने साथियों के साथ की हुई रास लीला आदि । विष्णु का भस्मासुर कोमारने के लिये मोहिनी रूप में लास्य नृत्य कर भस्मासुर को मारना ।इसलिये इस नृत्य का नाम भी मोहिनी नृत्य पड़ा जिसमैं लास्य और तांडवदौनों है एकल नृत्य

शास्त्रीय नृत्य के भी आठ प्रकार हैं:-

(१)भरत नाटयम्(२)कत्थक (३)कथकली (४)मणिपुरी (५) ओड़िसी (६) कुचिपुड़ी

(७) मोहिनी अट्टम् (८)सत्रीया ।

अलग अलग भाव को लेकर किये जाने वाले नृत्य और इनके प्रकार यही इनके रूप हैं ।

शेष कल :-धन्यवाद ।

ऊषा सक्सेना

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