विचार : साधना शुक्ल ,भारत भूमि के हर खंड खंड में स्त्रियों की बलि चढ़ती है आज भी चल रही है
विचार : साधना शुक्ल भारत भूमि पर ना जाने कितनी बार आक्रमण हुए कितनी बार हम गुलाम हुए| तड़पते हुए कितने प्राणों के दंश कितने अत्याचार पीड़न शोषण ...
विचार : साधना शुक्ल भारत भूमि पर ना जाने कितनी बार आक्रमण हुए कितनी बार हम गुलाम हुए| तड़पते हुए कितने प्राणों के दंश कितने अत्याचार पीड़न शोषण ...
विचार : साधना शुक्ल
भारत भूमि पर ना जाने कितनी बार आक्रमण हुए कितनी बार हम गुलाम हुए| तड़पते हुए कितने प्राणों के दंश कितने अत्याचार पीड़न शोषण व्यभिचार बलात्कार क्या कुछ सहन नहीं किया| आज भी यह सिलसिला थमा नहीं है| आज भी हम वहीं भी झेल रहे हैं जो सदियों पहले भारतीय महिलाओं ने बच्चों ने बुढ़ापे ने सहन किया|
इतनी क्रूरता इतना दुस्साहस इन पापियों के हृदय में कहां से आया| क्यों इन्होंने इतना आतंकवादी मचाया| क्यों कर रहे हैं यह सब हमारी राष्ट्र को खोखला करने की साजिशें हजारों हजारों सालों से चल रही है| कितने बार लूटी भारत भूमि की अस्मिता कितनी बार तार-तार हुआ मां का दामन| छोटे-छोटे बच्चों को दूध के कढ़ाई में डाला गया| स्त्रियों की अस्मत से खेला उन्हें तार-तार किया बोली लगाकर उन्हें बाजार में खड़ा किया|
जौहर केवल मध्यप्रदेश की धरती पर चंदेरी के 1500 क्षत्रिय स्त्रियों की कथा नहीं है| यह केवल राजस्थान जैसलमेर और पद्मावती का जौहर नहीं है| भारत भूमि के हर खंड खंड में स्त्रियों की बलि चढ़ती है आज भी चल रही है| कहीं धर्म परिवर्तन के नाम पर कहीं गरीबी के नाम पर कहीं प्रेम बंधन कहीं तलाक| कहीं लव जिहाद तो कहीं क्रूरता| स्त्री को स्त्री नहीं समझना| मानव को मानव ना समझना| विधर्मी सत्ता की लालच में वर्चस्व सिद्ध करने के लिए कितनी हद तक गिर सकते हैं पतन के गर्त में गिरते जा रहे हैं|
केवल बेटियां नहीं आज एक बच्चा घर से निकलता है जब तक सुरक्षित लौटता नहीं| घर वाले दरवाजे पर टकटकी लगाए रहते हैं| 1 दिन अच्छे से गुजर जाए तो अगले दिन फिर वही प्रक्रिया द्वारा ही जाती है कितनी प्रार्थनाएं की जाती है| घर परिवार को सुरक्षित रखने के लिए| लेकिन यह बात उन्हें समझ में नहीं आती उन्हें कौन समझाएगा यह बहुत बड़ा यक्ष प्रश्न है|
इसके लिए हम सबको अपनी अपनी जिम्मेदारी अपना अपना पक्ष रखना आने चाहिए| कोई भी आता ताई क्रूरता पूर्ण व्यवहार ना कर सके| हमें अपने बच्चों को संगठित करना है संरक्षित करना है संस्कारी करना है| हमारे संस्कार शुरू से ही किसी जीव हत्या का समर्थन नहीं करते| हमें शांतिपूर्ण रहकर विषम परिस्थितियों का सामना करना है| हमारे संस्कार हमारे बच्चों के मनोबल को बढ़ाएंगे| हमारी संस्कृति उन्हें आगे बढ़ने के लिए सहायता प्रदान करेगी| हमारी सभ्यता को सुरक्षित रखने के लिए नैतिक ज्ञान नैतिक मूल्यों की आवश्यकता है| राष्ट्र सर्वोपरि जाति और वर्ण भेद से दूर रहकर स्वयं के हित को दरकिनार कर समाज के हित और राष्ट्र के हित के बारे में सोचना| नैतिक मूल्य यह हमारे बच्चों को सुरक्षित रख सकेंगे|
डॉ साधना शुक्ला